मन में निहित विकास की उच्चतर अवस्थाएँ

March 1993

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

मानव विकास की समस्त संभावनाओं का उद्गम स्थल उसका अपना मन है। अध्यात्मवेत्ता इसे ही बन्धन-मोक्ष का कारण बताते है। मनोविज्ञानी भी अब इस तथ्य को स्वीकारने लगे है और मनःसंस्थान की गहन खोज में निरत है। उन्होंने इसे सचेतन, अचेतन और अतिचेतन के स्तरों में विभाजित किया है। सचेतन वह स्तर है जिससे जाग्रत अवस्था में रोजमर्रा के सारे कामों का संचालन होता है। अचेतन में संस्कार आदतें समायी होती है। सोते-सोते अंतरंग की गतिविधियों का संचालन भी इसी से होता है। इन दोनों से परे सबसे गहरी और आखिरी परत को अति चेतन कहा गया है।

इस अतिचेतन की मूल प्रवृत्ति उत्कृष्टता से भरपूर है। श्री अरविन्द ने अपनी अनुभूतियों के आधार पर इसे पाँच भागों में निरूपित किया है। पहला है, ‘उच्च मन,’ जो ज्योतिर्मय चिन्तन के माध्यम से प्रकट रूप से संसार में समाये सत्य को अनुभव कराता है। दूसरी ऊँची ‘परत प्रबुद्ध मन’ है जिस के द्वारा शान्ति, शक्ति, ज्योति एवं सत्य प्रतिफलित होता है। इसके द्वारा सत्य को देखा या सुना जा सकता है। इसके ऊपर तीसरा स्तर है। ‘प्रज्ञामानस’ का, जहाँ ज्ञान-ज्ञाता व ज्ञेय में कोई भेद नहीं रह जाता है। व्यक्ति सत्य के साथ गहन तादात्म्य स्थापित कर लेता है।

इसके भी ऊपर जो स्तर है-अरविन्द ने उसका नाम रखा है-’अधिमानस’ (ओवर माइण्ड) यहाँ तक विकास करने पर पहले अनुभूति में-फिर उपलब्धि में परम तत्व का साक्षात होता है। इस समीपता के बाद सायुज्यता का भाव आता है। इस एकता के बाद चेतना के सबसे गहरे स्तर ‘अतिमानस’(सुप्रामेण्टल)की ओर बढ़ा जाता है। इस स्तर को पाने पर सभी कुछ सत्य व संगीतपूर्ण है इसका साफ-साफ अनुभव होने लगता है। वैदिक ऋषियों ने इसी स्तर में पहुँच कर “सर्व खिल्विदं ब्रह्म” का अनुभव किया था।

भारतीय चिन्तन में बताये गए मानसिक विकास के इस क्रम को अब पाश्चात्य मनोवैज्ञानिक भी स्वीकारने लगे है। उन्होंने सचेतन-अचेतन के उलझाव से परे अतिचेतन के उच्चस्तरीय स्तरों की बात को भी स्वीकारा है और इस उपलब्धि को जीवन का ध्येय भी माना है। वस्तुतः कार्य कौशल से लोक-व्यवहार बनता है। बुद्धि विवेक से ठीक-ठीक निर्णय होते है। पर अन्तराल तो समूचे व्यक्तित्व का अधिष्ठाता है। इसकी परिष्कृत और विकसित स्थिति सामान्य मनुष्य को ऋषि देव मानव स्तर तक पहुँचने में समर्थ होती है। अपने भीतर विद्यमान इस देवलोक का महात्म्य अध्याक्त्ता सदा से बताते चले आ रहे हैं। उन्होंने उसकी अनुकम्पा उपलब्ध करके जीवन लाभ देने वाले अनेक प्रतिपादनों को समझाया है। सिद्धान्त और प्रयोग दोनों की उन्होंने गढ़ा, परखा और प्रचलित किया है।

तत्व विज्ञानी-नीतिशास्त्री-मनोविज्ञानी सभी इस मिले-जुले निष्कर्ष पर पहुँच रहे है कि पतन-पराभव से छूटने वरिष्ठता-उत्कृष्टता को उपलब्ध करने के लिए अति-चेतन की उच्चस्तरीय परतें खोजी-कुरेदी जानी चाहिए। पैरा साइकोलॉजी आदि माध्यमों से पिछले दिनों अचेतन की महत्ता बखानी गई है। विशेषज्ञों ने उसे जगाने-उभारने के लिए तरह-तरह के प्रयोगों की चर्चा की है। दूर-दर्शन दूरश्रवण, विचार संचालन, भविष्य ज्ञान जैसे कितने ही कला-कौशल इस संदर्भ में खोजे और परखे गए है। इस दिशा में प्रयास करने वाले परामनोविज्ञान वेत्ता इस स्तर की सीमा-बद्धता और अल्पता को समझ गण् है। आज वे इस बात पर जोर दे रहे है कि अचेतन से असंख्य गुना क्षमता वाले अति चेतन को नए सिरे से समझा और खोजा जाय। उसके अभ्युदय-अभिव्यक्ति का प्रयास किया जाय। वे मानने लगे है कि उक्त क्षेत्र की उपलब्धियाँ व्यक्ति और समाज में उच्च स्तरीय परम्पराओं का समावेश और नूतन युग का सूत्रपात कर सकने में समर्थ हो सकती है।

‘साइकोलॉजी ऑफ इंट्यूशन” नामक अपनी कृति में प्रख्यात मनोविज्ञानी ए.मिली-माइकाल्ट ने बताया कि अतिचेतन मन शरीर एवं व्यक्तित्व की चेतना का अति सूक्ष्म एवं तर्क बुद्धि से जो निष्कर्ष निकाले जाते है उनसे भी कहीं अधिक महत्वपूर्ण समाधान उच्च-चेतन मन की सहायता से मिल सकता है। इस तन्त्र की उजागर करने का मतलब है एक ऐसे देवता का साथ पा लेना जो सिर्फ सलाह ही नहीं देता, वरन् सहायता भी करता है।

ख्यातिलब्ध हैम्फ्री अपने ग्रन्थ “वेर्स्टन एप्रोच ट्र मैन” में कहते है कि “बुद्धि-वैभव से इस संसार की जो सेवा हुई है, उसकी तुलना में उच्च चेतन की सहायता से थोड़े से लोगों ने जो काम किया है, उसकी तुलना नहीं हो सकती। एक महामानव हजार प्रवक्ताओं से बढ़कर होता है। इसी प्रकार एक महामनस्वी के द्वारा बनाया गया वातावरण हजारों अधिकारियों तथा अध्यापकों की तुलना में अधिक प्रभावोत्पादक सिद्ध होता है। मनीषियों का दायित्व है कि जिस तरह प्रकृति के रहस्यों की खोज कर सुविधा-संपन्नता में वृद्धि की गई है, उसी प्रकार वे अन्तराल की उत्कृष्टता को खोजने-बढ़ाने तथा लाभान्वित होने के लिए जन साधारण का मार्ग-दर्शन करें।”

सुप्रसिद्ध दार्शनिक हेनरी बर्सो का कथन है-समय की जटिलताओं को न सुविधा सम्वर्धन से-न दाव-पेंच से और न बुद्धि चातुर्य से सुलझाया जा सकेगा। प्रस्तुत जटिलताओं कर समाधान पाने के लिए उस महाप्रज्ञा को जगाने की जरूरत है जो अन्तःकरण की गहराइयों में बसती है और ईश्वरीय प्रेरणाओं से मनुष्य को अवगत कराती है।

विलियम मैकडूगल के मतानुसार-अचेतन से भी ऊँची परत-अतिचेतन या उच्च चेतन की अभी जानकारी भर मिली है। अगले दिनों उसे अच्छी तरह जाना-समझा जा सकेगा। तब यह समझ में आ सकेगा कि सामान्य जीवन क्रम का सूत्र संचालन करने वाले अचेतन की कुँजी इस अंतःचेतना के पास ही है। अगले दिनों जब उच्च चेतन का स्वरूप व उपयोग ठीक प्रकार समझा जा सकेगा तब व्यक्तित्वों के प्रतिभाओं के क्रान्तिकारी परिवर्तनों के सम्बन्ध में वैसी कोई कठिनाई न रहेगी जैसी आज है।

मानव-जीवन में विकास की उच्चस्तरीय सम्भावनाएँ मन की उच्चस्तरीय परत अतिचेतन की असीम क्षमता को आज जिसे पाश्चात्य मनोवैज्ञानिक खोजने में लगें है, ऋषियों ने हजारों वर्ष पूर्व अपने अनुभवों और प्रयोगों के आधार पर जान लिया था। आधुनिक युग में मानसिक विकास की उन अवस्थाओं की सिलसिले वार व्याख्या श्री अरविन्द ने अपनी कृतियों “लाइफ डिवाइन” “सिन्थेसिस ऑफ योग“ आदि में करके ऋषि चिन्तन को एक वैज्ञानिक आधार पर प्रतिष्ठित किया है। उनके अनुसार मन में निहित विकास की इन उच्च अवस्थाओं को प्रकट करने के लिए शारीरिक, मानसिक एवं व्यावहारिक परिष्कार करने की जरूरत पड़ती है। गुण, कर्म स्वभाव में उत्कृष्टता का समावेश करना पड़ता है। महर्षि अरविन्द की सहयोगिनी श्री माँ के शब्दों में इसके लिए सरल तरीका है-अपनी एकाग्रता को प्रगाढ़ बना लेना। काम-छोटा हो या बड़ा उसे समूची एकाग्रता पहले अचेतन की शक्तियोँ को प्रकट करती है। धीरे-धीरे इसके अन्तर्मुख होने पर अतिचेतन की एक-एक परतों के रहस्य उजागर होते जाते है।

इस तरह प्रत्येक क्षण का उपयोग विकास के साधन के रूप में किया जा सकता है। जीवन के सामान्य कार्यों में भी इसकी पवित्रता प्रखरता की झलक आने लगती है।

परमात्मा ने हमें उच्चस्तरीय मानसिक एवं आत्मिक चेतना के जिस अगाध सम्पत्ति का उत्तराधिकारी बन पाया है, उसे यों ही कुसंस्कारों की मिट्टी धूल से ढँका रहना ठीक नहीं है। इसके लिए ऋषियों -महामानवों द्वारा बताए गए कारगर, परिष्कार उपायों को सतत् अभ्यास उपयोग उपयोग में लाकर देव-मानव स्तर का विकसित जीवन प्राप्त किया जा सकता है नर से नारायण बनने का जीवन लक्ष्य साधा जा सकता है।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118