लालचियों की दुर्गति

December 1992

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द्वितीय विश्व युद्ध का एक प्रसंग है कि इटली का तानाशाह मुसोलिनी नाजीवाद की पराजय के साथ अपने देश में उभरी क्राँति के परिमाण स्वरूप जान बचाकर भागा। मिलान से वह स्विट्जरलैण्ड अपनी प्रेयसी क्लारा पैट्सी के साथ ट्रक में जा रहा था। गुप्त रूप से बनी इस योजना की जानकारी किसी को भी नहीं थी। अरबों रुपये की बहुमूल्य सम्पत्ति, सोने की छड़ें, हीरे-जवाहरात जो उसके द्वारा नृशंसतापूर्वक शासन करते हुए कमाये गये थे तथा विदेशी मुद्रा जो खरबों डालर्स के मूल्य की थी उसके पास थी। उसका पलायन सफल नहीं हुआ। वह रास्ते में पकड़ा गया व कम्युनिस्टों द्वारा गोली से उड़ा दिया गया। दानों की लाशों का सार्वजनिक प्रदर्शन किया गया। खजाना कब्जे में लिया गया।

आश्चर्य यह हुआ कि वह विपुल सम्पदा रहस्यमय ढंग से कहीं गायब हो गयी। गुप्तचर विभाग की सारी शक्ति उस धन को तलाश करने पर केन्द्रित कर दी गई। विभाग की जिन दो सुन्दरियों ने मुसोलिनी को पकड़वाने में सहायता की थी, वे भी मरी पाई गई।

इसी प्रकार जिन लोगों को खजाने के बारे में कुछ जानकारी हो सकती थी ऐसे 75 व्यक्ति एक-एक करके कुछ ही दिनों के भीतर मृत्यु के मुख में चले गये। जिस ट्रक में मुसोलिनी भाग रहा था उसके ड्राइवर गौरेवी लाश क्षत विक्षत स्थिति में एक सड़क पर पड़ी पाई गई उसके पास मुसोलिनी का फोटो मौजूद था।

खजाने से भी अधिक रहस्यमय यह था कि उस प्रसंग से सम्बन्ध रखने वाले सभी व्यक्ति एक-एक करके मरते चले जा रहे थे। सन्देह यह किया जा रहा था कि कोई संगठित गिरोह यह कार्य कर रहा होगा, पर यह बात इसलिए सही नहीं बैठ रही कि मरने वाले एकाध दिन पूर्व ही बेतरह आतंकित होते थे और मुसोलिनी की आत्मा द्वारा उन्हें चुनौती, चेतावनी दिये जाने की बात कहते थे। खोज-बीन में संलग्न एक अधिकारी भी उस खजाने की वाली झील के पास मरा पाया गया। दूसरे अधिकारी मोस्कोवी की लाश उसके स्नानागार में ही मिली जिसका सिर गायब था। लाश के पास ही एक पर्चा मिला जिस पर लिखा-’मुसोलिनी का शरीर मर गया पर उसकी आत्मा प्रतिशोध लेने के लिए मौजूद है।

इस कार्य के लिए अतिरिक्त रूप से नियुक्त वरिष्ठ खुफिया पुलिस के अधिकारी बूचर और स्मिथ नियुक्त किये गये। उनने खजाने का पता लगाने का बीड़ा उठाया। यह स्पष्ट था कि वह धन कोमो झील के आस-पास ही होना चाहिए क्योंकि वहीं मुसोलिनी पकड़ा गया था। पकड़े जाते समय उसके पास वह खजाना था। गायब तो वह इसके बाद ही हुआ। इसलिए उसका वहीं कहीं छिपा होना सम्भव है। कम्युनिस्टों ने भी उसे वहीं कब्जे में ले लिया था और एक के बाद उनके बड़े अफसर भी जल्दी ही एकत्रित हो गये थे, इतने समूह द्वारा चुरा लिये जाने की बात भी सम्भव नहीं थी। फिर वे पकड़ने वाले कम्युनिस्ट भी तो उसी कुचक्र में मर रहे थे।

अपने खोज कार्य में बूचर और स्मिथ अपने दल सहित कोमो झील के समीप ही डेरा डाले पड़े थे। अचानक एक रात उनने मुसोलिनी को सामने खड़ा देखा उसका पीछा करने के लिए वे दौड़े पर तब तक वह गायब हो चुका था हाँ उसके पैरों के ताजा निशान ज्यों के त्यों धूल पर अंकित थे। गुप्तचर विभाग ने प्रमाणित किया वे निशान सचमुच मुसोलिनी के पद चिन्हों से पूरी तरह मिलते हुए है। वे दो ही अधिकारी दूसरे दिन से गायब हो गये और फिर उनका

कहीं पता न चला। अब भी उस खजाने को अभिशप्त की संज्ञा प्राप्त है। अभी तक पचास वर्ष बाद भी उसे पाया नहीं जा सका है व जिसने भी यह प्रयास किया है, उसे मौत के मुँह में जाना पड़ा है। यह हश्र हर उस व्यक्ति का होता है जो ऐसी संपदा के लालच में अपनी दुर्गति स्वयं करने को तत्पर हो उठता है।

तख्त ताऊस (मयूर सिंहासन) ने, जिसे शाहजहां ने बनाया था, एक ऐसी ही अभिशप्त विरासत के रूप में प्रसिद्ध प्राप्त की, क्योंकि इसके साथ ही मुगल साम्राज्य का पतन आरीं होने लगा। उसमें 12 करोड़ रुपये के रत्न जड़े थे। उसके निर्माण में सात वर्ष लगे और तत्कालीन श्रेष्ठतम रत्न शिल्पियों ने उसे बनाने में अपना पूरा श्रम, समय एवं मनोयोग लगाया। इसमें पन्ने से बने पाँच खम्भों पर मीनाकारी का छत्र बना हुआ था। पाये ठोस सोने के बने थे। खम्भों पर दो-दो मोर नृत्य करते हुए बनाये गये थे। प्रत्येक जोड़ो के बीच में हीरे-लाल, मोती, पन्ने आदि रत्नों से जड़ा एक-एक पेड़ था। बैठने के स्थान तक पहुँचने के लिए तीन रत्न-जड़ित सीढ़ियाँ थीं। उसमें कुल मिलाकर ग्यारह चौखटें थीं। मीनाकारी का स्वर्ण छत्र देखते ही बनता था। तख्त-ताऊस को अपने समय की अद्भुत और बहुमूल्य कलाकृति माना जाता था।

जिन अरमानों के साथ शाहजहां ने उसे बनवाया था वे पूरे न हुए। वह कुछ ही दिन उस पर बैठ पाया था कि उसके बेटे औरंगजेब के आतंक भरे शासन के साथ ही मुगल साम्राज्य का पतन आरम्भ हो गया। मुहम्मदशाह राज्याधिकारी था। उस पर ईरान का नादिरशाह चढ़ दौड़ा और भारी लूट-खसोट के अतिरिक्त तख्त-ताऊस भी फारस उठा ले गया। उसी के कुटुम्बी कुर्दा ने नादिरशाह की हत्या कर दी और उसका सारा माल असबाब छीन लिया और जिसमें यह मयूर जड़ित सिंहासन भी सम्मिलित था। लुटेरों ने उसके टुकड़े-टुकड़े कर डाले और उन्हें आपस में बाँट दिया। बटवारे में उस शानदार शामियाने को भी कतरव्योंत कर लिया जो उस सिंहासन के ऊपर ताना जाता था और रत्नों की झिलमिलाहट से आकाश में चमकने वाले सितारों की बहार देता था। जहाँ-जहाँ भी-इसका एक हिस्सा भी गया, उसका पतन होता चला गया। कुछ समय बाद ईरान की सत्ता आगा मुहम्मद शाह ने सँभाली। उसने नादिरशाह के लुटेरे वंशजों को पकड़ कर भारी यातनाएँ दीं और लूट का सारा माल उगलवा लिया। इस वापसी में तख्त-ताऊस के टुकड़े भी शामिल थे। जौहरियों ने उन टुकड़ों को जोड़-तोड़ एक नया तख्त-ताऊस बनाया। इसके बाद भी वहाँ अराजकता और गृह-युद्ध का सिलसिला चलता रहा और उसे फिर लूट लिया गया। रत्नों को उखाड़ लिया और कीमती पत्थरों को भविष्य में फिर कभी काम में लाने की दृष्टि से समुद्र में किसी खास जगह छिपा दिया गया। छिपाने वाले उस स्थान को बता नहीं सके और वे अवशेष अभी भी ईरान के समुद्र तट के निकट उथली जल राशि में पड़े हैं। जो भी पता लगाने की कोशिश करता है, उसे मौत का मुँह देखना पड़ता है। शोषण कर उपार्जित की गयी संपदा को पाने का लालच जो भी करता है, उसे पतन को ही प्राप्त होना पड़ता है, यह स्रष्टा का नियम है। उपरोक्त प्रसंग इसी की साक्षी देते हैं।


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