पैर में ठोकर लगी (Kahani)

December 1992

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 दार्शनिक च्वाँगत्से को रात्रि के समय कब्रिस्तान से होकर गुजरते समय पैर में ठोकर लगी। टटोल कर देखा तो किसी मुर्दे की खोपड़ी थी। उठाकर उनने उसे झोली में रख लिया और सदा साथ रखने लगे।

शिष्य ने इस पर उनसे पूछा यह कितना गंदा और कुरूप है। उसे आप साथ क्यों रखते हो?

च्वाँगत्से ने उत्तर दिया-यह मेरे दिमाग का तनाव दूर करने की अच्छी दवा है। जब अहंकार का आवेश चढ़ता है-लालच सताता है, तो इस खोपड़ी की गौर से देखता हूँ। कल परसों अपनी भी ऐसी ही दुर्गति होगी तो अहंकार और और लालच किसका किया जाय?

वे मृत्यु को स्मरण रखने, अनुचित आवेशों के समय का उपयुक्त उपचार बताया करते थे और इसके लिये मुर्दे की खोपड़ी का ध्यान करने की सलाह दिया करते थे। खुद तो उसे साथ रखते ही थे।

ईसा एक गाँव से होकर गुजर रहे थे। उनने एक आदमी को वेश्या के पीछे भागते हुए देखा तो रुक गये और उसे अनुचित से रुकने की बात समझाने लगे।

गौर से चेहरा देखा तो वह पूर्ण परिचित सा लगा। स्मरण करने पर पुरानी घटना याद आई। उनने फिर कहा-अरे तू तो वह व्यक्ति है जिसने दो वर्ष पूर्व अंधेपन से छुटकारा पाने की याचना की थी और मैंने प्रभु से प्रार्थना करके ज्योति दिलाई थी।

उस व्यक्ति ने ईसा को पहचान लिया और बोला-”आप जो कहते हैं सो ही यथार्थ है। मैंने तुझे दृष्टि इसीलिए दिलाई थी कि उसका उपयोग ऐसे घिनौने काम के लिए करे।

व्यक्ति कुछ देर चुप बैठा रहा और अपनी भूल पर आँसू बहाता रहा, पर आगे पैर बढ़ाते हुए, महाप्रभु के चरण चूम उसने दबी जबान से इतना और कहा-आप में नेत्र दृष्टि दिलाने की सामर्थ्य थी यदि विवेक दृष्टि पहले दिलाई होती तो कितना अच्छा होता?

ईसा ने आज नया पाठ पढ़ा वे लोगों की सुविधा दिलवाने की अपेक्षा उनकी समझ सुधारने की बात को प्राथमिकता देने लगे।

एक पेड़ पर दो बाज प्रेम-पूर्वक रहते थे। दोनों शिकार की तलाश में निकलते और जो भी पकड़कर लाते शाम को मिल बाँटकर खाते। बहुत दिन से उनका यही क्रम चल रहा था।

एक दिन दोनों शिकार पकड़कर लौटे तो एक की चोंच में चूहा था और दूसरे की में साँप। शिकार दोनों ही तब तक जीवित थे। पेड़ पर बैठकर बाजों ने जब उनकी पकड़ ढीली की साँप ने चूहे को देखा और चूहे ने साँप को।

साँप चूहे का स्वादिष्ट भोजन पाने के लिए जीभ लपलपाने लगा और चूहा साँप के प्रयत्नों को देखकर अपने पकड़ने वाले बाज के डैनों में छिपने का उपक्रम करने लगा।

उस दृश्य को देखकर एक बाज गम्भीर हो गया और विचार मग्न दीखने लगा, दूसरे ने उससे पूछा-”दोस्त, दार्शनिकों की तरह किस चिन्तन में डूब गये?”

पहले बाज ने अपने पकड़े हुए सांप की ओर संकेत करते हुए कहा देखते नहीं यह कैसा मूर्ख प्राणी है। जीभ की लिप्सा के आगे इसे मौत भी एक प्रकार से विस्मरण हो रही है।

दूसरे बाज ने अपने चूहे की आलोचना करते हुए कहा-और इस नासमझ को भी देखो! भय इसे प्रत्यक्ष मौत से भी अधिक डरावना लगता है। पेड़ के नीचे एक मुसाफिर सुस्ता रहा था। उसने दोनों की बात सुनी और एक लम्बी साँस छोड़ते हुए बोला-हम मानव प्राणी भी साँप और चूहे की तरह स्वाद और भय को बड़ा समझते हैं, मौत तो हमें भी विस्मरण रहती है।


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