सम्मानपूर्वक नहीं ठहर सकता (kahani)

March 1993

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लक्ष्मी जी का वैभव दैत्यों के यहाँ बढ़ता जाता था। देवताओं का प्रताप और भण्डार घटता जा रहा था।

एक दिन देवताओं ने लक्ष्मी जी से प्रार्थना की कि−”आप हम लोगों से क्यों रुष्ट हो? और दैत्यों पर क्यों अनुग्रह करती हो? हमारा पक्ष पुण्य का है और दैत्यों का पाप का।” आप यह विचार भी नहीं करती।

लक्ष्मी जी ने कहा−”पाप−पुण्य का लेखा−जोखा भगवान करते हैं। मैं तो पराक्रम, साहस और लगन देखती है। जिनमें यह गुण होता है, उनके यहाँ जा पहुँचने का मेरा सहज मन होता है।”

अमेरिका के उपराष्ट्रपति जैक्सन सदा सादे लिबास में रहते थे। एक दिन वे प्रवास पर थे। रात हो गई तो एक होटल में अपने बिस्तर स्वयं लेकर पहुँचे।

होटल बड़े लोगों के लिए बना था। सीधे−सादे ग्रामीण से दिखने वाले व्यक्ति को होटल मालिक ने ठहराने से इनकार कर दिया।

जैक्सन दूसरे सस्ते होटल में जाकर ठहर गये। वहाँ उनने अपना पूरा नाम−पता भी लिखवाया।

अमेरिका के उपराष्ट्रपति को जिस होटल वाले ने ठहराने से इनकार कर दिया था। वह उन्हें नाराज करने पर होने वाली हानि का विचार करके बहुत घबराया और तुरन्त क्षमा माँगने और वापस लाने के लिए चल दिया।

जैक्सन ने छोटे होटल में ही रात बिताई और बड़े होटल वाले को यह कह कर मना कर दिया कि “जहाँ अमेरिका का एक साधारण नागरिक सम्मानपूर्वक नहीं ठहर सकता, वहाँ मेरे लिए जगह निकालने की भी जरूरत नहीं है।”

*समाप्त*


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