प्रेम की सार्थकता (Kahani)

March 1992

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

बुद्ध की मृत्यु के समय उपस्थित शिष्य-समुदाय विलाप कर रहा था। सांसें फिर लौटीं। वे बोले-मेरे प्रति-प्रीति दिखाने का यह तरीका नहीं। यदि तुम में से कोई सच्चा अनुयायी हो, तो मेरे साथ रहे, सदा जीवन भर वही काम करते रहना चाहिए जो मैंने किया। इससे कम में प्रेम की सार्थकता बनती नहीं।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles