एक विकृति, एक रोग

March 1992

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प्रख्यात मनोविज्ञानी नार्मन विन्सेन्ट पील का कहना है कि विश्व में आज अधिकाँश व्यक्ति मानसिक रुग्णता से ग्रस्त हैं । इन दिनों प्रमुख शारीरिक-मानसिक रोगों के अतिरिक्त मनुष्य में एक विचित्र रोग उपजा है-वहम। ऐसे वहमी आदमियों को अँग्रेजी में न्यूरोटिक कहते हैं, शंका के अतिरिक्त जिसका कोई प्रत्यक्ष कारण नहीं होता ।

ऐसे व्यक्ति कभी ज्वर की, कभी सिरदर्द की, कभी दिल की धड़कन तीव्र होने की, कभी दम फूलने या घुटने की शिकायत करते देखे जाते हैं और एक से दूसरे डॉक्टर के पास दौड़ते हैं । हर जगह उन्हें एक ही उत्तर मिलता है कि वहम के सिवा उनके शरीर या मस्तिष्क में कोई गड़बड़ी नहीं है । उपचार के नाम पर वे यही कहते हैं “वहम की दवा तो लुकमान हकीम के पास भी नहीं है, मात्र अपने मन को समझा लेने पर ही यह शिकायत दूर हो सकती है ।” पर समन तो मन ही जो ठहरा , वह कब किसकी मानता है ? उसको मनाने वाला तो कोई विरला सिद्धयोगी ही हो सकता है ।

सुप्रसिद्ध मनोचिकित्सा विज्ञानी रिचर्डनॉल ने अपनी पुस्तक “विचित्र दिमागी बीमारियाँ (स्ट्रेंज मेण्टल डिजीजेज) में कहा है कि वहम प्रायः किसी घटना के साथ जुड़ा होता है । श्मशान या कब्रिस्तान के समीप से निकलते हुए लोगों को भूत या चुड़ैलों की संभावना नजर आती हैं । उन्हें झाड़ी में प्रेत नजर आता है और ऐसा लगता है कि अब तब डराने या हमला करने वाला है । यद्यपि मन मजबूत हो तो ऐसा वहाँ कुछ नहीं होता और न ही कुछ दीखता है । किसानों के खेत मरघट के आसपास होते हैं । वे रात को हल जोतते, खेतों की रखवाली करते और अकेले ही वहाँ सोते हैं । रात के अँधेरे में उल्लू बोलते और सियार दौड़ते रहते हैं, पर भूत-प्रेतों का भय कभी उनके पास भी नहीं फटकता ।

विशेषज्ञों का कहना है कि वहमी व्यक्ति बहुधा किसी घटना के साथ किसी न किसी मुसीबत की संगति जोड़ लेते हैं । धूलभरी आँधी चलने पर उन्हें लगता है कि अँधड़ में दम घुट जायगा । बादल उमड़ने और गरजने पर लगता है कि कहीं बादल फट पड़े या बिजली गिर पड़ी तो उससे प्राणाँत न हो जाय । ऐसी घबराहट का एक ही इलाज है कि बन्द कमरे में बैठा जाय और आँधी या बादल को देखना बन्द कर दिया जाय । आँखें बन्द कर लेने पर भी कुछ राहत मिलती है।

कितने ही लोगों को वातानुकूलित गाड़ी के डिब्बे में बैठने पर लगता है कि हवा बन्द हो गयी और दम घुटने लगा । ऐसे व्यक्ति हवाई जहाज का सफर करते भी घबराते हैं । रेलगाड़ियों में सफर करते समय बाहर नजर दौड़ाते ही उन्हें बाहर की दुनिया दौड़ती हुई दृष्टिगोचर होती है, साथ ही लगता है कि सिर घूमने लगा और उलटी होने वाली है । कभी-कभी ऐसा हो भी जाता है । इसका भी एक ही इलाज है कि आँखों बंद करली जायँ और पीछे भागते पेड़ों का दृश्य अनदेखा कर दिया जाय ।

किन्हीं-किन्हीं को दिल का दौरा पड़ने या पेट का दर्द उठने की आशंका मन में बनी रहती है । इसमें चिकित्सकों का उपचार भी कुछ काम नहीं करता । ऐसे लोग प्रायः जादूगर, ओझाओं , पीरों के पास जाते झाड़-फूँक कराते-भभूत भाँकते देखे जाते हैं, जो कभी-कभी वहम की चिकित्सा का काम भी दे जाती है । वे समझते हैं की बीमारी भूत-प्रेतों के आक्रमण के कारण आरंभ हुई थी और जादू-मंत्र चला देने से वह दूर हो गई । दक्षिण अफ्रीका के मूर्धन्य अपराध कानून विशेषज्ञ जैकबस वानडेन होवर का कहना है कि इस तरह की मनोविकृति से ग्रस्त व्यक्ति सबसे अधिक उनके अपने देश में बसते हैं । छोटे मोटे काम बिगड़ने से लेकर अस्वाभाविक मृत्यु होने तक के लिए भूत-प्रेतों का प्रकोप माना जाता है और उसके शमन के लिए ओझाओं की शरण ली जाती है । दुर्भिक्ष को दैवी प्रकोप समझा जाता है ।

अपने देश के पिछड़े इलाकों में भी अन्धविश्वास बहुत अधिक है, साथ ही वहम की बीमारी भी बहुतों में पायी जाती है । यह छूत के रोग की तरह एक से दूसरे को लगती है और भूत-प्रेत के रूप में कइयों की जान का बवाल बन जाती है । इसका एक ही इलाज है कि वहमग्रस्त व्यक्ति को वहम की व्यथा का वास्तविक रूप समझाया जाय और उसे छोड़ने के लिए समझा बुझाकर सहमत किया जाय ।


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