क्या सुदूर अतीत का पुनरावलोकन संभव है?

March 1993

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

वर्तमान से भूत में प्रवेश कर सकना संभव है क्या? विज्ञान का बुद्धिवाद तो यही कहता है कि यह न सिर्फ असंभव है, वरन् अकल्पनीय भी। जो समय बीत गया, जो व्यक्ति नहीं रहे अथवा जिस वस्तु की सत्ता समाप्त हो चुकी है, उनके बारे में बिना किसी माध्यम के स्वयमेव जानकारी प्राप्त कर लेना बालू की दीवार खड़ी करने के समान है, पर अध्यात्मवाद की इस संबन्ध में सर्वथा विपरीत मान्यता है। वह तो यहाँ तक कहता है कि भविष्य के गर्भ में प्रवेश कर सकना शक्य है। दिक्-काल से परे जाकर कभी-कभी सुदूर अतीत में भी मन जा ही नहीं सकता,उस समय की घटनाओं को हस्तामलकवत अपने सामने देख सकता है

यदा-कदा घटने वाली कुछ घटनाक्रम इसी तथ्य की पुष्टि करते हैं। 10 अगस्त 1901 का दिन। इंग्लैण्ड के आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के सेण्ट हम्स महिला कॉलेज की प्राचार्या एनी मोबरली एवं उप प्राचार्या एलीनर जोरडैन फ्राँस के “पैलेस ऑफ वर्सेल्स” के उद्यान में घूम रहीं थी। दोपहर का समय था। पुष्पों की सुगंध से वातावरण सुवासित हो रहा था। रंग-बिरंगे फूलों की छटा और मनमोहक वृक्षों की पंक्तियाँ वहाँ की सुषमा को चार चाँद लगा रही थीं। इतने पर भी न जाने क्यों वे कुछ विचित्र और विलक्षण अनुभव कर रही थीं। प्रतीत ऐसा हो रहा हो, जबकि प्रत्यक्ष जीवन और वर्तमान क्षणों में एसी कोई बात दीख नहीं सके। मन का भ्रम समझ कर वे दोनों इसे टालती रहीं और घूमती भी रहीं। इसी बीच बातचीत के दौरान उन्होंने “पेटिट ट्रायनन” देखने का निश्चय किया। यह विशाल महल के उस भाग का नाम है, जो फ्रांस के तत्कालीन शासक लुईस 16 वें एवं रानी मेरी एण्ट्वायनेट का निजी निवास था। गहरी वार्तालाप में संलग्न तुरन्त उन्हें यह ज्ञात हुआ कि वे मार्ग भटक चुकी हैं। उन्होंने नये सिरे से खोज आरंभ की, किन्तु यह .या। अनुभूति यथार्थता में परिवर्तित होती जान पड़ने लगी। दोनों को ऐसा महसूस होने लगा, जैसे वे नींद की स्थिति में स्वप्नवत् टहल रही हों। अभी कुछ पल बीते थे कि प्रतीति बदली। जो बगीचा कुछ समय पूर्व तक वीरान नजर आ रहा था, अब उसमें चहल-पहल दिखने लगी। वे चौंकी। इसके साथ ही उन्हें सामने खड़े दो व्यक्ति दिखाई पड़े, जो संभवतः माली थे। उनका पहनावा सदियों पुराना लग रहा था। वे लम्बे कोट और विशिष्ट प्रकार के हैट लगाये हुए थे, जिनका प्रचलन उन दिनों फ्राँस में बन्द हो चुका था। उन दोनों ने माबरली और उसकी उप-प्राचार्या को सीधे आगे बढ़ जाने का संकेत किया। थोड़ी दूर आगे जाने पर उन्हें एक पेड़ के नीचे एक व्यक्ति बैठा दिखाई पड़ा। वह भी एक विचित्र ढंग का लबादा एवं हैट पहने हुए था और शक्ल-सूरत से दष्ट जान पड़ता था। उसे देख कर दोनों भयभीत हो गई। सामने ही एक अन्य व्यक्ति खड़ा मिला, जिसने “पेटिट ट्रायनन”का पता बताया। यह व्यक्ति भी फ्राँस में अति प्राचीन समय में पहने जाने वाले लिवास में सुसज्जित था। उसके बताये रास्ते से दोनों कुछ दूर बढ़ी, तो निकट ही घास के मैदान में बैठी एक महिला मोबरली को दिखाई पड़ी, जो जमीन में कोई चित्र बना रही थी। अचानक उसकी दृष्टि मोबरली पर पड़ी। उसने विचित्र ढंग से उसे घूरा, जो मोबरली पर पड़ी। जो मोबरली को भीतर तक हिला गया। जल्द ही वे राजमहल के अन्दर प्रवेश कर गयी। इसके साथ ही उनका अवसाद न जाने कैसे कहाँ गायब हो गया। कुछ ही क्षणों में वहाँ एक वैवाहिक दृश्य उपस्थित हुआ, जिसमें उनकी पूर्व की दुःखद अनुभूति सदा-सदा के लिए तिरोहित हो गई।

यह सब कुछ थोड़े ही समय में घटित हो गया था। लौटते समय वहाँ न तो वह महिला दिखाई पड़ी न मार्ग बताने वाले व्यक्ति। उद्यान और महल एक बार फिर पूर्णतः जनशून्य थे। इस भ्रमण के एक सप्ताह उपरान्त मोबरली अपनी एक मित्र को पत्र लिखने बैठी, तो एक बार फिर वह वैसा ही अवसादग्रस्त अनुभव करने लगी, जैसा राजमहल और बगीचे के अवलोकन के दौरान इतनी प्रबल थी कि वह अपनी उप-प्राचार्या से इस संबंध में चर्चा करने के लिए विवश हो गई। चर्चा से पता चला कि मोबरली की सहयोगी को भी भ्रमण के दौरान लगभग वैसा ही अनुभव हुआ था, जैसा स्वयं मोबरली को। भिन्नता मात्र इस बात की थी कि जो चित्र बनाती नारी मोबरली को दिखाई पड़ी थी, जोरडैन को उसके दर्शन नहीं हुए थे। उन्होंने तभी यह निश्चय कर लिया था कि स्वदेश लौटने पर वे इस बात की गहराई से खोजबीन करेंगी कि वर्सेल्स में जो कुछ उन्हें अनुभव हुआ, वह मात्र भ्रम था या सत्य।

एक महीने की फ्राँस के इतिहास के अध्ययन से ज्ञात हुआ कि ठीक उसी दिन जिस दिन प्राचार्या एवं उप-प्राचार्या ने”पैलेस ऑफ वर्सेल्स” की यात्रा थी, उससे 119 वर्ष पूर्व अर्थात् 10 अगस्त 1792 को फ्राँस के तात्कालीन शासक लुईस 16 वें एवं उनकी रानी मेरी एण्ट्वायनेट को पेरिस में कैद कर ऐ छोटे कमरे में बन्द कर दिया गया था। इस दौरान राजा-रानी को असह्य वेदना सहनी पड़ी थी। संभवतः इसी वेदना की अनुभूति मोबरली एवं उप-प्राचार्या को मानसिक अवसाद के रूप में हुई हो।

फ्राँस के प्राचीन इतिहास को पढ़ने से यह भी विदित हुआ कि 1789 में राजमहल और उद्यान बिल्कुल उसी रूप में थे जैसा कि भ्रमण काल में उन्होंने देखा था। यह भी पता चला कि उन दिनों की पोशाक ठीक वैसी ही थी, जैसी कि भ्रमण उनने पेटिट ट्रायनन में विवाह समारोह में देखी थी। मोबरली के आश्चर्य का तब कोई ठिकाना न रहा, जब उन्होंने इतिहास के पन्नों को पलटत् हुए मेरी एण्ट्वायनेट का एक चित्र ढूँढ़ निकाला। अब उन्हें मालूम हुआ कि यह तो वह महिला है, जिसे उनने जमीन पर चित्र बनाते देखा था, अर्थात् तत्कालीन राजमहिषी-मेरी एण्ट्वायनेट।

इस खोज एवं यात्रा के मध्य हुए विलक्षण अनुभव से दोनों की जिज्ञासा बढ़ी, तो दो वर्ष पश्चात् उन्होंने पेरिस की पुनः यात्रा की। वे एक बार फिर “पैलेस ऑफ वर्सेल्स” एवं उसके उद्यान में पहुँची, पर उन्हें यह देखकर भारी आश्चर्य हुआ कि दो वर्ष के इतने स्वल्प अन्तराल में यहाँ इतना बदलाव कैसे आ गया। न तो महल अब उस स्थिति में दिखाई पड़ रहा था और न बगीचे का ही वह चित्ताकर्षक स्वरूप रह गया था। लोगों से इस विषय में जब पूछताछ की गई तो पता चला कि वर्षों से यह भवन और उपवन इसी रूप में हैं, जो वर्तमान में दिखाई पड़ रहा है। विभिन्न इतिहासकारों और प्राचीन ग्रन्थों के माध्यम से ही यह सुनिश्चित हो सका कि दो वर्ष पूर्व इस राजप्रसाद और उपवन का जो दृश्य दिखाई पड़ा था, वह 112 वर्ष पहले के इनके स्वरूप से बिल्कुल मिलता-जुलता है।

इस अनुभव व शोध के आधार पर दोनों अध्यापिकाओं ने एक पुस्तक लिखी-”एन एडवेन्चर”। इसके अन्त में वे विभिन्न प्रकार की संभावनाओं व साक्षियों का वर्णन करती हुई इसी निष्कर्ष पर पहुँची हैं कि दो वर्ष पहले उक्त महल के अवलोकन के दौरान वे थोड़े समय के लिए एक भिन्न आयाम में पहुँच गई थी, जिसने उन्हें एक शताब्दी पीछे धकेल कर महल और उद्यान के उस समय की झाँकी दिखायी थी।

तो क्या ऐसा संभव है? या यह एक कल्पना मात्र है? समय से पीछे जाकर उस वक्त की सभ्यता और संस्कृति की जानकारी प्राप्त की जा सकती है क्या? विज्ञान और बुद्धिवाद की दृष्टि से विचार किया जाय, तो असंभव जैसा प्रतीत होगा, किन्तु अध्यात्म में इसका सुनिश्चित उत्तर “हाँ” में दिया जा सकता है। उसके अनुसार न सिर्फ समय से पीछे जाकर किसी व्यक्ति, वस्तु या घटना की विस्तृत जानकारी प्राप्त कर सकना संभव है, वरन् समय से बहुत आगे निकल कर भवितव्यता को भी जाना जा सकता है। योगी लोग इसी आधार पर भूतकालीन घटनाओं और भविष्य की संभावनाओं को सरलता से बता देते है।उनके लिए दिक्−काल (टाइम एण्ड स्पेस) का सीमाबन्धन समाप्त हो जाता है। वे फिर इनसे परे उन्मुक्त विचरण कर सकते हैं, किसी भी लोक अथवा कालखण्ड में प्रवेश कर उसकी जानकारी अर्जित कर सकते है। अध्यात्म-अवलम्बन से कम में ऐसा संभव नहीं। भूतकाल में भी ऐसा आध्यात्मिक सिद्धान्तों को जीवन में उतार कर ही संभव हो सका था। वर्तमान में यदि किन्हीं विरलों में इस प्रकार की शक्ति दिखाई पड़ती है, तो उसकी पृष्ठभूमि में अध्यात्म साधना के अवलम्बन को ही प्रमुख माना जा सकता है। हर किसी के द्वारा ऐसा अध्यात्म उपचारों का प्रयोग करना शक्य है, इसे एक सुनिश्चित तथ्य मानना चाहिए।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118