बड़प्पन चुनें या महानता ?

March 1992

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गहरी मित्रता थी दोनों में । सगे भाइयों में भी ऐसा स्नेह कम ही देखने को मिलता है । यद्यपि दोनों की प्रकृति उनके शरीर की बनावट की भाँति बिल्कुल अलग थी, लेकिन यह विषमता उनके सम्बन्ध साम्य में दरारें नहीं डाल पाई ।

बिलीब्राण्ड मोटा था, मोटी और मजबूत थी उसकी उंगलियां उसका मुख्य गोल और चौड़े जबड़े वाला था । ब्राण्ड को न दाढ़ी रखना पसन्द था न मूंछें । था तो वह भी एक सामान्य किसान लेकिन उसके चिन्तन असामान्य थे । अरबपति बनने से कम की कल्पना में उसका मन न रमता ।

मेरे हल्के-फुल्के दोस्त! यदा-कदा वह हेंस से कहता ‘हम चूहे या गुबरैला नहीं हैं कि सदा मिट्टी खोदते रहेंगे । हमें आगे बढ़ना ही होगा । हाउस ऑफ लार्ड्स में भी हम तुम जैसे मनुष्य ही हैं ।’

‘आगे बढ़ने का अर्थ छीन झपटकर कुछ बटोर लेना नहीं होता ।’ हेंस मित्र को समझाने का प्रयास करता । मैंने हाउस ऑफ लार्ड्स के सदस्यों को देखा है वे पाइप या सिगार पीकर या डाक्टरों की गोलियाँ खाकर जीवन काटते हैं । गुस्से में भरी बिल्लियों के समान झगड़ते हैं । तकिए के नीचे रिवाल्वर रखकर भी उन्हें नींद लेने के लिए डाक्टर की दवा लेनी पड़ती है । अपनी पत्नी और बच्चों से भी सशंक रहते हैं और उनकी पत्नी तथा पुत्र भी उन्हें धोखा दे जाते हैं । वे ईश्वर से तो कोसों दूर हैं ही सुख सन्तोष शाँति ने भी उन्हें अछूत मान लिया हैं । ऊँचा-बड़ा मकान चमचमाते वाहन, अच्छे भड़कीले कपड़े और दर्जनों सैल्यूट ठोकने वाले अर्दली-इन पर खुश होने वाले वे भोले बालकों के समान हैं।

‘बन्द तो करो अपना लेक्चर ।’ ब्राण्ड की झल्लाहट हँसी में बदल जाती । हम अपने खेत पर खड़े हैं , गिरजाघर की वेदी पर नहीं ।

शायद वे दोनों-अपने जीवन शकट को इसी तरह चलाते रहते । किन्तु पूरे यूरोप में उन्हीं दिनों सांप्रदायिकता का उन्माद छा गया । मनुष्य पिशाच बन गया था । मनुष्य की हत्या करके वह स्वयं धर्मात्मा मानने लगा । पृथ्वी मानव रक्त से लाल और काली हो गई और आकाश चीत्कारों से सिर धुनने लगा था । ब्राण्ड पहले ही उत्सुक था दक्षिण अमेरिका जाकर सोने की खदान ढूँढ़ने के लिए । हेंस को इस मानव उन्माद ने मातृभूमि छोड़ने के लिए विवश किया ।

जिन दिनों वे अमेरिका पहुँचे वह आज का अमेरिका न था । अभी-अभी सभ्य समाज पता कर पाया था उस ‘नयी दुनिया’ का । ब्रिटेन ने उस अपना उपनिवेश बनाया था । पूरा देश वनों से भरा था-वन भी खूब सघन जिनमें वन्य पशुओं का आतंक था । पर शायद मानव आतंक से कम तभी तो लोग भाग-भाग कर यहाँ आ रहे थे । ढेरों यूरोपीय परिवार प्रतिदिन जहाजों से उतरते जा रहे थे ।

स्थानीय अधिकारियों को भी इसमें उत्सुकता थी कि उपनिवेश की आबादी बढ़े । भूमि खाली पड़ी थी और आगतों को आर्थिक सुविधा बना लें तथा जमीन को इस लायक बनावें कि वह वन्य जन्तुओं को आश्रय देने की जगह मानव को आहार दे सके ।

ब्राण्ट और हेंस भी औरों की तरह सपरिवार आए थे । दूसरों के समान ही इनके पास भी केवल अपने उद्योगशील शरीर की ही पूँजी थी ।

इन्हें भी औरों की तरह भूमि और आर्थिक सहायता प्राप्त हो गई । दोनों ने पड़ोस में भूमि ली- पास में घर बनाए थमा हुआ जीवन शकटिफर चल पड़ा ।

‘मैं केंचुओं की तरह जमीन खोदने यहाँ नहीं आया हूँ । ब्राण्ट बार-बार झुंझला उठता । उसे आश्चर्य होता अपने मित्र हेंस पर जो मेहनत के साथ खेती करता बचे समय में आबादी के बच्चों को लेकर पढ़ाता-लिखाता, उन्हें भाँति-भांति के शिक्षण देता । इन शिक्षणों को जब वह व्यक्तित्व विकास की तकनीक कहता तब ब्राण्ट को हँसी आ जाती ।

“मुझे तुम्हारी राह पसन्द नहीं । तुम मार्था की भली प्रकार देख-रेख कर सकते हो । मुझे इसी फसल की चिन्ता है । इसके बाद मैं दक्षिण चला जाऊंगा । फिर लौटने पर ता ़़़़डडडड” उसका मुख कल्पनाओं की सुनहरी आभा से चमक उठता ।

लेकिन उसे कई फसलों की प्रतीक्षा करनी पड़ी उस समय मशीनें थी नहीं । मजदूरों का अभाव था । जो गुलाम आते थे वे सोने की खानों में खप जाते थे । फिर मार्था अब अकेली कहाँ थी । नन्हे हेनरी की भी तो उसे सार सँभाल करनी थी ।

‘मेरा हेनरी बनेगा अमेरिका का सबसे बड़ा उद्योगपति’- ब्राण्ट की महत्वाकांक्षा की उद्दाम लहरें नन्हें शिशु को लपेट लेतीं ।

लेकिन इस बार फसल अनुकूल होते ही ब्राण्ट ने तैयारी कर ली । बहुत प्रतीक्षा के बाद आया था यह दिन । बोला-”मित्र हेंस । मार्था का ध्यान रखना । “ अपनी पत्नी से उसे प्यार है पर बड़प्पन से कम । दक्षिण के दुर्गम वनों में डाकुओं से भरी भूमि में इसी सुनहले बड़प्पन को ही खोजने तो जा रहा है ।

“ईश्वर तुम्हारी रक्षा करें । “ हेंस ने मित्र को विदा दी । एक मात्र वह था जिसे दक्षिण का सुवर्ण आकर्षित नहीं कर पाया था । अपनी खेती के अलावा उसने ढेरों नए-नए क्रियाकलाप चला रखे थे । मजाक में वह इन क्रियाकलापों को भी खेती कहता-महानता की खेती ।

काल के झकोरों में जीवन की किताब के अनेकों पृष्ठ उलटते गए । निस्संदेह अब जीवन का नया अध्याय सामने था । राजधानी के नगर में ब्राण्ट ने आलीशान कोठी बना ली । उसका बालक युनिवर्सिटी में पढ़ने लगा । उसकी अपनी कम्पनी खड़ी हो गई । अब वह अति विशिष्ट कहे जाने वाले व्यक्तियों में से एक था ।

हेंस ने भी अपने जीवन का विस्तार किया था । समूची आबादी उसकी अपनी थी । खेती के काम के अलावा वह बचे समय में लोगों को पढ़ाता-बाइबिल की कहानियाँ सुनाता । बच्चों के शिक्षण की व्यवस्था उसकी पत्नी एलन ने सम्भाली थी । कृषि उत्पादन से जुड़े हुए ढेरों छोटे-छोटे उद्योग उसने ढूँढ़ निकाले थे । पर इनमें से एक भी उसका अपना न था । वह तो सिर्फ शिक्षक और अन्वेषक था । उद्योग ग्रामवासी क्षेत्र में रहने वाले लोगों के थे । सभी का वह अपना था। सभी उसके थे । उसके जीवन से जैसे सहकार , प्रेम सदाशयता की नित नई रश्मियाँ फूटतीं । यदा-कदा नगर जाकर अपने मित्र ब्राण्ट से मिल आता ।

आज तो एकदम प्रातः ब्राण्ट की मोटर हेंस के दरवाजे पर आ खड़ी हुई । नगर का प्रख्यात उद्योगपति इस देहात में ।

“कितने स्वस्थ और प्रसन्न हो तुम हेंस।” ब्राण्ट के स्वर में ईर्ष्या न थी । “अब भी तुम दस साल पहले की भाँति लगते हो । तुम्हारी छोटी दाढ़ी के सब बाल पहले जैसे काले और सुन्दर हैं । कितना प्यार पाया है तुमने ।” ब्राण्ट ने बस्ती में घुसते ही जान लिया था कि हेंस सभी के दिलों में बस चुका था।

“तुम्हारे खिलौनों की क्या हालत है ?” हेंस पता नहीं क्यों बड़े भवनों, मोटरों, आभूषणों को खिलौने कहता है ।”

इन सालों में ब्राण्ट और भी मोटा हो गया था । उसकी तोंद निकल आयी है । उसका मुख शरीर के अनुपात में छोटा लगने लगा, और उसके गंजे सिर के बचे-खुचे केशों में आधे से अधिक सफेद हो चुके थे । उसकी उँगली की अँगूठी में बड़ा सा हीरा चमक रहा था ।

“वे सब ठीक हैं और बढ़ रहे हैं ।” शायद पहली बार ब्राण्ट ने हेंस की हँसी नहीं उड़ाई । “तुम ठीक कहते हो ये सब खिलौने हैं और ये खिलौने भी शैतान के दिये हुए । ये आदमी को अपने में बुरी तरह उलझा देते हैं ।”

“बात क्या है ?” हेंस चौंका । ब्राण्ट और ऐसी बातें करने लगे-आश्चर्य स्वाभाविक था ।

‘मैं तुम्हारे पास रहने आया हूं । पता नहीं क्यों तुम्हारे पास मुझे एक अजीब शान्ति मिलती है ।’

“तुम किसान बनोगे ?” हेंस को कुछ समझ में नहीं आ रहा था । “तुम्हारी महानता की फसल के बीच कुछ समय बिताऊँगा ।” ब्राण्ट ने शान्त स्वर में कहा “तुम देख नहीं रहे हो कि मेरा बड़प्पन मुझे खाए जा रहा है । मुझे अब तीसरे दिन डाक्टर बुलाना पड़ता है । कई बार नींद की दवा लेनी पड़ती है । मार्था तक अब मेरा विश्वास नहीं करती । मैंने सम्पत्ति के रूप में पाया है रोग, चिंता, आशंका, और स्वजनों का अविश्वास । “

“चलो! तुम तथ्य को अंततः समझ सके ।” दोनों के कदम एक ओर बढ़ चले । इस तथ्य को हम स्वयं कितना समझे हैं बड़प्पन या महानता ? स्वयं के जीवन पटल पर उभरने वाले इस गम्भीर प्रश्न का समुचित उत्तर हमारा प्रत्येक कर्म बने । हेंस किस्टेनसन् के जीवनीकार-हेरीहेनर ने अपनी रचना “कम्पेनियन ऑफ एनलाइटेन्ड हयूमेनिटी “ में यही विश्वास सँजोया है ।


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