रास्ते से जौहरी गुजरा। उसने देखा कि कुम्हार गधे के गले में हीरा बाँधकर चला जा रहा है। चकित होकर जौहरी ने कुम्हार से पूछा-कितने पैसे लेगा इस पत्थर के? कुम्हार ने कहा-एक रुपया मिल जाय तो बहुत है।जौहरी ने कहा-आठ आने लेगा। कुम्हार ने कहा-चलो बारह आने सही, किन्तु जौहरी का लोभ जागा, उसने सोचा मूर्ख हीरे का पत्थर समझ रहा है। अभी लौटेगा तो दे जायगा, किन्तु जौहरी बाजी चूक गया। किसी दूसरे ने वह हीरा पूरे एक रुपये में खरीद लिया। जौहरी को सदमा बैठ गया। कुम्हार से बोला-मूर्ख! तू कोरा गधा ही निकला। लाखों का हीरा कौड़ियों में बेच दिया तूने। कुम्हार बोला-यदि मैं गधा न होता, तो क्या हीरा गधे के गले में बाँधता, किन्तु आप को क्या कहा जाय। जब आपको पता था कि हीरा लाखों का है फिर भी कौड़ियों के दाम चुकाने में कोताही बरतते रहे।
हममें से कितने ही व्यक्ति कुम्हार और जौहरी की तरह है। कुछ तो अनजाने में ही इस हीरे की भाँति बहुमूल्य जीवन को गँवा देते हैं और कुछ जानते समझते हुए भी उसे बरबाद होते देखते रहते हैं।
भक्त की नित्य की प्रार्थना सुनकर आखिर एक दिन भगवान प्रकट हो ही गये और भक्त से बोले-मैं तुझसे प्रसन्न हूँ जो भी चाहे वरदान माँग ले। पर एक शर्त है कि तू जो माँगेगा उससे ठीक दूना पड़ोसी को मिलेगा भक्त सोचने लगा सब बात खराब कर दी। माँगने का उत्साह ही जाता रहा। सारी उमंगों पर पानी फेर दिया इस एक ही बात ने कि पड़ोसी को दूना मिलेगा। मैं तो इसीलिए माँगना चाहता था कि पड़ोसियों को प्रगति में पछाड़ दूँ। अब माँग में कोई रस नहीं रहा। यदि छः मंजिला मकान भगवान देते हैं, तो पड़ोसियों को बारह मंजिल यों ही हो जाता है। यदि एक लाख भक्त को मिलेगा तो दो लाख पड़ोसी को बिना माँगे मिल गले। व्यर्थ गई प्रार्थना।
इसी उधेड़बुन में पड़ा वह पछता रहा था, पर बुद्धि पर तनिक जोर डाला, तो उसे एक उपाय सूझा क्यों न अपनी एक आँख फूटने का आशीर्वाद माँग लिया जाय, ताकि पड़ोसियों की दोनों आंखें फूट जायें। अपने हिसाब से उसने पड़ोसियों के लाभ पहुँचाने की भगवान की शर्त विफल कर दी थी, पर इसका परिणाम क्या होगा? इस पर जरा भी विचार नहीं किया। आशीर्वाद फलित हुआ। प्रार्थी काना हो गया और पड़ोसी अन्धे। यहीं से उसकी परेशानी शुरू हुई। वह कहीं बाहर निकलता, तो मसखरे प्रवृत्ति को लड़के उसे “काना काना” कहकर चिढ़ाते, जबकि पड़ोसी अन्धों पर लोग तरस खाकर उसकी हर प्रकार से मदद करते।
उसकी समझदारी जगी, तो उसने विचार किया कि दूसरों के लिए गड्ढा खोदने वाला पहले स्वयं उसमें गिरता है, बाद में दूसरे।