एक राजा किसी साधु को अपने रत्न भण्डार दिखाने ले गये। बहुमूल्य रत्नों का परिचय कराया गया। साथ ही यह भी बताया गया कि उसकी सुरक्षा के लिए कितने सशस्त्र सैनिकों का पहरा लगाया जाता है।
साधु ने उपेक्षा-पूर्वक उन्हें देखा और कहा-मैंने आपके इन सभी रत्नों से बड़ा रत्न देखा है। उस पर पहरा भी नहीं लगाया जाता साथ ही वह एक व्यक्ति के जीवन निर्वाह का साधन भी हर दिन जुटा देता है।
राजा आश्चर्य में पड़ गया और उस रत्न को देखने के लिए आतुरता प्रकट करने लगा। साधु उसे अपने साथ ले गया और एक झोंपड़ी में ले जाकर बुढ़िया की आटा पीसने की चक्की दिखाई और कहा- जैसे पत्थर है जो आटा पीसता है। पीसने वाले का पेट भरता है और चौकसी की जरूरत अनुभव नहीं करता। राजा लज्जित हो गया।