कितने ही व्यक्ति अनीति को देखकर उदास तो होते है, पर उसके प्रतिकार के लिए कुछ नहीं करते।
बंगाल के राजा राम मोहन राय उनमें से न थे। उन दिनों सती प्रथा का प्रचलन था। परिवार वाले विधवा के भरण-पोषण के उत्तरदायित्व से बचने के लिए उसे सती हो जाने के लिए जोर देते थे। राजा राम मोहन राय की भाभी को इसी प्रकार बल पूर्वक सती कर दिया गया था। वह करुण दृश्य वे कभी भूल न सके।
राजा साहब ने प्रतिज्ञा की कि वे इस कुप्रथा का अंत करा कर रहेंगे। उनने सरकार की सहायता से सती प्रथा विरोधी कानून पास कराया। विधवा विवाह को भी न्यायसम्मत बनाने के लिए उनने शक्ति पर प्रयत्न किया। प्रयास किया और कानून बनवाया।
अन्याय के प्रति रोष की सार्थकता तभी है, जब उसके उन्मूलन के लिए कारगर प्रयत्न किया जाय।
उन दिनों श्री जाकिर हुसैन जामिया-मिलिया के अधिष्ठाता थे। छात्रावास की भी वे ही देखभाल करते थे।
उस दिन उन्हें छात्रावास निरीक्षण के लिए जाना था। दरवाजे में प्रवेश किया तो देखा लड़के भोजनालय में हैं। दरवाजे पर सभी के जुते अस्त-व्यस्त पड़े हैं। सबसे पहले उनने जूते लाइन से लगाया और पोंछकर ठीक किये।
इसके बाद भीतर घुसे, तो देखा कि लड़के रसोइये से लड़ रहे हैं। रोटी केकच्ची-जली होने की शिकायत कर रहे है। दासल को पतली बता रहे हैं। उनने बीच में एक थाली रख रखी थी, जिसमें रोटियों का नापसंद भाग और दाल का ऊपर का पानी जमा करते जा रहे थे फेंकने और अफसरों को दिखाने के लिए। लड़ रहे थे सो अलग।
जाकिर साहब पहले तो एक कोने में खड़े होकर यह सब देखते-सुनते रहे। पीछे वे बीच वाली थाली के पास पहुँचे और बैठकर उस फेंके गये सामान को खाने लगे।
लड़के स्तब्ध रह गये। जाकिर साहब ने कहा-”बच्चो! हम लोग जिस देश में रहते हैं। उसमें करोड़ों को ऐसा भी नहीं मिलता, जितना कि तुमने फेंक दिया है। खाना बरबाद करने से पहले यह भी तो सोचना चाहिए।”
लड़कों ने माफी माँगी और भविष्य में सादगी से काम चलाने का आश्वासन दिया।