सृजन-संवेदना (kavita)

March 1993

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प्रिय! कुछ ऐसा करो कि, प्राण पुनः यह संस्कृति पाये। अगली पीढ़ी नित्य नमन में, वेद ऋचाएँ गाये॥

सभी बीज बोने से पहले, उसे जाँच लेते हैं। जैसा जहाँ चाहिए पानी, और खाद देते हैं॥

हम भी अगली पीढ़ी को, शुभ संस्कारों से भर दें। प्रज्ञा, मेधा जाग्रत हो, कुछ ऐसा ज्ञान प्रखर दें॥ फिर से कोई उठे, विवेकानन्द बने, यश पायें॥

दे सम्मान बड़ों को, छोटों की विनम्रता, हँसकर। हों निश्चित बड़े भी, रहे न उन्हें अवज्ञा का डर॥

फिर से गत रामत्व जी उठे, हर घर बने अयोध्या। क्यों चरित्र का पुष्प खिलेगा, आज नहीं यदि बोया॥ ऐसा हो यदि घर और शाला, गुरुकुल ही बन जाये॥

आज बनाएँगे जो आकृति, वही कड़ी कल होगी। होगा जब उपचार तभी, जीवन पायेगा रोगी॥

आज हुआ है जितना हनन, चरित्र नाम के बल का। उससे बचा रहे जीवनक्रम, आने वाले कल का। हर माली यह सब सोचे, तब अगली फसल उगाये॥

विकसे निज अध्यात्म, श्रेय दें फिर सब पर-सेवा को। छिलकों को दें मान, तजें दुर्योधन की मेवा को॥

बतला चुका, शरीर भेद-विज्ञान-हमारा भाई। किंतु महत्ता आत्मतत्व की, संतों ने ही गायी॥ पड़ी जरूरत-इन दोनों को, आज मिलाया जाये॥

-माया वर्मा


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