पर्वत शिखर पर बने मंदिर की प्रतिमा ने एक दिन समाने वाली पगडंडी से सहानुभूति दिखाते हुए कहा-भद्रे! तुम कितना कष्ट सहती हो, यहाँ आने वाले कितने लोगों का बोझ उठाती हो? यह देखकर हमारा जी भर आता है। पगडंडी मुस्कुराती हुई बोली-भक्त को भगवान् से मिलने का अर्थ भगवान् से मिलना ही तो हैं देवी।
प्रतिमा पगडंडी की इस महानता के आगे नतमस्तक हुए बिना न रह सकी।
अंदर के अंधकार में और वृद्धि हुई थी। एक शिष्य ने उठकर दीवार से लगे दीपाधार के दीप को प्रज्ज्वलित कर के दीप से प्रस्फुटित प्रकाश किरणें एकाकार हो आई थीं।