न्यूयार्क के एक दोनों आँखों से अन्धे एन्थोनी एलिबर्टी नामक व्यक्ति को अपने अंधत्व पर कोई दुख नहीं है क्योंकि वह आँखों का काम कानों के सहारे चलाता है। वह नित्य लाँग आइलैण्ड से वाँक्स तक भारी भीड़ भाड़ वाला रास्ता इस होशियारी से पार करता है कि कोई उसके अन्धे होने का अनुमान नहीं लगा सकता। कोई साथी तो क्या लाठी का सहारा तक वह अपनी दैनिक यात्रा में नहीं लाता।
एंथोनी कुश्ती लड़ने, गोला फेंकने, छलाँग लगाने जैसे काम कर लेता है, साथ ही लोहा मशीन पर पुर्जे भी खरादता है। साइकिल चलाता है, पियानो बजाता है और अच्छी आमदनी करके परिवार का गुजारा करता है। इन कामों में उसे अभी तक किसी चोट या दुर्घटना का शिकार नहीं होना पड़ा। दृष्टि क्षमता न होने की बात डॉक्टरों द्वारा अनेक बार जाँची जा चुकी है। पत्रकारों को वह बताता है कि कोई भी अन्धा व्यक्ति अपनी दिव्य दृष्टि को अभ्यास द्वारा विकसित कर सकता है। मात्र मनोबल की प्रचण्डता इसके लिए चाहिए।
जापान के टोक्यो नगर की बारह वर्षीय बालिका सयूरी तनाका ने भी इसी तरह अतीन्द्रिय क्षमता विकसित कर ली है और वह आँखों का काम नासिका के अग्रभाग से लेती है। सामान्य आँखों पर मोटी पट्टी बाँध देने पर भी वह पुस्तकों को उसी तरह पढ़ लेती है जैसे कि नेत्रों से। वह न केवल टेलीविजन पर चल रहे कार्यक्रमों को देख लेती और अक्षरशः वर्णन कर देती है, वरन् उसने इस क्षमता को इतना अधिक विकसित कर लिया है जिसके द्वारा सामान्य नेत्रों से सम्पन्न होने वाले सभी कार्यों को करने में वह सक्षम बन गई है। तृतीय नेत्रों की तरह ही उसकी नासा दृष्टि से कुछ भी छिपा नहीं रहता। दो वर्ष की छोटी उम्र से ही वह अनुसंधान कर्ताओं के लिए खोज का विषय बनी हुई है। विशेषज्ञों ने उसकी इस विलक्षणता को कितनी ही बार जाँचा-परखा है और पाया है कि नाशाग्र को ढक देने पर तनाका छटपटाहट सा महसूस करती है। वे मात्र इतना ही जान पाये हैं कि यह सामर्थ्य मानसिक चेतना के एक जगह पर केन्द्रीभूत होने के कारण उद्भूत हुई है। यह संभावना हर किसी में विद्यमान है।
चीन के लेनज्होन शहर के निकट रहने वाले वेल रुओयाँग नामक एक किशोर की आँखें एक्सरे की तरह पारदर्शी हैं। दीवालों के उस पार क्या हो रहा है व पृथ्वी के गर्भ में कहाँ क्या छिपा हुआ है? उसकी आँखें उन्हें स्पष्ट देख लेती हैं। मानवी काया की भीतरी संरचना, उस में उत्पन्न विकार ट्यूमर आदि की स्पष्ट जानकारी उसकी सूक्ष्म दृष्टि एक्सरे की तरह रोगी के सामने उजागर कर देती है। बैल ने अपने कानों को भी पारदर्शी एवं अति संवेदनशील बना लिया है और उनसे पढ़ने का काम लेता है। परीक्षणकर्ता वैज्ञानिकों एवं मूर्धन्य पत्रकारों ने इस तथ्य की पुष्टि की है कि उसकी यह प्रतिभा जन्मजात है जिसको अभ्यास द्वारा विकसित करके उसने इस स्तर तक पहुँचा दिया है कि लोग उसे दिव्य द्रष्टा की संज्ञा देने लगे हैं।
कितने ही लोग जन्मजात विलक्षणता लिए होते हैं, पर कई बार ऐसा भी होता है कि किन्हीं-किन्हीं व्यक्तियों में किसी दुर्घटना के कारण भी ऐसी दिव्य क्षमताएँ उभर आती हैं। पिछले दिनों सोवियत संघ के यूक्रेन प्रान्त की एक खान में कार्यरत 36 वर्षीय महिला जुलिया वोरोवियव के साथ कुछ ऐसा ही घटित हुआ। उच्च धारा वाले बिजली के तार से छू जाने के कारण उसे 6 महीने अस्पताल में भर्ती रहना पड़ा। इसी मध्य एक दिन उसने अनुभव किया कि उसकी आँखें एक्सरे की भाँति किसी भी वस्तु या व्यक्ति के आरपार एवं उसके भीतर झाँक सकती हैं। सूर्य की अति सूक्ष्म अल्ट्रावायलेट किरणों तक को वह देख लेती है। धरती के गर्भ में छिपी खनिज सम्पदा, जल स्रोत, विवर आदि कुछ भी उसकी आँख से बच नहीं पाते और अपना रहस्य उगल देते हैं। मौसम-परिवर्तन एवं तूफानों के आगमन की पूर्व जानकारी उसे बहुत पहले ही हो जाती है। डोनेटुक अस्पताल के चिकित्सा विज्ञानी जुलिया की इस अतीन्द्रिय क्षमता के माध्यम से उन जटिल रोगों का पता लगाते हैं जिन्हें वे स्वयं महँगे वैज्ञानिकों उपकरणों से भी ज्ञात नहीं कर पाते। जब कि वह जटिल से जटिल रोगों की जानकारी 5 से 10 सेकेण्ड के अन्दर प्राप्त कर लेती है।
इटली के प्रसिद्ध पर्यटक स्थल फामिया में रहने वाले 11वीं कक्षा के छात्र बेनेदेत्तो सुपीनों की आँखों से चिनगारियों का फव्वारा छूटता है। जब कभी वह किसी वस्तु पर देर तक नजरें टिका देता है, उसमें आग लग जाती है। अब न तो वह नेत्रों पर जोर देकर पुस्तकें पढ़ सकता है और न ही कुछ लिख सकता है। परिवार के सदस्यों की तरफ भी वह एक टक नहीं देख सकता, अन्यथा किसी के चेहरे पर नजर टिकी कि वह झुलसने लगता है। परीक्षणकर्ता वैज्ञानिकों ने इसे प्राणशक्ति का चमत्कार बताया है, जो किन्हीं कारणों से बेनेदेत्तो में जाग्रत हो गई हैं, पर उसके सुनियोजन की कला ज्ञात न होने से वह मात्र तमाशा दिखाने या हानि पहुँचाने जैसे कौतूहल ही प्रस्तुत कर सकती है।
इसी तरह रूस के यूक्रेन का शशा नामक एक किशोर छात्र जिस किसी वस्तु का स्पर्श कर लेता है, वह जलने लगती है। अब तक वह अपने तन ढकने के वस्त्रों से लेकर घर की प्रायः सभी वस्तुओं को भस्मसात् कर चुका है। अपनी इस विलक्षण शक्ति के कारण उसे कितनी ही बार स्थान परिवर्तन के लिए रिश्तेदारों के यहाँ भेजा गया, किन्तु वहाँ से भी इस प्रक्रिया के कारण उसे भागना पड़ा। शशा की असाधारण क्षमता का अध्ययन कर रहे सुप्रसिद्ध चिकित्सा विशेषज्ञ डॉ. वाल्दीमिर कोरचिन्कोव का कहना है कि उसकी पूरी काया डायनेमो की भाँति विद्युतीय आवेश से भरी रहती है और जब तक उसमें उफान सा उठता है और संपर्क में आने वाली वस्तु में आग लग जाती है। इसी तरह का निष्कर्ष यूक्रेनियन एकेडमी ऑफ साइन्सिस के प्रमुख रसायन विज्ञानी डॉ. ए नातोली पोपोव का हैं। उनने इसे प्राणाग्नि का एक स्थान पर अधिक परिणाम में संचय बताया है और माना है कि मनुष्य का शरीर भी सूर्य की तरह ही एक आग का गोला है। इस छोटे से पिण्ड में अगणित शक्तियाँ समाहित हैं जिनमें से प्राण एक है। यह सारा खेल उसी का है।
मैनचेस्टर की श्रीमती पालिन शा नामक एक अधेड़ महिला चलते फिरते जीवंत बिजली घर के रूप में प्रसिद्ध है। जिस किसी वस्तु को वह स्पर्श कर लेती है, धमाके की आवाज के साथ उसमें से शॉर्टसर्किट की तरह चिनगारी निकलने लगती है। हाथ मिलाने वाले झटके खा कर दूर जा गिरते हैं। जाँचकर्ता वैज्ञानिकों ने पाया है कि पालिन के शरीर से दो हजार बोल्ट तक का विद्युतीय प्रवाह निकलता है। इससे बचने के लिए डॉक्टरों ने उसे विद्युत रोधी दस्ताने पहनने और दिन में कई बार नहाने की सलाह दी है। अपने बायें टखने में वह सदा एक अर्थ वायर बाँधे रखती है जिससे शरीर में उत्पन्न होने वाली अतिरिक्त विद्युतीय तरंगें धरती में समा जायें।
पालिन शा पहले एक कंप्यूटर कंपनी में र्क्क के पद पर कार्यरत थी, पर कुछ दिनों पश्चात् उसके अन्दर कुछ ऐसा परिवर्तन हुआ कि उसकी उपस्थिति मात्र से कम्प्यूटरों ने सही ढंग से काम करना ही बंद कर दिया। फलतः राशियाँ और परिणाम गलत निकलने लगे। उसका स्थानान्तरण अन्य जगह कर देने पर मालिक को दूसरी तरह की परेशानियाँ सुनने को मिलने लगी कि जो भी उसके संपर्क में आता है, विद्युतीय झटके का शिकार बन जाता है। अंततः उसे नौकरी छोड़नी पड़ी। अपनी विद्युतीय क्षमता का परिचय सबसे पहले उसे तब मिला, जब एक दिन मछलियों से भरे एक्वैरियन्म को छूने मात्र से उसके काय विद्युतीय न्यू प्रवाह को प्रवाह सह ने पाने कारण वे सबकी सब मछलियाँ छटपटा कर मर गईं।
उपरोक्त घटनाएँ महर्षि वशिष्ठ के उस कथन की पुष्टि करती हैं जिसमें कहा गया है कि मानवी काया से श्रेष्ठ और अद्भुत संरचना इस सृष्टि में और कोई दूसरी नहीं है। समस्त ऋद्धि-सिद्धियों के भाण्डागार इसी देह में प्रसुप्त अवस्था में भरे पड़ा हैं। आवश्यकता मात्र उन्हें पहचानने, जाग्रत और विकसित करने तथा सदुपयोग में लाने भर की है। आन्तरिक विभूतियाँ कितनी बहुमूल्य हैं, इसे अनुभव से ही जाना जा सकता है।
उपरोक्त वृत्तांत चाहे वे अतीन्द्रिय क्षमता के जागरण के हों अथवा प्राण शक्ति के एक स्थान पर केन्द्रीकरण से चमत्कारी परिणति दिखाने वाले, एक ही तथ्य प्रमाणित करते हैं कि ऋद्धि-सिद्धियों का समुच्चय मनुष्य में अंदर प्रसुप्त पड़ा है। यदि प्रयास पूर्वक उन्हें जगाया उभारा जा सके तो अपनी सामान्य क्षमताओं के अतिरिक्त इस सामर्थ्यों से वही लाभ लिया जा सकता है जो प्राचीनकाल में ऋषिगण अपनी काया रूपी प्रयोगशाला में तपश्चर्या द्वारा प्रत्यक्ष कर दिखाते थे। भौतिक उपलब्धियों की तुलना में आत्मिक विभूतियाँ निश्चित ही बहुमूल्य हैं, इस तथ्य पर किसी प्रकार विवाद नहीं है।