क्या आप बनना चाहेंगे चलते फिरते कम्प्यूटर?

March 1992

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

स्मरण शक्ति की प्रखरता से मनुष्य अधिक विचारशील समझा जाता है और उसके ज्ञान की परिधि अधिक बड़ी होती है, जबकि भुलक्कड़ लोग महत्वपूर्ण ज्ञान-संचय से तो वंचित रहते ही हैं, साथ ही दैनिक काम-काज में भी जो आवश्यक था, उसे भी भूल जाते व समय-समय पर घाटा उठाते तथा ठोकर खाते हैं।

कइयों में प्रखर स्मृति जन्मजात रूप से भी पायी जाती है एवं वह इतनी तीक्ष्ण होती है कि दूसरे लोग चमत्कृत होते और अवाक् रहते देखे जाते हैं। ऐसा ही एक व्यक्ति ग्लोसीस्टरशायर इंग्लैण्ड में सन् 1901 से 60 के दशक के बीच था। जान फ्रेजर नामक यह व्यक्ति जन्मान्ध था, किन्तु उसे दस हजार व्यक्तियों के नाम व निवास स्थान मौखिक याद थे, इतना ही नहीं, वह आवाज सुनकर प्रत्येक का सही नाम एवं वास स्थान तुरंत बता देता। इसमें कभी भी कोई गलती नहीं हुई। ऐसी ही विलक्षणता एक आइरिस व्यक्ति में देखी गई। संयोग से वह भी अन्धा था और धन्धे से चिट्ठी बाँटने का काम करता था। उसकी अद्भुत स्मृति के कारण ही सरकार की ओर से उसे पोस्टमैन की यह नौकरी मिल सकी थी। फिलमण्ड नामक यह व्यक्ति दूसरों की सहायता से पत्रों को सिलसिले से लगाता, फिर उनका क्रम व नाम याद कर लेता। बस इतने भर से हर दिन सैकड़ों चिट्ठियां बाँटने में उसकी स्मरण शक्ति काम दे जाती । जब तक वह नौकरी में रहा, पत्र बाँटने में उसने कभी भी कोई गलती नहीं की और न औरों को किसी प्रकार की शिकायत का मौका ही दिया।

जर्मनी का नेबूर नामक व्यक्ति अपनी इसी प्रतिभा के कारण विश्व-विख्यात बन गया। उनकी यह प्रसिद्धि भी एक विचित्र संयोग का परिणाम थी। हुआ यों कि एक बार जिस ऑफिस में वे मुंशीगीरी का काम करते थे, वहाँ अचानक आग लग गई सारी फाइलें और जरूरी कागजात इसकी भेंट चढ़ गये। इस पर नेबूर ने सारे रजिस्टरों को दुबारा मात्र स्मरण-शक्ति के आधार पर तैयार कर लिया। इसके बाद वे इसके एक-से-एक बढ़ कर प्रमाण देते चले गये और प्रतिभाशाली लोगों में गिने जाने लगे।

इज़राइल का जान जैकब नामक व्यक्ति तो चलता-फिरता कम्प्यूटर के नाम से प्रसिद्ध था। यरुशलम के निवासी जैकब को एक लाख कहानियाँ, 20 हजार कविताएँ एवं 15 हजार व्यक्तियों के नाम उनके स्थान सहित कंठस्थ थे। एक बार उनके साथ एक बड़ी मजेदार घटना घटी। उसके एक पड़ोसी ने यह निश्चय करने के लिए कि वास्तव में उसकी स्मरण शक्ति तीव्र है अथवा वह यों ही डींगें हाँका करता है, उससे “स” अक्षर से प्रारंभ होने वाली कुछ कविताएँ सुनाने को कहा। जैकब ने सुनाना आरंभ किया और एक घंटे के अन्दर ही डेढ़ सौ के करीब कविताएँ सुना गया। वह सुनाता ही जा रहा था, किन्तु जब पड़ोसी को उसकी प्रतिभा का निश्चय हो गया, तो उसे रोक दिया।

चैतन्य महाप्रभु के बारे में कहा जाता है कि वे “एकश्रुतिधर” थे, अर्थात् एकबार में सुनकर याद करने वाले। एक बार एक पंडित ने उनका शास्त्रार्थ हो गया। इसी क्रम में उसने सौ पंक्तियों का एक श्लोक सुनाया और बीच की एक निर्दिष्ट पंक्ति को चैतन्य देव से सुनाने को कहा। वे न सिर्फ उक्त लाइन को अविकल सुना गये, वरन् आद्योपांत पूरा श्लोक भी सुना दिया। यह देख ब्राह्मण हतप्रभ रह गया और शास्त्रार्थ की इच्छा त्याग उनका शिष्यत्व ग्रहण कर लिया।

राजा भोज के दरबारियों में भी एक ऐसे ही विद्वान का उल्लेख मिलता है। उसके बारे में कहा जाता है कि वह एक घड़ी (24 मिनट) तक सुने प्रसंग को तत्काल वैसा ही दुहरा देता था।

इतने पर भी यह नहीं समझा जाना चाहिए कि स्मरण रखने की विशिष्ट क्षमता कोई दैवी वरदान या जन्मजात सौभाग्य होता है। हो सकता है किन्हीं विरलों को अनायास ही प्राप्त हो गयी हो परन्तु वह अन्य शारीरिक क्षमताओं के सदृश्य एक सामान्य सामर्थ्य ही है, जिसे प्रयत्नपूर्वक आसानी से बढ़ाया जा सकता है। जिस बात पर अधिक ध्यान दिया जाता है, वह संभवतः विकसित होने लगती है और जिसकी उपेक्षा की जाती है, उसका घटना भी सुनिश्चित है। किसी प्रकरण का वर्षों तक दिमाग में बना रहना और किसी का कुछ ही दिनों में धूमिल हो जाना प्रायः इसी तथ्य पर आधारित होता है। देखा गया है कि घटनाओं के प्रति यदि अन्यमनस्कता बरती जाय, उपेक्षा भाव रखा जाय, उन्हें महत्वहीन एवं निरर्थक समझा जाय, तो स्मृति-पटल पर वे देर तक टिकती नहीं। इसके विपरीत यदि उन्हें तन्मयता के साथ एकाग्र होकर देखने-समझने का प्रयत्न किया जाय, तो उनकी छवि देर तक मस्तिष्क में बनी रहती है। वे जल्दी धुलती नहीं। यही कारण है, कि अधिकाँश महत्वपूर्ण घटनाएँ व्यक्ति को आजीवन स्मरण रहती हैं, जबकि दूसरी विस्मृत हो जाती हैं।

मनोविज्ञानी कार्ल सीशोर का कथन है कि औसत व्यक्ति अपनी स्वाभाविक स्मरण शक्ति का मात्र दस प्रतिशत प्रयोग करता है, 90 प्रतिशत तो ऐसे ही मूर्छित और अस्त−व्यस्त स्थिति में पड़ी रहती है। फलतः मनुष्य मंदबुद्धि और मूर्ख स्तर का बना रहता है। यदि प्रयास में कमी न की जाय, तो ऐसे लोग भी नियमित अभ्यास द्वारा स्वयं को बौद्धिक दृष्टि से कहीं अधिक सक्षम बना सकते हैं।

मनोवैज्ञानिकों ने विस्मरण के प्रायः तीन कारण बताये हैं (1) किसी बात को स्मरण रखे रहने की पूर्व इच्छा का न होना। (2) प्रस्तुत विषयों को पूरे मनोयोगपूर्वक समझने का प्रयत्न न करना। (3) प्रसंगों में अरुचि और उपेक्षा का भाव रहना। उनके अनुसार यदि इन तीन कारणों को हटाया जा सके, तो विस्मरण संबंधी शिकायत भी काफी हद तक दूर हो सकती है। यह ठीक है कि कुछ एक में यह ईश्वर प्रदत्त प्रतिभा के रूप में मौजूद रहती है, पर न भूलने योग्य तथ्य यह भी है कि शरीर के कई निर्बल अंगों को व्यायाम द्वारा भी सबल समर्थ बनाया जाता है। स्मरण इस बात का भी रखा जाना चाहिए कि कई अवसरों पर जन्मजात विकलाँगता को कसरत के ही माध्यम से दूर करने में काफी सफलता मिलती है, और जो शिशु प्रसवकाल में अपंग नजर आता है, उसकी अपंगता उम्र के साथ घटती नजर आती है। अस्तु किसी को यह मान्यता नहीं बना लेनी चाहिए कि स्मरण शक्ति की मंदता स्थायित्व लिए आती और आजीवन साथ रहती है।

मनःशास्त्री जॉन इर्विन ने इस बात पर जोर दिया है कि जिन तथ्यों को भविष्य में याद रखने की आवश्यकता समझी जाय, उनमें गहरी रुचि उत्पन्न करनी चाहिए और यह विचार करना चाहिए कि स्मरण से क्या लाभ और विस्मरण से क्या हानि होने की संभावना है। वे प्रसंग कब याद करने की आवश्यकता पड़ेगी एवं संस्मरणों का किस प्रकार क्या उपयोग होगा। इतना सोच-विचार कर लेने के उपरान्त किन्हीं तथ्यों की परत मस्तिष्क में देर तक जमायी जा सकेगी और उन प्रसंगों को भूल जाने की कठिनाई प्रायः नहीं ही उत्पन्न होगी।

विद्वान प्रो. मैनिहन का कथन है कि घटनाओं को मात्र उनके कल्पना चित्र के रूप में ही नहीं, वरन् तात्पर्य और फलितार्थ को भी ध्यान में रखते हुए यदि मानस पटल पर जमाया जाय, तो जल्दी याद भी हो जायेंगे और देर तक टिकाऊ भी बने रहेंगे। फिर आवश्यकतानुसार उनको स्मरण करने में किसी को किसी प्रकार की कठिनाई न होगी।

देखा जाय कि कौन घटनाएँ स्मरण रखने योग्य हैं। किन बातों की उपयोगिता है। किन तथ्यों को चिरकाल तक स्मृति पटल में जमाये रहना आवश्यक है। जो उपयोगी जान पड़े, उन्हें गंभीरतापूर्वक समझने का प्रयत्न किया जाय, उन पर चित्त को एकाग्र किया जाय। कई-कई बार उन्हें मौन मानसिक रूप से एवं वाणी से दुहराया जाय। जरूरी लगे तो नोट करके रखा जाय। ऐसा करते रहने से न केवल उपयोगी व आवश्यक तथ्य स्मृति में बने रहेंगे, अपितु स्मरण शक्ति भी अनायास ही इस प्रक्रिया में बढ़ती चलेगी और व्यक्ति को प्रतिभा सम्पन्नों, विचारशीलों की श्रेणी में ला खड़ा करेगी।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118