अपनी मर्जी की बात (Kahani)

December 1990

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चीन का एक सेनापति एक सन्त के पास स्वर्ग नरक की व्याख्या पूछने आया। सन्त ने मौखिक उत्तर से काम न बनता देख तो उसे प्रत्यक्ष दिखाने का उपाय सोचा।

सन्त ने सेनापति से पूछा-आप कौन है”? उत्तर मिला “सेनापति”। इस पर सन्त हँस पड़े और बोले -”लगते तो भिखारी से हो?” इस पर सेनापति को क्रोध आ गया और वह म्यान तलवार खींचने लगा। सन्त ने कहा -”यह तो लकड़ी की सी मालूम पड़ती है। तुम्हारी कलाइयाँ में इतना बल भी है जो मेरी गरदन काट सको।”

इस पर सेनापति आपे से बाहर हो गया और गाली देते हुए उन्हें मारने दौड़ा। सन्त इस बार फिर सौम्य हँसी हँसे और बोले-देखा यही नरक है, जिसमें तुम फँस गये।”

सेनापति ने विचार किया तो उसे लज्जा आई और सन्त से क्षमा माँगने लगा अब उसको शान्ति थी। सन्त से क्षमा माँगने लगा अब उसको शान्ति थी। सन्त ने बताया-देखा यही स्वर्ग है। क्रोध में नरक और शान्ति में स्वर्ग है। इसमें से किसी एक को चुन लेना हर मनुष्य की अपनी मर्जी की बात है।”


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