एक लोमड़ी पेड़ के नीचे बैठी थी। मुर्गा ऊपर की टहनी पर था। लोमड़ी उसे नीचे आने के लिए फुसलाने लगी। उसने कहा-मुर्गे भाई तुम्हें मालूम नहीं कि अभी दो दिन पहले जंगल में सभी जानवरों की पंचायत होकर चुकी है कि कोई जानवर किसी को सताएगा नहीं। सभी मिलजुल कर रहेंगे। सो तुम नीचे बेखटके आ सकते हो। हम लोग मिल–जुलकर हँसेंगे खेलेंगे।
मुर्गा लोमड़ी की चालाकी समझकर म नहीं मन मुसका रहा था। इतने में दो शिकारी कुत्ते दौड़े उधर आये। लोमड़ी भागी। मुर्गे ने कहा-दीदी भागती क्यों हो। अब तुम्हें कुत्तों से क्या खटका।
लोमड़ी यह कहती हुई चलती बनी कि शायद तुम्हारी ही तरह इन कुत्तों ने भी पंचायत का फैसला न सुना हो।