विद्या विस्तार-आज की सर्वोपरि सेवा साधना

December 1990

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प्रतिभा परिष्कार मानवीय प्रगति और प्रसन्नता का एक मात्र आधार है। संस्कारवान् आत्मायें ही संवेदना अनुभव करतीं और पीड़ित मानवता के लिए अग्रसर होती हैं। इस युग में सब कुछ है पर ऐसी परिष्कृत प्रतिभावान सम्पन्न आत्माओं का सर्वत्र अभाव दिखायी दे रहा है। इस उपार्जन को परम पूज्य गुरुदेव ने अपनी अन्तिम आकांक्षा कहकर अपनी दूसरी पीढ़ी को यह दायित्व सौंपकर महाप्रयाण किया है। यह हमारे लिए एक चुनौती है कि हम उसे किस प्रकार पूरा करें?

प्रतिभाओं के उपार्जन के लिए एक ही धरातल है-विद्या विस्तार”। विद्या ददाति विनयम्, विनया ददाति पात्रताम्, पात्रता का विकास विद्या से होता है। विद्या अर्थात् शिक्षा और जीवन दर्शन का समन्वय। एकांगी शिक्षा से जीवन की समस्याओं का समाधान नहीं होता। सद्ज्ञान से जीवात्माएँ अपने अन्तःकरण में विराट् विश्वात्मा का बोध करती है। सद्ज्ञान जब सत्कर्म में परिणत होता है, तब सर्वत्र सुख-समृद्धि का सागर लहराता दिखाई देता है। पीड़ा और पतन के वर्तमान दावानल से मनुष्य जाति को उबारने और अनास्था संकट के सर्वनाश से बचाने का एक ही रास्ता है-ज्ञान यज्ञ” मनुष्य की समझदारी का विकास, उसके अज्ञान को मिटाना और लघुता में ही विराट् का बोध कराना। प्राचीनकाल का सामान्य व्यक्ति भी महान मानवीय गरिमा से ओत-प्रोत इसी आधार पर हुआ था कि उस समय सर्वत्र विद्या विस्तार का ही बोलबाला था। ज्ञान में ही लोग जन्मते और ज्ञान में विकसित होकर अन्त में विराट् ज्ञान को ही समर्पित हो जाते थे। स्वर्ग और मुक्ति की संज्ञा भी इसी ब्राह्मी स्थिति को बताया गया है।

इस मिशन के लिए जो पहला और लक्ष्य भी यही है। परम पूज्य गुरुदेव ने सारे जीवन भर ज्ञान की ही आराधना की और जन-जन तक ज्ञानामृत ही बाँटा। यह श्रद्धांजलि वर्ष है। इस वर्ष हमें अपनी सारी शक्ति इस महान प्रयोजन में झोंक देने से ही इस समारोह की सार्थकता है और परम पूज्य गुरुदेव के प्रति श्रद्धांजलि की सच्ची अभिव्यक्ति भी।

अखण्ड ज्योति का व्यापक विस्तार

भगीरथ ने राह बनायी और पतित पावनी गंगा युगों-युगों तक के लिए अमर हो गयी। परम पूज्य गुरुदेव नहीं रहे, पर उनकी वाणी-उनका हृदय, उनका अन्तःकरण तीनों अखण्ड ज्योति में समाहित है। इस गंगोत्री का प्रवाह अनन्तकाल तक प्रवाहित होकर जनमानस का परिष्कार करता रहेगा, इसमें किसी को रत्ती भर भी सन्देह नहीं रहना चाहिए। वह जितना आगे बढ़ेगी, उतनी ही विराट् होती चली जायेगी। अभी उसे हिन्दी के अतिरिक्त मात्र गुजराती, मराठी, उड़ीसा, तेलगू, तमिल बंगला भाषा में ही प्रकाशित किया जा रहा है। अगले दिनों वह न केवल सभी भारतीय भाषाओं में, अपितु विश्व की अन्य समृद्ध भाषाओं में भी प्रकाशित हो, वैसे उपक्रम शाँतिकुँज से जुटाये जा रहें हैं।

मूल प्रकाशन हिन्दी भाषा का ही है। परम पूज्य गुरुदेव इतना लिखकर छोड़ गये हैं, जो हिन्दी में लम्बे समय तक चलता रहेगा। उसके अतिरिक्त सावित्री महाविद्या, यज्ञ विज्ञान तथा गीता दर्शन पर लिखी उनकी सर्वथा अप्रकाशित सामग्री पाठकों तक पहुँचाने की व्यवस्था की जा रही है। उनके जीवन के वह अछूते प्रसंग जो अब तक अविज्ञात रहे हैं, अब अखण्ड ज्योति में परिजनों को नियमित रूप से पढ़ने को मिलते रहेंगे। विश्वास किया जाना चाहिए, अखण्ड-ज्योति विद्या विस्तार का मेरुदण्ड है। कोई भी ऐसा शिक्षित घर नहीं बचना चाहिए, जहाँ अखण्ड-ज्योति पढ़ी और सुनी न जाती हो। युग शक्ति गायत्री आदि अन्य सभी भाषाओं की पत्रिकाओं के लिए भी यही बात है क्योंकि वे अखण्ड-ज्योति का ही रूप हैं।

आत्मीय कुटुम्बियों को ज्ञात होगा, परम पूज्य गुरुदेव की स्मृति में निकाला गया अगस्त सितम्बर अखण्ड ज्योति विशेषांक 240 पेज अर्थात् चार अखण्ड-ज्योति पत्रिकाओं के बराबर का है। 84 पृष्ठ के आफसेट रंगीन चित्र और लगभग उतने ही श्वेत-श्याम चित्रों के ब्लॉक है। उसे निकालने में कागज छपाई, ब्लॉक प्रोसेसिंग आदि में प्रायः पच्चीस लाख रुपयों का बैंकों का कर्ज हो गया है। पत्रिका किसी भी तरह का अनुदान या विज्ञापन नहीं लेती। उधर पिछले एक वर्ष में ही कागज, स्याही, छपाई तथा पोस्टेज में असाधारण वृद्धि के कारण उत्पन्न संकट का सामना करना कठिन हो रहा है। बड़ी संख्या में निकलने वाली पत्रिकाएँ सरकारी छूट और सुविधाओं से भी वंचित कर दी गयी है। अतएव संकट और भी गहरा गया है।

दो ही विकल्प बचे हैं, या तो अखण्ड-ज्योति के पृष्ठ कम किये जायें या फिर चन्दा बढ़ाया जाये। संजीवनी विद्या विस्तार जैसे आज के सर्वाधिक महत्व के विषय पर सामग्री कम करने का औचित्य कोई भी स्वीकार नहीं कर रहा है। इस स्थिति में अखण्ड-ज्योति के वार्षिक चन्दे में न्यूनतम वृद्धि की जा रही है जैसे कि पूर्व में सूचना दी गयी थी, अब उसका चन्दा 35/- वार्षिक होगा, आजीवन सदस्यता शुल्क 500/- रखा गया है। अन्य पत्र-पत्रिकाओं की तुलना में आज भी अखण्ड-ज्योति का चन्दा बिलकुल कम है। किसी भी छोटी से छोटी पत्रिका का भी चन्दा 3.50 प्रति अर्थात् 42/- वार्षिक से कम नहीं हैं, जबकि उनके कलेवर और गेट अप में भी जमीन आसमान का अन्तर है। इन परिस्थितियों को स्वीकार करते हुए अपने कुटुम्बियों से इस सामान्य मूल्य वृद्धि को सहर्ष स्वीकार करने का हार्दिक अनुरोध है। इससे एक सीमा तक ही नुकसान की भरपाई होगी।

यदि पत्रिका के सदस्यों की संख्या न बढ़ाई गई, तो यह आर्थिक दबाव दिनों-दिन बढ़ता रहेगा और बार-बार परिवर्तनों की आशंका बनी रहेगी। अतएव अपने सभी परिजनों से इस वर्ष व्यक्तिगत अभिरुचि लेकर अखण्ड-ज्योति और अन्य पत्रिकाओं की सदस्य संख्या बढ़ाने की अपील की जा रही है। सदस्य बनाने का क्रम चाहे एकाकी पुरुषार्थ के बल पर हो या टोलीबद्ध प्रयत्नों द्वारा रसीद बुकें अखण्ड-ज्योति संस्थान घीयामण्डी मथुरा से अथवा शाँतिकुँज हरिद्वार से मँगा लेनी चाहिए, उससे शुल्क संग्रह में सुविधा रहेगी।

श्रद्धांजलि समारोह के समय सीमित संख्या में छपने के कारण स्मृति अंक सभी परिजनों को नहीं मिल सके थे, उन्हें तैयार करा दिया गया है। 25 रुपये का मनीआर्डर, पोस्ट आर्डर या ड्राफ्ट भेज कर इन्हें शाँतिकुँज हरिद्वार से मँगाया जा सकता है। जिन्हें अधिक संख्या में चाहिए हो वे रेलवे से मँगाए। समीपवर्ती रेलवे स्टेशन का नाम अँग्रेजी के कैपिटल अक्षरों में वेर्स्टन, सदर्न या नार्दन रेलवे जो हो, उसके सहित अंकित करके भेजें। ड्राफ्ट अखण्ड ज्योति संस्थान मथुरा के नाम बनवाकर भेजना चाहिए।

ज्ञान रथ झोला पुस्तकालय

विद्या-विस्तार कार्यक्रम में ज्ञान रथों और झोला पुस्तकालयों की भूमिका को अहं मानते हुए उनके व्यापक विस्तार की तैयारियाँ की गयी है। साहित्य एवं यज्ञोपवीत, हवन सामग्री, पूजा उपकरण अगरबत्ती, स्टीकर्स, चित्र आदि रखने का प्रबंध करना चाहिए। आवश्यकता पड़ने पर साहित्य उधार उपलब्ध कराने का भी प्रबंध किया जायेगा पर ज्ञान यज्ञ अभियान को सशक्त बनाना, अब एक अनिवार्य सत्य बन गया है, उसकी बहुत पहले से ही माँग की जाती रही है। जिन शक्तिपीठों-प्रज्ञा संस्थानों ने अब तक ज्ञान रथ प्रारंभ नहीं किए, उन्हें अविलम्ब अपने मन्दिरनुमा बोलते-गाते ज्ञान रथ तत्काल या तो स्वयं बना लेने चाहिए या फिर शाँतिकुँज से प्राप्त कर लेने चाहिए और यह प्रबंध करना चाहिए कि ज्ञान रथ नियमित रूप से चलें और घर-घर अलख जगाते हुए जन-जन तक प्रज्ञा प्रकाश पहुँचाने को सेवा साधना सम्पन्न करें।

व्यक्तिगत स्तर पर चलने वाले झोला पुस्तकालयों में भी नया साहित्य बढ़ाना आवश्यक है, उनका भी पुनर्गठन किया जाना चाहिए। नये सिरे से जिन लोगों तक यह साहित्य पढ़ाया जाये, उनका पूरा रिकार्ड रखा जाये, ताकि ऐसे भावनाशीलों को शाँतिकुँज में चलने वाली सत्र श्रृंखला में प्राथमिकता दी जा सके। परम पूज्य गुरुदेव की चुनी हुई पुस्तकों के रिप्रिन्ट गायत्री तपोभूमि मथुरा से छप गये हैं उन्हें भी मँगाया जाना चाहिए।

संगीत और वीडियो कैसेट

शक्तिपीठों, शाखाओं और प्रज्ञा मंडलों का वातावरण विनिर्मित करने और जन जीवन को प्रेरक विचार एवं भावनाएँ प्रदान करने की दृष्टि से पूज्य गुरुदेव ने जननायकों को बहुत महत्व दिया था। जिन शक्तिपीठों में प्रातःकाल गीतों के प्रसारण का क्रम चलता है, वहाँ का जन संपर्क भी अनेक गुना अधिक विस्तृत हुआ है और श्रद्धा सम्मान भी बढ़ा है। इन्हें जागृत तीर्थों के रूप में प्रतिष्ठा मिल रही है। यह क्रम सर्वत्र चलना चाहिए। व्यक्तिगत आयोजनों में भी इन गीतों का प्रसारण हो, तो यह अच्छी बात होगी। उसके लिए श्रद्धांजलि समारोह के अवसर पर नये और आकर्षक गीतों के कैसेट तैयार करा लिए गये हैं। इन्हें प्रामाणिक संस्थाओं द्वारा सुयोग्य तकनीकीशियनों द्वारा तैयार कराया गया है। उसने उनका प्रभाव बहुत अधिक बढ़ गया है-ध्यान-धारण ऋषि चिंतन, पूज्य गुरुदेव के महत्वपूर्ण उद्बोधन आदि विषयों पर भी कैसेट उपलब्ध हैं। यह कैसेट शाँतिकुँज से अविलम्ब मँगा लेने चाहिए ताकि नवयुग के स्वागत का आकर्षक क्रम तत्काल प्रारंभ किया जा सके।

श्रद्धांजलि समारोह परम पूज्य गुरुदेव के जीवन दर्शन तथा मिशन के विराट् स्वरूप की जानकारी देने वाले चार वीडियो कैसेट्स भी अब शाँतिकुँज में उपलब्ध हैं 150 रु. प्रति कैसेट की दर से यह वीडियो कैसेट किन्हीं आगन्तुकों के हाथ मँगाए जा सकते हैं, डाक से भेजना किसी भी तरह सम्भव नहीं।

आज का समाज पीड़ा और पतन से कराह रहा है, उस दर्द को इस मिशन के कोटि-कोटि परिजनों ने अनुभव किया है। भाव संवेदना को अब एक दावानल के रूप में फूटना चाहिए, ताकि अवांछनीयता, अपराध वृत्ति और अनैतिकता को जला कर भस्मसात् किया जा सके। खण्डनात्मक प्रयत्नों से नहीं विधेयात्मक प्रयत्नों से। यही आज की सबसे बड़ी सेवा, साधना और राष्ट्र भक्ति है। उसमें हर भावनाशील को सम्पूर्ण हृदय और अन्तः करण से जुट जाने का ठीक यही समय है।


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