परम पूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी

December 1992

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‘अमृतवाणी’ प्रसंग में इस अंक में हम दे रहे हैं गायत्री महाविद्या पर शाँतिकुँज प्राँगण में 9 फरवरी 1978 को परम पूज्य गुरुदेव द्वारा दिया गया उद्बोधन। वसंत पंचमी के विशेष सत्र के पहले दिन उनने उपस्थित पाँच हजार व्यक्तियों को विशेष दावत दी-युग देवता की व कहा कि गायत्री मंत्र हमारे जीवन में फलित हुआ, आपके जीवन को भी वह इन विभूतियों से निहाल कर सकता है, यदि आप सही विधा को सही तरीके से समझ सकें। तो पढ़ें, अमृतवाणी-गायत्री महाशक्ति की फल श्रुतियों पर प्रकाश डालने वाली, चेतना में उथल-पुथल मचा देना वाली उनकी वक्तृता शैली के माध्यम से। आगामी अंक में वसंत पर्व के परिपेक्ष में ऐतिहासिक वसंत पर्व 12/2/78 को दिया गया उनका क्राँतिकारी उद्बोधन परिजन अमृतवाणी प्रसंग में पढ़ेंगे।

गायत्री मंत्र हमारे साथ-साथ बोलिए -

(( भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य

धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।

देवियो! भाइयो! मेरे पिताजी गायत्री मंत्र की दीक्षा दिलाने के लिए मुझे बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में महामना मालवीय जी के पास ले गये। महामना मालवीय जी और हमारे पिता जी सहपाठी थे। उनका विचार था कि लड़के का यज्ञोपवीत संस्कार और गायत्री मंत्र की दीक्षा महामना मालवीय जी से करायी जाय। पिता जी मुझे वहीं ले गये, तब मैं दस-ग्यारह वर्ष का रहा होऊँगा। मालवीय जी के मुँह से जो वाणी सुनी, वह अभी तक मेरे कानों में गूँजती है। हृदय के पटल और मस्तिष्क पर वह जैसे लोहे के अक्षरों से लिख दी गयी है जो कभी मिट नहीं सकेगी। उनके वह शब्द मुझे ज्यों के त्यों याद हैं जिसमें उन्होंने कहा था- “भारतीय संस्कृति की जननी गायत्री है। यज्ञ भारतीय धर्म का पिता है। इन माता-पिता को हम सभी को श्रवण कुमार की तरह से कन्धे पर रख कर सेवा करनी चाहिए।”

गायत्री मंत्र बीज है और इसी के वृक्ष के रूप में सारा का सारा भारतीय धर्म विकसित हुआ है। बीज छोटा सा होता है बरगद का और उसके ऊपर वृक्ष इतना बड़ा विशाल होता हुआ चला जाता है। गायत्री मंत्र से चारों वेद बने। वेदों के व्याख्यान स्वरूप ब्रह्मा जी ने, ऋषियों ने और ग्रंथ बनाये, उपनिषद् बनाये, स्मृतियाँ बनायीं, ब्राह्मण, आरण्यक बनाये। इस तरह हिन्दू धर्म का विशालकाय वांग्मय बनता चला गया। हिन्दू धर्म की जो कुछ भी विशेषता दिखायी पड़ती है- साधना परक, ज्ञान परक अथवा विज्ञान परक, वह सब गायत्री के बीज से ही विकसित हुई है। सारे का सारा विस्तार गायत्री बीज से ही हुआ है। बीज वही है, टहनियाँ बहुत सारी हैं। हिन्दूधर्म में चौबीस अवतार हैं। ये चौबीस अवतार क्या हैं? एक-एक अक्षर गायत्री का एक-एक अवतार के रूप में, उनके जीवन की विशेषताओं के रूप में, उनकी शिक्षाओं के रूप में है। हर अवतार एक अक्षर है गायत्री का, जिसमें क्रियायें और लीलायें करके दिखायी गयी हैं। उनके जीवन का जो सार है वही एक-एक अक्षर गायत्री का है।

हिन्दू धर्म के दो अवतार मुख्य हैं-एक का नाम राम और दूसरे का कृष्ण है। रामचरित का वर्णन करने के लिए बाल्मीकि रामायण लिखी गयी जिसमें 24000 श्लोक हैं और प्रति 1000 श्लोक के पीछे सम्पुट लगा हुआ है गायत्री मंत्र के एक अक्षर का। श्री कृष्णचरित भागवत् में लिखा है। श्रीमद् भागवत में भी चौबीस हजार श्लोक हैं और एक हजार श्लोक के पीछे गायत्री मंत्र के एक अक्षर का सम्पुट लगा हुआ है अर्थात् गायत्री मंत्र के एक अक्षर की व्याख्या एक हजार श्लोकों में। रामचरित हो अथवा कृष्णचरित-दोनों का वर्णन इस रूप में मालवीय जी ने किया कि मेरे मन में बैठ गया कि यदि ऐसी विशाल गायत्री है, तो मैं खोज करूंगा उसकी और अनुसंधान करके लोगों को यह बताकर रहूँगा कि ऋषियों की बातें, शास्त्रों की बातें सही हैं- क्या? स्तुता, मया, वरदा......... कामधेनु, पारस, कल्पवृक्ष आदि जो लाभ गायत्री उपासना के बताये गये हैं, उसके लिए मुझे जिन्दगी का जुआ खेलना ही पड़ेगा और खेलना ही चाहिए। मित्रो! चार-पाँच वर्ष में ही मेरी इच्छा भगवान ने पूरी कर दी। मेरे गुरु मेरे पास आये और उनने जो बातें बतायीं उससे जिन्दगी का मूल्य मेरी समझ में आ गया। जिन्दगी का मूल्य और महत्व समझकर मैं चौंक पड़ा कि चौरासी लाख योनियों में घूमने के बाद मिलने वाली यह जिन्दगी मखौल है क्या? इसके पीछे महान उद्देश्य छिपे हुए हैं। भगवान ने यह मौका दिया है एक, इनसानी जिन्दगी हमारे हाथ में देकर के। पर क्या हम और आप इसका इस्तेमाल कर पाते हैं?

मालवीय जी ने मुझे सबसे कीमती एक ही बात बतायी थी कि गायत्री मंत्र का सम्बल आप पकड़ लें तो पार हो सकते हैं। वे मेरे दीक्षा गुरु हैं और आध्यात्मिक गुरु वे हैं जो हिमालय पर रहते हैं। उन्होंने बताया कि जिन्दगी की कीमत समझ, जिन्दगी का ठीक इस्तेमाल करना सीख। जिन्दगी की कीमत मैंने पूरी तरीके से वसूल कर ली है। एक-एक साँस को इस तरीके से खर्च किया है कि कोई यह इल्जाम मुझ पर नहीं लगा सकता कि आपने जिन्दगी के साथ मखौल किया है-दिल्लगीबाजी की है। जीवन देवता पारस है-अमृत है और कल्पवृक्ष है। इसका ठीक से इस्तेमाल करता हुआ मैं चला गया और वहाँ से चलते-चलते अभी पचपन साल की मंजिल पूरी करने में समर्थ हो गया। क्या-क्या किया? क्या-क्या पाया? कैसे पाया? मैं चाहता हूँ कि चलते-चलाते आपको अपने भेद और रहस्य बताता जाऊँ कि गायत्री मंत्र कितना सामर्थ्यवान है। यह इतना कीमती है कि मात्र माला घुमाने की कीमत पर इसके लाभ नहीं प्राप्त किये जा सकते। इसके लिए कुछ ज्यादा ही कीमत चुकानी पड़ेगी।

ऋषि, गायत्री मंत्र के बारे में क्या कहते हैं? शास्त्रकारों ने क्या कहा है? यह जानने के लिए मित्रों, मैंने पढ़ना शुरू किया और पढ़ते-पढ़ते सारी उम्र निकाल दी। पढ़ने में क्या-क्या पढ़ा? भारतीय धर्म और संस्कृति में जो कुछ भी है वह सब पढ़ा। वेद पढ़े, आरण्यक पढ़ीं, उपनिषदें पढ़ीं, दर्शन पढ़ीं और दूसरे ग्रन्थ पढ़ डाले-देखूँ तो सही गायत्री के बारे में ग्रंथ क्या कहते हैं। खोजते-खोजते सारे ग्रंथों में जो पाया, उसे नोट करता चला गया। पीछे मन में यह आया कि जैसे मैंने फायदा उठाया है, दूसरे भी फायदा उठा लें तो क्या नुकसान है। उसे छपा भी डाला। लोग उससे फायदा भी उठाते हैं। असल में मैंने ग्रंथों को, ऋषियों की मान्यताओं को जानने के लिए पढ़ा और पढ़ने के साथ-साथ में यह प्रयत्न भी किया कि जो कोई गायत्री के जानकार हैं, उनसे जानूँ कि गायत्री क्या है? और प्रयत्न करूं कि जिस तरीके से खोज और शोध उनने की थी, उसी तरीके से मैं भी खोज और शोध करने का प्रयत्न करूं।

मैंने पढ़ा है कि एक आदमी बहुत पहले हुआ था जिसने गायत्री में पी0एच0डी0 और डी0लिट्0 किया था? कौन था? उसका नाम था-विश्वामित्र। विश्वामित्र उस व्यक्ति का नाम है जिसको जब हम संकल्प बोलते हैं तो हाथ में जल लेकर गायत्री मंत्र से पहले विनियोग बोलना पड़ता है। आपको तो हमने नहीं बताया। जब आप आगे-आगे चलेंगे-ब्रह्मवर्चस् की उपासना में चलेंगे, तब हम गायत्री के रहस्यों को भी बतायेंगे। अभी तो आपको सामान्य बालबोध नियम भर बतायें हैं जो गायत्री महाविज्ञान में छपे हैं। बालबोध नियम जो सर्व साधारण के लिए हैं, उतना ही छापा है, लेकिन जो जप हम करते हैं, उसमें एक संकल्प भी बोलते हैं जिसका नाम है “विनियोग”। प्रत्येक बीज मंत्र के पूर्व एक विनियोग लगा रहता है। विनियोग में हम तीन बातें बोलते हैं-”गायत्री छन्दः सविता देवता विश्वामित्र ऋषि गायत्री जपे विनियोगः”। संकल्प जल छोड़ करके तब हम जप करते हैं। यह क्या हो गया? इसमें यह बात बतायी गयी है कि गायत्री का पारंगत कौन आदमी था। गायत्री का अध्ययन किसने किया था, गायत्री की जानकारियाँ किसने प्राप्त की-गायत्री की उपासना किसने की। वह आदमी जो कि प्रमाणिक है गायत्री के सम्बन्ध में-उसका नाम विश्वामित्र है। मेरे मन में आया कि क्या मेरे लिए ऐसा संभव नहीं कि विश्वामित्र के तरीके से प्रयास करूं। मित्रों मैं उसी काम में लग गया। पन्द्रह वर्ष की उम्र से उनतालीस तक चौबीस वर्ष बराबर एक ही काम में लगा रहा, लोग पूछते रहे कि यह आप क्या किया करते हैं हमें भी कुछ बताइये। हमने कहा-प्रयोग कर रहे हैं- रिसर्च कर रहे हैं और रिसर्च करने के बाद में कोई चीज काम की होगी तो लोगों को बतायेंगे कि आप भी गायत्री की उपासना कीजिये, नहीं होगी तो मना कर देंगे।

मित्रो! 24 साल की उपासना के पश्चात् संशोधन के पश्चात् तीस साल और हो गये जब से गायत्री के प्रचार का कार्य हमने लिया और जब हमको हमारी जीवात्मा ने यह आज्ञा दी कि यह काम की चीज है, उपयोगी चीज है- लाभदायक चीज है इसको लोगों को बताया जाना चाहिए और समझाया जाना चाहिए। जो जितना अधिकारी हो उसे उतनी ही खुराक दी जानी चाहिए। हम उपासना सिखाते रहे हैं, छोटी खुराक वालों को छोटी मात्रा देते रहे हैं, बड़ों को बड़ी मात्रा। हमने छोटे बच्चों को दूध में पानी मिले हुए से लेकर के बड़ों को घी और शक्कर मिली हुई खुराक तक विभिन्न लोगों को दी है तीस सालों में। इन तीस सालों में हमारा विश्वास अटूट होता चला गया है, श्रद्धा मजबूत होती चली गयी है। यह वह सम्बल है- वह आधार है कि अगर ठीक तरीके से कोई पकड़ सकने में समर्थ हो सकता हो तो उसके लिए नफा ही नफा है- लाभ ही लाभ है।

गायत्री के जो सात लाभ बताये गये हैं- “स्तुता मया वरदा वेदमाता प्रचोदयंताम् आयु प्राणं प्रजाँ पशुं कीर्तिं द्रविणं ब्रह्मवर्चसम्. . . .।” इन्हें हमने सौ फीसदी पाया कि ये सातों के सातों लाभ एक-एक अक्षर करके इसमें सही हैं। यह हमने अपने जीवन की प्रयोगशाला में साबित किया है- अपनी जिन्दगी में परीक्षण किया है कि सातों लाभ जो गायत्री के बताये गये हैं सही हैं। इससे मनुष्य की आयु बहुत बड़ी हो जाती है। कितनी बड़ी हो जाती है? बेटे हम कुछ कह नहीं सकते, पर हमारे गुरु के बारे में अपना विश्वास है कि उनकी आयु 600 वर्ष से कम नहीं हो सकती। गायत्री मंत्र का जप करने वाले की आयु बहुत बड़ी हो सकती है, यह तो आप अपने गुरु की बता रहे हैं। तो फिर आपकी उम्र कहाँ रही? बेटे, हमारी उम्र बहुत बड़ी है। 70 वर्ष उम्र होने को आयी, पर सही बात यह है कि 70 साल हमारी उम्र नहीं है। हम 350 वर्ष के हैं-70 ग 5 = 350। आप 350 वर्ष के कैसे हो सकते है? हम इसलिए हुए कि पाँच आदमी मिलकर के जितना काम करते है, उतना काम हमने अपनी जिन्दगी में किया। ग्रन्थ हमने जितने लिखे हैं, अगर एक आदमी जिन्दगी में लिखने के अलावा दूसरा कोई काम नहीं करे तो भी नहीं कर सकता और हमने क्या किया? सारी जिन्दगी भर एक आदमी तप करता रहा है। जिन्दगी के अधिकांश समय में हमारा 6 घण्टे रोज दैनिक उपासना में चला गया। इस तरह एक आदमी ने पूरा का पूरा श्रम गायत्री उपासना में किया।

एक आदमी ने संगठन किया है। हमने देश भर का संगठन किया है। हिन्दुस्तान में और सारे संसार में जो लोग हमको गुरुजी कहते हैं और जिन्होंने हमें देखा है, जो हमारी बात को सुनते हैं-मानते हैं, जिन्होंने दीक्षा ली है, वे करोड़ों की तादाद में हो सकते हैं। एक आदमी ने इतना संगठन 30 साल में खड़ा किया हो, मैं समझता हूँ हिस्ट्री में ऐसी उदाहरण कभी नहीं मिला होगा। मरने के बाद तो लोगों ने किये हैं। ईसा के मरने के बाद सेंटपाल ने ईसाई धर्म का विस्तार किया था तब फैला था वह धर्म। बुद्ध भगवान का मिशन उनकी जिन्दगी में नहीं फैल सका बहुत थोड़ा सा था। सम्राट अशोक ने अपना सारा राज्य बुद्ध मिशन के लिए लगाया तब कहीं उसका विस्तार हुआ। 30 साल में हमने विस्तार की व्यवस्था बनायी है, और कोई एक आदमी रह गया है जो हमेशा कहीं और दुनिया में रहता है। संतों के पास रहता है, नियाँ के पास रहता है, तपस्वियों के पास रहता है। उनसे हम गर्मी प्राप्त करते रहते हैं, शक्ति प्राप्त करते रहते हैं। पूछताछ करते रहते हैं। एक और भी है हमारा है जो जगह-जगह जाता रहता है। अक्सर लोग कहते हैं कि क्यों साहब हमने सुना है कि आप वहाँ के यज्ञ में गये थे और लोगों ने देखा था। यह भी तो हो सकता है। स्थूल ही नहीं शरीर सूक्ष्म भी होते हैं। सूक्ष्म शरीर से हमको जगह-जगह काम करने पड़ते हैं। पाँच व्यक्तियों की हमने बराबर जिन्दगी जियी और 350 वर्ष की उम्र हो गयी। यह है हमारी आयु।

प्राण। प्राण माने साहस-हिम्मत। हममें बहुत हिम्मत है। कितनी हिम्मत है-सारे के सारे पण्डित और पुरातनवादी लोग यह कहते थे कि महिलाओं को गायत्री का जप नहीं करना चाहिए और ब्राह्मण के अलावा किसी को नहीं करना चाहिए। हम अकेले ने कहा कि हर बिरादरी के लोग कर सकते हैं और महिलायें भी कर सकती हैं। पण्डितों, शंकराचार्यों-सभी से हमने लोहा लिया। सारी दुनिया में उलटी हवायें बह रही हैं, प्रवाह बह रहे हैं उनको मोड़ देने के लिए हममें बहुत ताकत है। इतनी ताकत है हममें कि जिस तरीके से मछली बहती हुई धारा को छल–छलाती हुई चीरती हुई चली जाती है उसी तरीके से हम अकेले निकल जाते हैं।

कहां से आता है यह प्राण? गायत्री में से आता है। गायत्री ने और क्या-क्या दिया? हमको दीर्घ जीवन दिया-लम्बी आयु दी, प्राण दिया, हिम्मत दे दी, बहादुरी और साहस दे दिया, शक्ति दे दी। प्राण, प्रजाँ, और सन्तानें दे दी। कितनी सन्तानें दी-हम कह नहीं सकते। हमारी सन्तानें जहाँ पैदा होती हैं तो मूछों समेत पैदा होती हैं और लड़कियाँ पैदा होती हैं तो मैट्रिक पास करके पैदा होती हैं। कीर्ति-यश- यश के बारे में हमारे मुँह से शोभा नहीं देता पर हम एक ही बात कहते हैं कि संसार में-संसार के पढ़े लिखे लोगों में से कभी किसी से यह पूछें कि आचार्य जी नाम के कोई व्यक्ति थे, तो वह छूटते ही कहेगा हम जानते हैं उन्हें। हिन्दुस्तान ही नहीं, संसार की प्रत्येक लायब्रेरी में जाइये और जाकर पूछिये कि चारों वेदों के भाष्य आपके यहाँ हैं क्या? उत्तर हाँ में मिलेगा। नास्तिक देशों की बात मैं कहता हूँ-आप पूछिये क्यों साहब इस नाम के व्यक्ति को आप जानते हैं? हमारा यश किसी सीमा में बँध नहीं है-सम्प्रदाय में नहीं हैं, केवल हिन्दू धर्म में नहीं है, वरन् सारे विश्व में है। यह यश कहाँ से आ गया। यह बेटे गायत्री माता का दिया हुआ है।

कीर्तिम् द्रविणं- धन। यही मत पूछिये कि हमारे पास कितना है। अभी पीछे वाली जमीन खरीदी है और जब अगली बार वसंत पंचमी पर आप आवेंगे तो यहाँ नगर बसा हुआ मिलेगा, महल दिखायी पड़ेगा। महाराज जी कहाँ से लायेंगे? आप हमसे माँगेंगे। नहीं बेटे, मैं तेरे सामने हाथ नहीं फैलाऊँगा मैंने इनसान के सामने हाथ नहीं पसारा तो तुझसे क्या मांगूंगा। कहाँ से आयेगा? बेटे कहीं से आयेगा-जमीन फटेगी, आसमान से आयेगा। कौन देगा? वही देगा जिसके बारे में अथर्ववेद ने साक्षी देते हुए कहा है कीर्तिं-द्रविणं-धन देने वाली और आखिर में क्या देती है सातवाँ फल-ब्रह्मवर्चसम्। ब्रह्मवर्चस् कौन सा है? “ब्रह्मवर्चस्” कहते हैं तेज को। ब्रह्मतेज कैसा होता है? ब्रह्मतेज उसे कहते हैं-जब विश्वामित्र और वशिष्ठ में संघर्ष हुआ तब विश्वामित्र हार गये और अपना राज्य छोड़कर यह कहने लगे कि वशिष्ठ जितने शक्तिशाली हैं उतना ही शक्तिशाली बनकर मैं भी दिखाऊँगा। उनने एक श्लोक कहा-”धिक् बलं क्षत्रिय बलं ब्रह्मतेजो बलं बलम्।” अर्थात् ब्रह्मतेज ही बल है। ब्रह्मवर्चस माने ब्रह्मतेज। इसे ब्राह्मणत्व का तेज कहते हैं, आध्यात्मिक तेज कहते हैं, आत्मा की शक्ति का तेज कहते हैं। गायत्री का आखिरी फल - सातवाँ फल ब्रह्मवर्चस होता है।

गायत्री मंत्र के बारे में हम सारे जीवन भर प्रयत्न करते रहे और सफलता पाली। आज मैं यह कहने की स्थिति में हूँ कि ऋषियों ने जो कुछ बताया था कि गायत्री भारतीय संस्कृति का बीज है, तो वह सही है। जो शास्त्रकारों ने लिखा है, अन्यान्य उपासकों ने लिखा है, हम आज यह कहने की स्थिति में हैं कि वह सही है। आप कहते हैं या कोई गवाही भी है? हाँ बेटे हमारी जिन्दगी गवाही है और प्रारम्भिक पन्द्रह वर्ष के बाद के 55 साल के 55 पन्ने गवाही हैं। हमारी जिन्दगी के प्रत्येक पन्ने को खोलते चले जाइये वह एक गवाह के रूप में अपना बयान देगा और अपनी हिस्ट्री बतायेगा। वह यह बतायेगा कि गायत्री की उपासना करते हुए 55 साल में हमने यह पाया और यह किया। तो महाराज हमें भी मिल सकती है? इसीलिए तो तुम्हें बुलाया है। जो हमारे लिए संभव है वह आपके लिए भी है। गायत्री आपके ऊपर भी कृपा कर सकती है। सूरज के हम रिश्तेदार नहीं हैं और आपसे कोई बैर नहीं है। आप धूप में खड़े हो जाइये सूरज की रोशनी आप को भी मिल सकती है और हमको भी। चन्द्रमा की छाया में आप भी बैठ सकते हैं और हम भी।

तो आपने कौन सी विधि से जप किया? कौन सी विधि से उपासना की? बेटे हम यही बताने के लिए आज आपके सामने बैठे हैं कि किस विधि से किया। विधि नहीं एक और बात पूछी जाय। क्या? विधा। विधि तो उसे कहते हैं जो शरीर से और वस्तुओं की सहायता से हेराफेरी से की जाती है। विधि में हाथ यों जोड़िये, चावल ऐसा नहीं यों रखिये। माला लकड़ी की हो या रुद्राक्ष की। दीपक कैसे रखें। यह सब क्या है विधि है। कलेवर का नाम विधि है। जिस विधि को आप पूजते हैं वह आवरण है। आवरण की भी जरूरत पड़ती है, उसके बिना काम नहीं चलता। अगर हमारे पास कलम न हो तो हम चिट्ठी लिख नहीं सकेंगे। बन्दूक और तलवार हाथ में हो पर चलाने की विधि न आती हो तो लड़ाई नहीं लड़ी जा सकती। अतः विधि की भी जरूरत है। लेकिन मैं यह कहता हूँ कि विधि तक सीमित रहिये मत। विधि आपको मकसद तक नहीं पहुँचा सकेगी। विधि के सहारे आप जीवन लक्ष प्राप्त नहीं कर सकेंगे। विधि आपको भगवान तक नहीं पहुँचा सकेगी। विधि के सहारे आप भगवान की कृपा के अधिकारी नहीं बन सकते। तब क्या करना पड़ेगा? विधि के साथ विधा को जानना होगा। विधा मीन्स- रीति, कायदा-कानून, नियम और मर्यादा। इसके बिना सफलता नहीं मिल सकती।

ऋषियों ने गायत्री को त्रिपदा कहा है। इसके तीन आधार हैं- श्रद्धा, चरित्र निष्ठा ओर उदारता जिसे संकीर्णता या कृपणता का त्याग भी कहते हैं। यह तीन आधार आप पकड़ लें तो मैं यकीन दिलाता हूँ कि मेरे तरीके से आपको भी सफलता मिला सकती है। आप भी गायत्री के वैसे ही सिद्ध पुरुष बन सकते हैं जैसे कि महर्षि विश्वामित्र थे और जैसा बनने के लिए मैंने छोटे बच्चे की तरह खुद को समर्पित किया। आपके लिए भी द्वार खुला है मगर त्रिपदा की तीन शर्तें पूरी कर लें तब। इन तीनों के आधार पर हमारी जिन्दगी टिकी हुई है। अगर आप गायत्री मंत्र का वह चमत्कार, जो कि ऋषियों को मिला था, उपासकों, ब्राह्मणों और हमको मिला है तो इसके लिए आपन अपनी श्रद्धा को विकसित कीजिये। चरित्र के बारे में ध्यान रखिये। दोष-दुर्गुणों का त्याग कीजिए और सेवावृत्ति के लिए उदारता से तैयार हो जाइये और यह देखिये कि जनमानस के परिष्कार के लिए आप क्या कर सकते हैं। समय का, श्रम का, धन का, अपनी बुद्धि का कोई हिस्सा लगाने के लिए आप तैयार हैं क्या? कोशिश कीजिये-हिम्मत कीजिये। बीज के तरीके से गलिये और वृक्ष के तरीके से फलिये।

हमने तीन शर्तों पर अपने गुरु से सारी की सारी दौलत-सारे के सारे धन पाये हैं- श्रद्धा की कीमत पर, चरित्र की कीमत पर और उदार दृष्टिकोण की कीमत पर। पी0एम0टी0 की मेडिकल परीक्षा की तरह यह तीन पर्चे हैं कि उदारता की दृष्टि से कितने पवित्र साबित होते हैं। जितने आप नम्बर लाते जायेंगे उतने परीक्षा में पास होते जायेंगे। उसी हिसाब से-उसी अनुपात से उसी मात्रा में आपके लिए सफलतायें, सिद्धियाँ, चमत्कार, अनुदान-वरदान सुरक्षित रखे हुए हैं। टिकट लीजिए- ‘गिव एण्ड टेक’-दीजिये और लीजिये। मेरे जीवन के सारे के सारे निष्कर्ष और निचोड़ यही हैं। मैं चाहता हूँ इनसे आप भी लाभ उठायें और गायत्री मंत्र की महिमा और गरिमा को बढ़ाये। उपासना के बारे में ऋषियों ने-शास्त्रों ने जो कुछ कहा है, वह साबित करके दिखायें। हमने यही साबित करके दिखाने की कोशिश की और आपसे भी यही अपेक्षा करेंगे कि आप जब यहाँ से विदा हों तो वैसा ही साहस, हिम्मत और दृष्टिकोण लेकर जायँ जिससे वे तीनों आधार जो गायत्री मंत्र को-त्रिपदा को सफल और सार्थक बनाने में समर्थ रहे हैं, वही आपके जीवन में भी आयें और आप वे लाभ उठायें जो प्राचीन काल के उपासकों ने उठाया था और हमने भी। आज की बात समाप्त। (( शान्तिः


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