अपने-अपने रास्ते चले (Kahani)

March 1992

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एक बुढ़िया और उसकी सयानी लड़की कहीं लम्बी यात्रा पर गई थीं । लड़की को चलने का अभ्यास न था वह थक गई थी और पैरों में छाले पड़ गये थे ।

उसी रास्ते एक घुड़सवार निकला । बुढ़िया ने उससे कहा । कुछ दूर मेरी बेटी को घोड़े पर बिठाले । तब तक मैं भी पैदल पहुँच जाऊँगी । घुड़सवार ने व्यर्थ झंझट में न पड़ने की बात सोच कर स्पष्ट इनकार कर दिया ।

कुछ दूर चलने पर सवार के मन में बदी आई । सोचा लड़की को ले भगाने का यह अच्छा मौका है । इसे छोड़ना नहीं चाहिए ? उधर बुढ़िया के मन में भी यह विचार आया कि मैं क्यों भूल कर रही थी । अजनबी घोड़े वाला उसकी लड़की को ले भागता तो कैसी बुरी बात होती ।

घुड़सवार वापस लौट आया और बुढ़िया से बोला । इस लड़की को घोड़े पर बिठा दो । बुढ़िया ने भी इस बार स्पष्ट इनकार कर दिया और बोली जिसने तेरे मन में नई सूझ उगाई है उसी ने मेरे कान में सावधान होने की बात कह दी है। दोनों अपने-अपने रास्ते चले गये ।


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