श्रेष्ठ कर्तव्य पर निर्भर (Kahani)

March 1992

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कबीर का अंतिम समय आ पहुँचा। वे शिष्यों से बोले-”मेरी अंतिम साँस मगहर में ली जाय। मुझे तुरन्त वहाँ ले चलो।” सभी हैरान कि मरते समय तो लोग काशी आते हैं व यह मगहर जाना चाहते हैं। कबीर बोले- मरकर यदि मैं स्वर्ग भी चला गया तो फिर काशी की ही महिमा गायी जाती रहेगी। मेरे खुद के किये धरे का तो फिर कोई मतलब नहीं है। लोगों के मनों में बैठी भ्रान्तियों को निकालने के लिए मेरा मगहर में शरीर छोड़ना जरूरी है। लोग जाने कि कबीर ने ऐसी जगह शरीर त्यागा, जहाँ मरने पर अधोगति प्राप्त होती है किन्तु उसके कर्म इतने पवित्र थे कि परमपिता परमात्मा ने उसे सद्गति प्रदान की।

यह सारा जगत भ्रान्तियों का समुच्चय है। दुर्गति सद्गति स्थान विशेष पर नहीं, श्रेष्ठ कर्तव्य पर निर्भर है।


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