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Akhand Jyoti
Year 1992
Version 2
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March 1992
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अपनी जगह रहकर भी मन स्वर्ग को नरक और नरक को स्वर्ग बना सकता है ।
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Page Titles
तालमेल बिठा कर चलने की रीति-नीति
युधिष्ठिर की उपासना
साधुवाद का पात्र है, वह अनुपम सृजेता !
हर दृष्टि से नफे का सौदा-दूरदर्शिता
आत्मसंतोष प्राप्त कर सकूँ (Kahani)
युगान्तरकारी परिवर्तन के मोड़ पर खड़े हम सब
विचार शक्ति की प्रभाव क्षमता के वैज्ञानिक प्रमाण !
धन का सदुपयोग (Kahani)
बड़प्पन चुनें या महानता ?
मात्र यथार्थता को ही अपनाया जाय
अपने-अपने रास्ते चले (Kahani)
परिवर्तन सृष्टि का एक अनिवार्य उपक्रम !
नकली दयानंद का उपहास (Kahani)
प्रसन्नता की कुंजी
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सर्वत्र अद्वैत ही बिखरा पड़ा !
प्रकृति-पुत्रों का एक सुविकसित संसार
जन्मा उस दिन, एक देवमानव!
आत्मोत्कर्ष की अवाँछनीय उपेक्षा
बहुमत के आगे अल्पमत (Kahani)
“मुझे उज्ज्वल भविष्य स्पष्ट दिखाई दे रहा है”
जानने को भो अभी बहुत कुछ कुछ शेष है !
श्रेष्ठ कर्तव्य पर निर्भर (Kahani)
नन्दनन्दन दौड़े जाते हैं, जिसके द्वार स्वयं
दर्शन और विज्ञान हैं, परस्पर पूरक व अभिन्न
संतुलित उल्लसित जीवन कैसे जियें ?
संकटों से उद्विग्न न हो (Kahani)
एक विकृति, एक रोग
अनुशासित जीवन ही सृष्टा को प्रिय!
क्या आप बनना चाहेंगे चलते फिरते कम्प्यूटर?
विदेशों की सम्पन्नता (Kahani)
हठधर्मिता से परे एक ध्रुव सत्य.
बाद में दूसरे (Kahani)
जीवन सहानुभूति ही सार्थक!
अनाचार से निपट सकें, ऐसा सत्साहस जगे!
आहार शुद्धौ, सत्व शुद्धौः
सौंदर्य का बलिदान राष्ट्र के लिये!
यह माटी की ढेरी रे (Kavita)
परमपूज्य गुरुदेव की - अमृतवाणी
ब्रह्मवर्चस की शोध प्रक्रिया-4
VigyapanSuchana
परमपूज्य गुरुदेव : लीला प्रसंग
प्रेम की सार्थकता (Kahani)
अपनों से अपनी बात:- - साँस्कृतिक नवोन्मेष ही नवयुग का आधार खड़ा करेगा
ॐ भू र्भुवः स्वः
तत्
स
वि
तु (र्)
व
रे
णि
यं
भ
र्गो
दे
व
स्य
धी
म
हि
धि
यो
यो
नः
प्र
चो
द
या
त्
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