श्रद्धांजलि वर्ष के नूतन निर्धारण

December 1990

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शाँतिकुँज में अक्टूबर माह के प्रथम सप्ताह में आयोजित संकल्प श्रद्धांजलि समारोह के विराट रूप को जिनने भी देखा व उसे सफल ठहराया, उसके मूल में सबको दो कारण समझ में आए। एक संघशक्ति का एकीकरण एवं दूसरा श्रद्धा से उपजे संकल्प की शक्ति का जागरण। ऋषिरक्त के संचय से कभी दुर्गा रूपी संघशक्ति का अवतरण हुआ था। इस पौराणिक आख्यान की पुनरावृत्ति आदिकाल में होती है। इसी को साकार होते हर जुड़े निष्ठावान् परिजन ने पिछले दिनों देखा।

श्रद्धा का, स्नेह का केन्द्र बिन्दु रहे पूज्य गुरुदेव सात दशक से भी अधिक समय तक सैकड़ों के हृदय पर राज्य करते रहे। उनके प्रति समर्पण भाव ने अन्दर सोए संकल्प बल को जगाया एवं विद्या विस्तार के निमित्त घर-घर अलख जगाने का जिम्मा अपने कंधों पर लेने के लिए प्रेरित किया। गुरुदेव अपनी थाती, निधि के रूप में एक विशाल परिवार छोड़ गए हैं, उसके लिए एक सुनियोजित कार्यक्रम दे गए हैं तथा प्रचण्ड आत्मबल संपन्न वातावरण देवात्मा हिमालय की छापा में गंगा की गोद में गायत्री तीर्थ शाँतिकुँज के रूप में बना गए हैं। जो ऊर्जा इस वातावरण में उनकी कठोर तपश्चर्या के फलस्वरूप विद्यमान है, उसकी अनुभूति हर परिजन ने समय-समय पर की है। इसे उनने इक्कीसवीं सदी गंगोत्री, नवयुग का निर्धारण केन्द्र, महामानवों की सर्वोच्च संसद तथा महाकाल का घोंसला कहा है। किसी को भी इसमें संदेह नहीं होना चाहिए कि उनकी प्रेरणा से जो भी महत्वपूर्ण निर्णय अगले दिनों लिए जाएँगे, वे भावी युग का संविधान रचेंगे।

संकल्प समारोह की उत्साहवर्धक प्रतिक्रियाओं को दृष्टिगत रख इस वर्ष तीन प्रमुख कार्यक्रम सभी परिजनों के लिए महत्वपूर्ण निर्धारण के रूप में दिए गये हैं ताकि हर परिजन अपनी स्थिति के अनुरूप उनमें भागीदार बन कर लाभ उठा सके।

पहला कार्यक्रम है संस्कारित देव मानवों की प्रसुप्त आत्मशक्ति के जागरण हेतु शाँतिकुँज की श्रृंखला का विस्तार एवं पुनर्निर्धारण। अब साधना स्तर की तपश्चर्याएँ बढ़ा दी गयी हैं व शीत ऋतु, बसंत को इसके लिए उपयुक्त समझकर इन्हें सर्वोच्च वरीयता देकर 1990 के अंतिम दो माह व 1991 के पूर्वार्ध में चलाते रहने का निश्चय किया गया है।

दूसरा कार्यक्रम है-महाकाल के साथ उज्ज्वल भविष्य के लिए साझेदारी में जन-जन को जोड़ने हेतु विशाल स्तर के आयोजन-दीपयज्ञ संगोष्ठियों का क्रम क्षेत्र में कर जन शक्ति का प्रबल मंथन करना। वे कार्यक्रम भी जनवरी 1991 से आरंभ किये जा रहे हैं।

तीसरा कार्यक्रम है विद्या-विस्तार प्रक्रिया को नयी गति देकर चल देवालयों आदि के माध्यम से इस कार्यक्रम को प्रभावी बनाना, पूज्यवर की लेखनी के आलोक को राष्ट्र व विश्व के हर कोने में पहुँचाना। इस संबंध में पिछले पृष्ठों पर विस्तार से लिखा जा चुका है।

तीन प्रकार की सत्र शृंखलाएँ शाँतिकुँज में अब चल रही हैं। एक नौ दिन के विशिष्ट साधना-अनुसंधान सत्र, एक मास के युग शिल्पी शिक्षण सत्र तथा तीसरे तीन-तीन के अतिथि सत्र। हैं सभी साधना प्रधान पर उनका स्तर तीनों में भिन्न-भिन्न हैं।

यह सर्व विदित तथ्य है कि अन्दर प्रसुप्त पड़ी सुसंस्कारिता को जब तक तप साधना का खाद-पानी नहीं मिलता, वह अंकुरित पल्लवित नहीं होती। बड़े काम साधना पराक्रम के माध्यम से ही संपन्न होते हैं। पुरातन काल में तो वैसा वातावरण चहुँ ओर था एवं बहिरंग से हटकर अन्तर्मुखी हो आत्मचिन्तन की साधना करने का हर किसी के पास अवसर था। कुण्डलिनी जागरण, षट्चक्र भेदन, निदिध्यासन-धारण ध्यान समाधि स्तर के उपक्रम अब भले ही उस सीमा तक संभव न हों, पूज्य गुरुदेव स्थूल, सूक्ष्म कारण शरीर के जागरण संबंधी ऐसे विशिष्ट साधन निर्धारित कर गए हैं कि उनका आश्रम लेकर निश्चित ही लक्ष्य तक पहुँचा जा सकता है। अखण्ड जप, नियमित यज्ञ, युगसन्धि महापुरश्चरण एवं करोड़ों गायत्री जप की ऊर्जा से अभिपूरित वातावरण इसमें सहायक भूमिका है। मनःस्थिति यदि बदलने को एवं नये प्रचलन को अपनाने को समुद्यत है तो आन्तरिक कायाकल्प सुनिश्चित हो जाता है। इन नौ दिवसीय अनुदान सत्रों में इन्हीं तथ्यों को ध्यान में रखते हुए ही विशिष्ट साधना उपक्रमों का निर्धारण किया गया है।

प्रातःकाल के सविता के स्वर्णिम प्रकाश की ध्यान-धारणा जो पूज्य गुरुदेव के निर्देशों (टेप किए हुए) के अनुसार की जाती रही है को अब और विशिष्ट बनाया गया है। सामूहिक ध्यान साधना हेतु बने कक्ष को चारों ओर से ढँक कर ऐसा बनाया गया है कि ध्यान बँटे नहीं, निर्देशों के अनुरूप उन्मीलित नेत्रों से उस प्रकाश व दृश्य पर केन्द्रित रहे जो मंच पर दिखाई दे रहा है। प्रातःकाल प्राणायाम, बंध के विशिष्ट प्रयोग जोड़े गए हैं तथा त्रिकाल संध्या की तरह प्रातः के अलावा मध्याह्न व संध्या के भी, इस प्रकार तीन ध्यान प्रयोग जोड़े गए हैं। सभी उपक्रम बंध मुद्रा को छोड़कर सामूहिक रूप से सम्पन्न होंगे। स्थूल सूक्ष्म व कारण शरीर के परिष्कार के लिए जड़ी बूटी कल्क अखण्ड दीपक को प्रणाम करते समय दिए जाने की व्यवस्था की गयी है। नौ दिन में यह प्रति तीन दिन में भिन्न-भिन्न प्रकार का साधक के परीक्षण के उपरान्त पाई गई स्थिति के अनुरूप होगा। विशिष्टता स्थूलता वनौषधि की कम व उसकी कारण शक्ति के जाग्रत रूप की अधिक है। नौ कुण्डीय यज्ञशाला में नित्य यज्ञ के समय भी आधिभौतिक आधिदैविक एवं आध्यात्मिक प्रगति के लिए विशिष्ट वनौषधियों युक्त विभिन्न मंत्रों से आहुतियों को देने की व्यवस्था की गयी है॥

ब्रह्मवर्चस् शोध संस्थान में प्रत्येक शिविरार्थी का प्रयोग परीक्षण कर आत्मिक प्रगति का एक चार्ट बनाने की व्यवस्था की गयी है, जिसके अनुरूप परामर्श दिया जा रहा है। प्रायश्चित विधान के अंतर्गत दसस्नान, हेमाद्रि संकल्प, विशिष्ट कर्मकाण्ड, इच्छापूर्ति-संकल्प एवं वंदनीय माताजी के समझ अपनी समस्याओं की भूतकाल की स्थिति की चर्चा भविष्य का निर्धारण करने की विशिष्ट व्यवस्था की गई है। भावी साधना का परामर्श भी इसी आधार पर दिए जाने की व्यवस्था बनाई गई है। नौ दिन तक गंगाजल ही पीने एक समय आहार लेने तथा ऊर्जा पूरित स्थान छोड़कर कहीं और न जाने का विधान रखा गया है ताकि संचित प्राणशक्ति का क्षरण न हो। आत्म देव की साधना तथा नादयोग की साधना भी विशिष्ट रूप किये जाने तथा युगसन्धि पुरश्चरण में भागीदारी हेतु सामूहिक मौन जप आधा घण्टे एक साथ एक ही समय किए जाने का प्रावधान भी रखा गया है। परीक्षण के उपकरण नये बढ़ाये गये हैं, जिनसे साधक यह स्वतः जान सकेंगे कि उनमें आने से पूर्व की स्थिति में क्या परिवर्तन हुआ है। विभिन्न वर्णों तथा शब्द शक्ति का प्रभाव अन्तश्चेतना पर क्या पड़ता है, यह ब्रह्मवर्चस् के उपकरणों द्वारा परिजन जान सकेंगे। ध्यान यही रखना है कि यह परीक्षण सुविधा रोगियों के लिए नहीं मात्र साधना का अवलम्बन ले रहे लोक सेवियों के लिए उपलब्ध है। साधना आरण्यक का स्वरूप ब्रह्मवर्चस् के रूप में बनाया गया है, न कि किसी चिकित्सालय सेनेटोरियम जैसा।

ये साधना सत्र प्रतिमाह 1 से 9, 11 से 19 तथा 21 से 29 तारीखों में चलते रहेंगे। आवेदन के पश्चात् जिन्हें उपयुक्त समझा जाएगा, उन्हीं को स्वीकृति स्वरूप सत्र प्रवेश की एक विशिष्ट पुस्तिका नियमोपनियम संबंधी भेजी जायगी। इस प्रकार परिपक्व मनः स्थिति के साधक ही इसमें आ सकेंगे।

सभी परिजन पूज्य गुरुदेव के जीवनवृत्त, मिशन के क्रिया−कलाप भावी विद्या विस्तार संबंधी निर्धारणों पर लगायी जा रही विराट प्रदर्शनी का अवलोकन भी करते रह सकेंगे। यह अभी-अभी स्थायी रूप में शाँतिकुँज में लगायी गयी है व प्रत्येक के लिए दर्शनीय है।

एक मास के युगशिल्पी सत्र चलेंगे तो पूर्ववत् हर माह एक से 21 तारीखों में ही किन्तु सभी में प्रथम नौ दिन साधना अनुदान शिक्षण अनिवार्य रूप से जुड़ा होगा। इस उनतीस दिन की अवधि में प्रज्ञा संस्थानों, प्रज्ञामंडलों, शक्तिपीठों का संचालन व युगनेतृत्व की विधा का शिक्षण दिया जाएगा। अगले दिनों नेतृत्व धर्मतंत्र से लोक शिक्षण करने वाले लोकसेवियों को ही करना हैं। कैसे स्वयं को मुखर बनाया जाय, अपनी झिझक को मिटाकर अपनी बात कैसे सामने वालों के गले उतारी जाय निज की प्रतिभा का संवर्धन परिष्कार कर किस प्रकार अपनी व्यवस्था बुद्धि का उपयोग करते हुए कार्यरत रहा जाय, यह समग्र शिक्षण लोकसेवियों के इन युगशिल्पी सत्रों में दिया जा रहा है।

सभी प्रज्ञा संस्थानों शक्तिपीठों के ट्रस्टी एवं वरिष्ठ कार्यकर्ताओं को वरीयता देते हुए पहले उन्हीं को बुलाया गया है। यदि वे अपनी व्यस्ततावश, अन्यान्य कार्यों में लगे रहने के लिए उतने लम्बे समय के लिए न आ सकें तो अपने स्थान के परिचित जीवट वाले व्यक्तियों को पूरे माह के लिए भेजें, स्वयं तो नौ दिन के सत्र में आ ही जाएँ। इन, सत्रों में जुड़े कर्मकाण्ड, संगीत की टिप्पणियाँ, गायन-वादन की तथा संस्कारादि को सम्पन्न कराने की भी सुविधा रहेगी। स्वावलम्बन विद्यालय के कुटीर उद्योग स्तर के शिक्षण महिलाओं के लिए तो उपलब्ध रहेंगे ही, पुरुष भी स्वेच्छा से कोई एक उद्योग अपने लिए एक माह की अवधि के लिए चुन सकते हैं। सद्ज्ञान संवर्धन की युग सेवा हेतु प्रचार उपकरणों का उपयोग, उनका तकनीकी शिक्षण भी इन सत्रों में दिया जाएगा। जड़ी बूटी चिकित्सा, हरीतिमा संवर्धन तथा साइकिल द्वारा धर्म प्रचार की पदयात्रा इसी शिक्षण का एक अंग है। नये स्थान पर जाकर तीर्थ स्थापना कर कैसे आलोक विस्तार किया जाय, यह युग शिल्पी शिक्षण प्रक्रिया का प्राण है।

तीन दिन के अतिथि सत्र उनके लिए हैं जो षोडश संस्कारों में से कोई भी संस्कार कराने के लिए अथवा क्षेत्रीय कार्यक्रम संबंधी या व्यक्तिगत चर्चा हेतु विचार विमर्श हेतु केन्द्र आना चाहते हैं। कई परिजन अपने जन्म दिन, विवाह दिवस शाँतिकुँज ही मनाते हैं। वे भी दो-तीन दिन ठहर कर तीर्थ की प्राणऊर्जा से लाभान्वित होना चाहते हैं। इन सभी के लिए प्रातः से मध्याह्न तक आश्रम की निर्धारित दिनचर्या रहेगी। युगसन्धि पुरश्चरण की भागीदारी के बाद वे अपना दैनन्दिन क्रम घूमने आसपास के स्थान आदि देखने का बनाकर डडडड वीडियो फिल्म प्रदर्शन तक लौटकर आ सकते हैं। अपेक्षा उन से सही है कि वे जितने दिन तीर्थ में रहे यहाँ की प्रचण्ड प्राणचेतना से अनुप्राणित होने का प्रयास करें।

स्थानीय सत्र निर्धारणों के अतिरिक्त एक महत्वपूर्ण कदम क्षेत्र के मंथन का उठाया गया है। अभी-अभी सभी परिजन संकल्प श्रद्धांजलि समारोह की ऊर्जा से ओत−प्रोत होकर लौटे हैं। सभी का दृढ़ संकल्प है वे पूज्य गुरुदेव के व्यक्तित्व व कर्तृत्व को घर-घर जन-जन तक पहुँचाये। महाकाल के साथ साझेदारी के लिए जन-जन को प्रेरित करें उन्हें संकल्प सूत्र में बाँधें। अभी -अभी यहाँ से जाने के बाद जो पत्र प्रवाह उमड़ा चला आ रहा है, वह यह बताता है कि कर्मठ परिजन संपर्क गोष्ठी, क्षेत्रीय आयोजन, छोटे बड़े दीपयज्ञों द्वारा लोकमानस के परिष्कार का जन -जन से संपर्क करने का ताना -बाना बुन रहे हैं। सूक्ष्म जगत के परिशोधन एवं राष्ट्र की अशाँत अराजकता भरी स्थिति में एकता अखण्डता की शपथ दिलाकर हर व्यक्ति में सद्बुद्धि का विस्तार करना भी उद्देश्य है। धर्म सम्प्रदाय के नाम पर फैला भेदभाव तभी मिटेगा जब सार्वभौम अध्यात्म मंच द्वारा सबसे एक जुट होने का आवाहन कर उन्हें संकल्प में बाँधा जाय। यही तो युग निर्माण योजना का मूलभूत उद्देश्य है।

इस क्षेत्रीय मंथन क्रम को तीव्रगति देने, क्षेत्रीय परिजनों को कार्यक्रम संचालन में सहयोग देने हेतु कुछ बड़े आयोजन छोटे-बड़े दीपयज्ञों सम्मेलनों के अतिरिक्त अगले माह से किये जा रहें हैं जिनमें वीडियो रथ प्रतिनिधियों सहित भेजे जा रहे हैं। प्रतिदिन प्रातःकाल ध्यान साधना के बाद पाँच कुण्डीय यज्ञशाला में अविवाहित कुमारी कन्याओं द्वारा गायत्री यज्ञ के साथ विभिन्न संस्कार तथा “महाकाल के साथ साझेदारी का विशिष्ट संकल्प सभी उपस्थित परिजनों को कराया जाएगा।

इस विशिष्ट कर्मकाण्ड के बाद सारे दिन देवस्थापन कार्यक्रम संपन्न होगा। इसमें कार्यक्रम वाले कस्बे, गाँव या नगर में न्यूनतम 108 संस्कारवान दम्पत्तियों के घर “प्रखर प्रज्ञा सजल श्रद्धा” गायत्री तीर्थ का अभिमंत्रित चित्र, ब्रह्मकुण्ड हर की पौड़ी के जल व गंगा के तट की रज के साथ स्थापित किये जाने हैं। केन्द्र से गए परिजन इन सभी के घर स्वयं जा कर यह स्थापना कार्यक्रम संपन्न कर इन आत्माओं को इन स्थूल प्रतीकों के माध्यम से केन्द्र रूपी जनरेटर से, ट्रांसफार्मर से जोड़कर इक्कीसवीं सदी के उज्ज्वल भविष्य का प्रवाह तीव्र बनाएँगे। इन प्रतीक स्थापनाओं के साथ बताया जाएगा कि वहाँ नियमित उपासना का तथा गायत्री तीर्थ की परिक्रमा की मानसिक ध्यान-धारणा का क्रम नियमित चलता रहे। साथ ही विशेष रूप से आगामी दस वर्षों में सन्धिकाल की पुरश्चरण साधना भी चलती रहे।

संध्या काल में दीपयज्ञ होगा व व्याख्या सहित उद्बोधन। दीपयज्ञ कितना बड़ा हो, इसका निर्धारण परिजन पत्राचार द्वारा पहले कर लेंगे। प्रथम रात्रि के उद्बोधन के बाद शाँतिकुँज के विराट रूप पर दूसरी रात्रि में पूज्य गुरुदेव के जीवन वृत्त पर तथा तीसरे दिन सत्र श्रृंखला का परिचय मिशन के कार्यकलापों पर वीडियो फिल्में रथों में लगें 100 इंच के पर्दों पर दिखाई जाएँगी। इस प्रकार पहले दिन मध्याह्न पहुँचने वाला रथ चौथे दिन प्रातः ध्यान साधन के उपरान्त अपने गन्तव्य की ओर चल देगा।

साधन साध्य होने के कारण फिलहाल दो वीडियो रथ ही भेजे जा रहे हैं व शेष वाहन पूर्व वर्ष की भाँति जाएँगे। आगे व्यवस्था बन जाने पर सभी प्रान्तों में एक या दो वीडियो रथ भेजे जा सकेंगे। इन कार्यक्रमों से निश्चित ही नूतन नये परिजन मिशन के संपर्क में आयेंगे।

संकल्प श्रद्धांजलि समारोह के पश्चात् वंदनीया माताजी ने 1991 के वर्ष को श्रद्धांजलि वर्ष घोषित किया था। इस वर्ष मिशन का विस्तार जितना भी संभव हो करना है तथा स्वयं सत्रों में भागीदारी कर अपनी देवात्मा शक्ति को जगाकर आत्मबल सम्पन्न बनाना है। परिजन दोनों ही कार्यों के लिए पत्राचार कर केन्द्र से संपर्क बनाए रखें, अपना सुनिश्चित निर्धारण इन्हीं दिनों कर लें।


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