स्थूल से परे सूक्ष्म की सामर्थ्य

December 1990

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

मनुष्य मात्र पंचभौतिक शरीर ही नहीं है, वरन् उसकी एक प्रचण्ड सामर्थ्य युक्त सूक्ष्म सत्ता भी होती है जिसे सूक्ष्म शरीर कहते हैं, आत्मा का वाहन भी। इसी पर सवार होकर आत्मा लोक-परलोक की यात्राएँ करता तथा मरणोत्तर जीवन के पश्चात् पुराने कलेवर को छोड़कर नये कलेवर में प्रवेश करता है। तपस्वी एवं सिद्ध योगीजन अपने इसी शरीर से स्वल्प समय में दूरवर्ती दुर्गम क्षेत्रों की यात्राएँ करते एवं जरूरतमंदों की सहायता करते देखे-सुने जाते हैं। सूक्ष्म शरीर से अन्य शरीरों में प्रवेश करने की कथा-गाथाओं का भी उल्लेख मिलता है। जिन कार्यों को मनुष्य स्थूल काया से सम्पादित नहीं कर पाता, वह दिव्य दर्शन, दूरश्रवण, दूर सम्प्रेषण, दूरगामी जैसे कठिन कार्य सूक्ष्म शरीर को विकसित कर लेने पर सहज संभव हो जाते हैं।

भारत का प्राचीन इतिहास आध्यात्मिक उपलब्धियों से भरापूरा है। इसे आध्यात्मिक उपलब्धियों की श्रृंखला कहें तो आध्यात्मिक साहित्य और दर्शन को तत्त्वदर्शी ऋषि-मनीषियों योगी और सन्तों का इतिहास कहना पड़ेगा। आध्यात्मिक जगत की ऐसी कितनी ही घटनाएँ हैं जो इस तथ्य पर प्रकाश डालती हैं कि स्थूल शरीर से परे जीवात्मा का वाहन ‘सूक्ष्म शरीर-जिसे ‘एस्ट्रल बॉडी, एटलर बॉडी’ के नाम से भी जाना जाता है, विलक्षण क्षमता सम्पन्न एक सुनिश्चित सत्ता है। इसे अदृश्य प्रवृत्तियों और शक्तियों का केन्द्र भी कहा जाता है। इसको विकसित कर लेने पर लोक-लोकान्तरों की यात्राएँ की जा सकती हैं। अपनी सूक्ष्म सत्ता को दूसरों की काया में प्रवेश कराकर उनसे मनचाही दिशा में कार्य कराया जा सकता है। इस संदर्भ में आद्यशंकराचार्य की वह घटना प्रसिद्ध है जिसमें महान विद्वान मण्डन मिश्र के पराजित होने पर उनकी पत्नी विदुषी भारती ने मोर्चा सँभाला था और उनके गूढ़ प्रश्नों के उत्तर देने के लिए शंकराचार्य को एक मृत राजा के शरीर में परकाया प्रवेश करना पड़ा था। तत्पश्चात् अपने शरीर में वापस आकर उन्होंने भारती के प्रश्नों का उत्तर दिया और उन्हें परास्त किया। परकाया प्रवेश की यह घटना पिण्ड की सामर्थ्य के उस चेतन पक्ष का परिचय देती है जिसे रहस्यमय विभूतियों से सम्पन्न माना जाता है।

इतिहास में इस घटना की तरह ही पाटलिपुत्र के सम्राट महापद्मनन्द और चाणक्य की कथा भी प्रख्यात है। लोग जानते हैं कि महापद्मनन्द का शरीर एक था, पर उस शरीर से यात्राएँ दो आत्माओं ने की थीं। एक स्वयं महापद्मनन्द ने तो दूसरे तत्कालीन विद्वान आचार्य उपवर्ष के प्रसिद्ध योगी शिष्य-इन्द्रदत्त ने।

नाथ सम्प्रदाय के आदिगुरु महायोगी मत्स्येन्द्रनाथ के विषय में कहा जाता है कि सूक्ष्मशरीर से वे अपनी इच्छानुसार आवागमन विभिन्न लोकों में करते थे। उन्हें परकाया प्रवेश की सिद्धि प्राप्त थी। एक बार अपने शिष्य गोरखनाथ को स्थूल शरीर की सुरक्षा का भार सौंपकर मृत राजा के शरीर की सुरक्षा का भार सौंपकर मृत राजा के शरीर में उन्होंने सूक्ष्मशरीर से प्रवेश किया था। गोरखनाथ स्वयं एक महान योगी थे और अध्यात्म जगत की विभूतियों से सम्पन्न थे। महाभारत के “शान्तिपर्व” में वर्णन है कि सुलभा नामक विदुषी अपने योगबल की शक्ति से राजा जनक के शरीर में प्रविष्ट कर विद्वानों से शास्त्रार्थ करने लगी थी। उन दिनों राजा जनक का व्यवहार भी स्वाभाविक न था। ‘अनुशासन पर्व’ में ही कथा आती है कि एक बार इन्द्र किसी कारणवश ऋषि देवशर्मा से कुपित हो गये। उन्होंने क्रोधवश ऋषि की पत्नी से बदला लेने का निश्चय किया। देवशर्मा का शिष्य-विपुल योग-साधनाओं में निष्णात् और सिद्ध था। उसे योग दृष्टि से यह मालूम हो गया कि मायावी इन्द्र गुरुपत्नी से बदला लेने वाले हैं। विपुल ने सूक्ष्म शरीर से गुरुपत्नी के शरीर में उपस्थित होकर इन्द्र के हाथों से उन्हें बचाया।

पतंजलि योगदर्शन में सूक्ष्मशरीर से आकाश-गमन करने, एक ही समय में अनेकों शरीर धारण करने, अदृश्य होने, परकाया प्रवेश करने जैसी अनेकों योग विभूतियों का वर्णन है जो प्रकारान्तर से जीवात्मा की अकूत सामर्थ्य और काया से परे उसकी स्वतंत्र सत्ता का प्रतिपादन करती है। सत्, रज, तम से बने संसार और पंचभौतिक काया से जुड़े आकर्षणों से अत्याधिक लिप्त होने के कारण अपनी मूल सत्ता, जो समस्त शारीरिक एवं मानसिक हलचलों का केन्द्र है, का बोध नहीं हो पाता। बाह्यकर्षणों के आवरणों को चीरकर निकल सकना संभव हो सके तो प्रतीत होगा कि अपनी ही आत्म सत्ता में ऋद्धि-सिद्धियों को ऐसा विलक्षण भण्डार छिपा पड़ा है जिसे जानकर समष्टि चेतन सत्ता से संबंध जोड़ सकना तथा विभूति सम्पन्न-सामर्थ्यवान बन सकना संभव है। शास्त्र में इसी तथ्य का प्रतिपादन करते हुए ऋषि कहते हैं-योगी को अदृश्य जगत् दृश्यवत् दीखता है। उसे दूरदर्शन, दूरश्रवण की विभूतियाँ उपलब्धियाँ होती हैं। ध्यान मात्र से योगी भूत, भविष्य, वर्तमान तथा प्राणियों के मनोगत भाव जान लेता है।”

अदृश्य जगत को जान लेना-उसमें सूक्ष्मशरीर द्वारा प्रवेश कर सकना संभव है। विज्ञानवेत्ता भी अब इस तथ्य को स्वीकारने लगे हैं और सूक्ष्मशरीर की विशिष्ट क्षमता को उद्घाटित करने निरत हुए हैं। अनुसंधानकर्ताओं ने स्थूल काया से सूक्ष्मशरीर के बाहर निकलने की प्रक्रिया को -’ऐक्सोमेटिक स्टेट’ तथा ‘आउट ऑफ बॉडी एक्सपीरियेन्स’ (ओ. बी. ई.) अर्थात्-शरीर से बाहर अतीन्द्रिय अनुभव आदि नामों से संबोधित किया है। पाश्चात्य योग साधकों में से डॉ. माल्थ कारिंगटन, हैवर्टलमान, लिण्डार्स, डुरावेल मुलडोन, ओलीवर लॉज, डॉ. मेस्मर, डेविडनील, पाल ब्रण्टन आदि के अनुभवों और प्रयोगों में सूक्ष्मशरीर की प्रामाणिकता सिद्ध करने वाले अनेक प्रमाण उपस्थित किये गये हैं। जे. मुलडोन अपने स्थूल शरीर से सूक्ष्मशरीर को पृथक् करने के कितने ही प्रदर्शन कर चुके थे। उनने इन सबकी चर्चा अपनी पुस्तक-द प्रोजेक्शन ऑफ एस्ट्रल बॉडी” में विस्तारपूर्वक की है।

फ्राँस के प्रख्यात कथाकार गुई दि मोपाँसा ने अपने संस्मरण में लिखा है कि जब कभी वह लिखने बैठते तो उनके सम्मुख एक सूक्ष्म शरीरधारी पुरुष बैठा मिलता। वह उनसे आग्रहपूर्वक वही लिखाता जो उसकी इच्छा होती। लेखन समाप्त होती ही वह अदृश्य हो जाता। कहानी पढ़ने पर प्रतीत होता कि किसी उच्चस्तरीय साहित्यकार की आत्मा ने उसमें अपने प्राण उड़ेल दिये हैं। इसी तरह के एक संस्मरण का उल्लेख करते हुए अंग्रेजी के ख्याति प्राप्त कवि बायरन ने अपने समकालीन कवि शैली के सूक्ष्मशरीर से यात्राएँ करने का वर्णन किया है। एक ही समय में उनके दो भिन्न स्थानों में उपस्थिति रहने की सामर्थ्य का वर्णन करते हुए वे लिखते हैं कि जब एक बार वह किसी जंगल से गुजर रहे थे तो उनकी भेंट शैली से हो गई और वार्तालाप करने से पूर्व ही अदृश्य हो गये। खोजबीन करने पर माया गया कि उस वक्त शैली कहीं दूसरी जगह अपने मित्रों से बातचीत करने में मशगूल थे।

पुराणों में उल्लेख है कि प्राचीन काल के योगी तपस्वी ऋषिकल्प आत्माएँ न केवल सूक्ष्मशरीर से आवागमन करने में समर्थ थी वरन् इच्छानुसार रूप धारण करने और जब चाहे अदृश्य होने और पुनः प्रकट हो जाने की विभूतियों से भी सम्पन्न थीं। बीसवीं सदी में भी इस तरह के कितने ही उदाहरण विद्यमान हैं जो मान में अन्तर्निहित प्रचण्ड सूक्ष्म शक्ति-सामर्थ्य को प्रकट करते हैं। ब्राजील निवासी राजास केमिलो नामक एक ईसाई साधकर का उदाहरण कुछ इसी प्रकार का है। केमिलो की ईश्वर पर दृढ़ आस्था थी और उसने अपने जीवन को बहुत ही पवित्र एवं प्रखर बना लिया था। फलतः अन्तर्निहित शक्तियाँ विकसित हो गई थीं। इच्छानुसार वह अदृश्य या प्रकट हो सकता था। उसकी इस विलक्षण क्षमता की पुष्टि जाँचकर्ता वैज्ञानिकों एवं पत्रकारों ने भी की थी।

इसी तरह अलबानिया के काउण्ट एडुवर्डो नामक व्यक्ति को सूक्ष्म शरीर से यात्रा करने, अदृश्य होने आदि की सामर्थ्य प्राप्त थी। मंगोलिया के बौद्ध भिक्षु थ्याँग ने भी कठिन अभ्यास के द्वारा इस तरह की क्षमताएँ विकसित कर ली थीं। सब के सामने वह अचानक प्रकट हो जाता और फिर अदृश्य होकर सबको अचंभे में डाल देता। इस तरह के कितने ही प्रदर्शन उसने मूर्धन्य वैज्ञानिकों, विद्वानों एवं पत्रकारों के समक्ष प्रस्तुत किये थे। आस्ट्रेलिया के सुप्रसिद्ध पत्रकार डेविड नील ने जब थ्याँग से उसकी विलक्षणता का कारण पूछा तो उत्तर मिला-सूक्ष्म शरीर से यात्रा करना, अदृश्य होना आदि साधक की अपनी इच्छा शक्ति पर निर्भर करता है। अपनी समस्त मानसिक एवं आध्यात्मिक शक्तियों को केन्द्रित करके कोई भी व्यक्ति इस तरह की क्षमताएँ विकसित कर सकता है।” योगी एवं तपस्वी स्तर के भारतीय साधकों की एक महान परम्परा रही है जो इस तथ्य को उद्घाटित करती है कि मानव जीवन सृष्टा का वह अनुपम उपहार है जिसका यदि सदुपयोग बन पड़े तो हर मनुष्य दिव्य विभूतियों का स्वामी बन सकता है। पवित्रता एवं प्रखरता द्वारा पात्रता अर्जित कर हर साधक योगसाधना के माध्यम से भौतिक सफलताएँ एवं अध्यात्म जगत की विभूतियाँ हस्तगत कर सकता है।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118