भजन-कर्म का मर्म (Kavita)

December 1992

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किये मंत्र-जप, माला फेरी, पूजन आठों याम का, रहे भाव संकीर्ण अगर तो, यह पूजन किस काम का?

हर पूनो, हर पर्व नहाए, गंगा जी के नीर में, पर मन डूब न पाया बिल्कुल, किसी दुखी की पीर में,

करते रहे सफर हम निष्ठुर, मन से चारों धाम का ईश्वर ने जो दिया, लगाया केवल अपने वास्ते,

स्वार्थ-पूर्ति हो जिनमें, हमने चुने वही सब रास्ते, किया यत्नह र पल-छिन हमने, अपने सुख-आराम का,

प्रगति देखकर औरों की हम, भरे द्वेष में, लोभ में, पूर्ण न हो पायी इच्छा तो, भरे तीव्र विक्षोभ में,

ध्यान रहा हर समय हमें तो, अपने ही धन-धाम का, व्यर्थ ऐंठना अहंकार में, भरकर झूठी शान से,

किन्तु माँगते रहना, खुद के लिये सदा भगवान से, द्वार-द्वार दौड़ना व्यर्थ में, यहाँ सुबह और शाम का,

जितना गड्ढा किया कि उतनी, मिट्टी डालो खेत में, प्रायश्चित का सूत्र दिया, यह गुरुवर ने संकेत में,

ध्यान न रह पाया यदि हमको, पापों के परिणाम का,

-शचीन्द्र भटनागर


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