अन्य बालकों के साथ युधिष्ठिर को भी पाठ पढ़ाये गये और उन्हें याद कर लाने के लिए कहा गया।
अन्य बालकों ने तो पाठ याद कर लिये पर युधिष्ठिर बहुत दिनों तक यही कहते रहे कि पाठ कठिन है। याद होता नहीं।
पाठ था ‘सत्यंवद्’ अर्थात् सत्य बोलो। यह चार अक्षर याद करने में तो कठिन नहीं थे पर युधिष्ठिर याद करना उसे मानते थे जो व्यावहारिक जीवन में उतर जाय।
युधिष्ठिर ने जीवन भर में वह एक ही गुरु मंत्र व्यावहारिक जीवन में पूरा कर पाया। वे पढ़ने लिखने में तो साथियों से आगे ही रहते थे।