साहस और धैर्य का फल (Kahani)

December 1990

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एक ब्राह्मण जंगल में जा रहा था कि सहसा सामने से आते बाध से उसका मुकाबला हो गया। मौत सामने थी। पर ऐसे समय में उसने साहस नहीं खोया और सूझबूझ से काम लिया।

बाघ जब समीप आ गया तो ब्राह्मण ने दोनों हाथ उठाये और जोर-जोर से मंत्र बोलने लगा। ऐसा अद्भुत अवसर बाघ को कभी पहले देखने को नहीं मिला था। उसने आश्चर्य से पूछा यह क्या कर रहे है और क्या कह रहे हैं?

ब्राह्मण ने कहा “मैं आपके वंश का कुल पुरोहित हूँ। आपके पूर्वज भी हमारे पूर्वजों के यजमान रहते आये है। आपके मिलने से बड़ी प्रसन्नता हुई। हाथ उठाकर, मंत्र पढ़कर आशीर्वाद दे रहा हूँ। अब आपका कर्तव्य है कि पुरोहित को दक्षिणा दें”।

बाघ ने कहा “आपका कथन सत्य हो सकता है। पर मेरे पास दक्षिणा देने को तो कुछ नहीं है, क्या दूँ”?

ब्राह्मण ने कहा-मेरे साथ चलिए, निवास स्थान देख लीजिए। प्रतिदिन आकर मुझे प्रणाम कर जाया कीजिए साथ ही यह भी ध्यान रखिए कि उस अवसर पर आप किसी से भी छेड़खानी नहीं करेंगे-’। बाघ दोनों शर्तें स्वीकार करके दक्षिणा के ऋण से उऋण हुआ।

ब्राह्मण के घर नित्य सिंह आने लगा। पालतू होने जैसा व्यवहार करने लगा। किसी को उसने काटा नहीं इसे लोगों ने ब्राह्मण की सिद्धि समझा, उसकी पूजा होने लगी और दक्षिणा भी बढ़-चढ़ कर मिलने लगी। यह था साहस और धैर्य का फल ।


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