एक लुहार बढ़िया बाण बनाने के लिए प्रसिद्ध था। अपनी प्रवीणता में उसे ख्याति प्राप्त थी।
एक दूसरा लुहार बालक वैसे ही बाण बनाने की विद्या सीखने के लिए उनके पास पहुँचा। कुछ दिन रहा भी।
एक दिन धूमधाम से बरात सामने से निकल रही थी। बाजे बज रहे थे। लुहार ने अपनी तन्मयता में तनिक भी अन्तर न आने दिया। पर वह सीखने वाला लड़का बरात देखने चला गया।
लौटने पर उसने पूछा! ताऊ जी आपने बरात देखी? कैसी सुन्दर थी उसकी सजावट। सिखाने वाले ने कहा मैंने बाण निर्माण के अतिरिक्त और किसी काम में रत्ती भर भी मन नहीं जाने दिया।
सीखने आये लड़के ने जाना कि किसी कार्य में प्रवीण−पारंगत होने का एक ही उपाय है−लक्ष्य में तन्मय हो जाना।