आत्म वाडरे ज्ञातव्यः

March 1993

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

औरों की बुराइयाँ देखने के लिए ललचाने वाले बहुत है, परन्तु अपनी ओर देखने का अभ्यास बहुत कम लोगों को होता है। थियाँलाजियन मेस्टर एकहाँर्ट ने इसी मानवीय दुर्बलता को इंगित करते हुए कहा था-”बहुत कम लोग मौत के पहले अपने आपको पहचान पाते हैं। बहुत कम व्यक्ति अपने जीवन में सभी शक्तियों को प्रकट करते है; बाकी तो उन्हें साथ लिए ही मर जाते है। हममें से अनेकों ईश्वर के संदेश को संसार को दिए बगैर यहाँ से चल देते है।”

पच बात तो यह है कि हमारे अन्दर ढेर की ढेर गुप्त शक्तियाँ सोई पड़ी है और हम है अपनी इन योग्यताओं-क्षमताओं का पता तक नहीं करते। इन विभूतियों के जखीरे की ओर आँख उठा कर भी नहीं देखते। यह ठीक है कि बाहर की अनेकों चीजों जानकर हम ज्ञानवान कहलाए, पर यह भी कम जरूरी नहीं कि हम अपने को पहचानना भी सीखें। जो खुद की ओर नजर डालने की कोशिश करता है, वहीं महान बनता है। ऐसा व्यक्ति कठिनाइयों तथा बाधाओं पर विजय पाकर सतत् उन्नति करता है।

महापुरुषों का जीवन निहारें। उनकी हर भूल उन्हें कुछ नया सुधार करने की सीख देती रही। यदि आप में भी महान बनने की ललक लगे, चाहत उठे तो दूसरों को तुच्छ समझने की, उनमें छिद्रान्वेषण करने की नजर का परित्याग कर दीजिए। दूसरों को तुच्छ समझने वाला मनुष्यत्व खो देता है। अच्छा हो औरों की गलतियाँ खोजने की अपेक्षा अपनी कमियाँ ढूंढ़े। उन्हें दूर करने के लिए प्राण-पण से जुट जाँय। अपनी शक्तियों को पहचानने और उनका सदुपयोग करने में ही मनुष्य जीवन की शान है।

अगणित विभूतियों की विरासत सौंपते समय परमात्मा ने विश्वास किया था, कि इनका दुरुपयोग न होगा। उदर पूर्ति और सन्तान वृद्धि में अपनी अलौकिक सामर्थ्य को खो बैठने के लिए उतारू हो जाना न केवल स्पष्ट के प्रति विश्वासघात है, बल्कि यह आत्मघात भी है। आप जो भी काम कर रहे हैं, उससे हजारों गुना ज्यादा काम करने की ताकत आपके भीतर है। जरूरत है तो केवल इस बात की कि खुद की महत्त्व समझें, शक्तियों को पहचानें तथा समय का सदुपयोग करें। जीवन का एक-एक पल बेशकीमती है, उसे बरबाद न जाने दें।

जिस शुभ काम की इच्छा जगे, उसे आज और अभी शुरू कर दीजिए। अत्यंत महत्त्वपूर्ण होगा वह क्षण, जिस पल आप यह अनुभव कर पायेंगे कि विश्व-वसुन्धरा को आपकी आवश्यकता है। आपके भीतर एक और व्यक्तित्व से अनेकों गुना महान है। जिस क्षण व्यक्ति अपनी इस गरिमा की झलक पा लेता है, उसके पाँव मानव से महामानव बनने की डगर पर चलने के लिए मचल उठते है।

हो सकता है-आपका वर्तमान कठिनाइयों-बाधाओं कसे पूरी तरह घिर गया हो। आपत्तियों ने आपके व्यक्तित्व को विकसित न होने दिया हो। पर इसमें घबराने की क्या बात है? अग्नि की बढ़ती तपन का मतलब है सोने की और अधिक चमक। चन्दन की और अधिक घिसाई का अर्थ है-सुगंध का प्रतिफल नया विस्तार। मानव व्यक्तित्व भी कुछ ऐसा ही है, जब तक विपत्तियां इसे आक्रान्त न करें, इसकी विभूतियों की चमक तीव्र नहीं हो पाती। अतएव आत्म निरीक्षण के द्वारा अपने आप की गरिमा को पहचानिये। जैसे किसी प्रतिभा का अंकुर आपको अपने अन्दर दिखलाई पड़े, उसको पुष्पित पल्लवित होने का अवसर दीजिए। कौन जाने कल के समुज्ज्वल भविष्य में आप संसार के महान कलाकार बन जाँय, विश्व प्रसिद्ध लेखक होने का गौरव प्राप्त करें। भावी समाज आपको दार्शनिक या राजनीतिज्ञ के रूप में पा कृतकार्य हो। करना सिर्फ इतना है कि स्वयं की शक्तियों को पहचानिये-और सतत् बढ़ते रहिए।

जो स्वयं के तत्त्व को जान लेता है, परम तत्त्व को जानना उसी से संभव है। ऐसे महान व्यक्तित्व ईश्वर के सृजन संदेश को प्रसारित करने के लिए ईश दूत की भूमिका निभाते है।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118