समाचार डायरी -क्या हो रहा है, इन दिनों विश्व में?

April 1989

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

निराश मानवजाति को इन दिनों आशा की किरण कहीं नजर आती है तो वह पूर्व की ओर भारत की ओर ही दृष्टि डालते है। हमारी आज की परिस्थितियाँ, गरीबी, असंतोष, विग्रह, आदि देखकर किसी को आश्चर्य हो सकता है कि यह देश किस बलबूते नेतृत्व कर सकेगा? आइये! जरा नजर डाले - मनीषियों, चिन्तकों, भविष्यवेत्ताओं की दूरदृष्टि सम्पन्न महामानवों के मंतव्यों पर!

भारत विश्व का नेतृत्त्व करेगा -हरमन काँन,

मागरेट मीड“दुनिया कहाँ जा रही है?” इस शीर्षक से फिल्म बना रहे अमेरिकन टेलीविजन संवाददाता केल्विन सैर्ण्डस ने डा. मार्गरेट मीड (अब स्वर्गीय), हरमन काँन एवं विलियम थामसन का इंटरव्यू कुछ वर्ष पूर्व लिया था। यू. एस. आई. एस. द्वारा प्रकाशित पत्रिका “स्पाँन” में छपे इस साक्षात्कार में अमेरिकन म्यूजियम ऑफ नेचुरल हिस्ट्री की अध्यक्षा, नृतत्व विज्ञानी स्व0 मार्गरेट मीड तथा हडसन फ्यूचरालॉजी इंस्टीट्यूट के निदेशक हरमन काँन ने यह आशावादी भविष्यवाणी की कि निश्चित ही तृतीय विश्व का भविष्य उज्ज्वल है। उसे अंततः पूरी मानवजाति का नेतृत्त्व जो करना है। उनका कहना था कि इक्कीसवीं शताब्दी में प्रवेशकर जो पीढ़ी भविष्य का फैसला करेगी, वह भारत, जापान व चीन में जन्म ले चुकी है। इन तीनों देशों का अगुआ भारत होगा एवं यह राष्ट्र पाश्चात्य देशों की तनावभरी, गलैमरभरी दुनिया से विश्व मानवता को उबार कर विकेन्द्रीकृत - प्राकृतिक जीवन - व्यवहार की नीति संबंधी मार्गदर्शन करेगा। वे कहते हैं कि हमारी भविष्यवाणी तीर–तुक्का नहीं, बल्कि आँकड़ों व वर्तमान की गतिविधियों पर आधारित है। हरमन कान का मत था कि गाँधीवादी अर्थशास्त्र ही अगले दिनों विश्व की अर्थ संबंधी आचार संहिता बनेगा। “ पूर्व की अध्यात्म प्रधान भौतिकता से समन्वित एवं समग्र विश्व संस्कृति का अगले एक दशक में विकास” वे एक सुनिश्चित संभावना कहते हैं। इसे उनने “पैथेगोरियन सिन्थेसिस” नाम दिया है।

भारत बनेगा एक सुपरपावर

अमेरिका के आर्थिकी विशेषज्ञ एवं कम्प्यूटर के आधार पर सही - सार्थक भविष्यवाणी करने वालों में प्रमुख लिन्डन एच. लाराँच का मत है कि भारत अन्यान्य साधनों की दृष्टि से तो समृद्ध है ही, अपने प्रखर प्रतिभाशाली युवा बुद्धिजीवियों के कारण वह साँस्कृतिक, आर्थिक एवं भौतिक सभी क्षेत्रों में “सुपर पॉवर” बनकर ही रहेगा। इस अवधि को उनने 1995 से 2005 में मध्य बताते हुए पी. टी. आय को दी हुई एक भेंटवार्ता में कहा कि अगले कुछ वर्षा की राजनैतिक उथल-पुथल के बाद अध्यात्म शक्ति सम्पन्न तेजस्वी भारतवासी क्रमशः एशिया एवं फिर सारे विश्व की महाशक्तियों का अगुआ बनकर उन्हें मार्गदर्शन देंगे।

इक्कीसवीं सदी युवकों की होगी

युवा वर्ष के उद्घाटन भाषण में पिछले दिनों हमारे प्रधानमंत्री श्री राजीव गाँधी ने कहा कि “भारत में इकहत्तर प्रतिशत जनसंख्या युवा वर्ग की है, भारत के साँस्कृतिक परिवेश में पला-बढ़ा युवा वर्ग जितना शक्तिशाली है उसे देखकर हमें विश्वास करना चाहिए कि आने वाली सदी इन्हीं युवकों की होगी।”

यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह है कि इन दिनों विश्व में मनीषियों-राजनीतिज्ञों को सबसे बड़ा खतरा है - युवा वर्ग पर बढ़ता हुआ दवाओं के जहरीले नेश का शिकंजा! राष्ट्रीय सुरक्षा बजट के समकक्ष ही नई अमेरिकी सरकार ने नशे से लड़ने का बजट रखा है। इससे ज्ञात होता है कि विश्व-मानवता भटकी हुई युवा चेतना से कितनी चिन्तित है। ये वही युवक हैं जिनके विषय में स्वामी विवेकानन्द ने कहा था कि “यदि भारत के सौ युवक भी जाग जायँ तो सारे विश्व को उलट - पलट कर रख देंगे।” स्वामी जी की वाणी भारत से ही साकार होगी, यह सुनिश्चित लगता है।

आ रहा है तारनहार इन बारह वर्षों में

जाँन हाँग नामक एक मनीषी जिन्होंने नाँस्ट्राडेमस की भविष्यवाणी की व्याख्या नये सिरे से की है, इसी विषय के विशेषज्ञ माने जाते हैं। उनकी हाल की प्रकाशित पुस्तक “नास्ट्राडेमस एण्ड दी मिलेनियम” में उनने लिखा है कि ‘संकट और चुनौती से भरे आगामी बारह वर्षीय कालखण्ड में एक नई साँस्कृतिक चेतना का उदय होगा, जो सदी के अंत तक अपनी चरम सीमा पर होगी। यह नई चेतना विश्व चेतना में रूपांतरित हो जायेगी, एवं उसके फलस्वरूप हमारे इस सुन्दर ग्रह पृथ्वी पर हक हजार वर्षों एक शान्ति ही शान्ति सभी ओर संव्याप्त होगी, इसे “एज आफ ट्रूथ” कहा जायेगा तथा अध्यात्म एवं विज्ञान का अद्भुत समन्वय होगा। यह वे नाँस्ट्राडेमस की लिखी हुई भविष्यवाणी की नये सिरे से की गयी व्याख्या के संदर्भ में लिखते हैं।

ऐसी होगी इक्कीसवीं सदी की दुनिया

मद्रास में जन्मे ब्रिटिश नागरिक “राबर्ट वाँल्ड” जिसकी गिनती विश्व के जाने माने भविष्य विज्ञानियों में होती है, ने अपनी पत्नि के साथ एक पुस्तक लिखा है “टेम्स ....”। वे अपनी इस क्रान्तिकारी पुस्तक में लिखते हैं कि “आने वाले दिनों में संचार माध्यम एक व्यापक क्रांतिकारी मोड़ से गुजरेंगे। टेलीविजन के माध्यम से अखबार पढ़े जायेंगे जिन्हें मुद्रित करके भी टेलीविजन दे देगा। एक साथ चालीस कार्यक्रम टेलीविजन पर देखे जा सकेंगे एवं मनोरंजन के स्थान पर टेलीविजन ज्ञान संचार का, लोकमानस के परिष्कार का काम करेगा।” सूचना बंक और इलैक्ट्रानिक डिलीवरी का कार्य भी यही संचार माध्यम करेगा। स्टूडियो में बैठे अध्यापक सुदूर देहातों में बैठे विद्यार्थियों को, नव साक्षरों को ज्ञान-विज्ञान की नवीन जानकारी देते रहेंगे एवं इस प्रकार खुले विश्वविद्यालय की भूमाक निभायेंगे।” लेखक द्वय कहते हैं कि “अगले दिनों माँस का विकल्प सोयाबीन तथा समुद्र की काई के रूप में उपलब्ध होने के कारण लोग क्रमशः माँसाहार छोड़ देंगे एवं उनका चिंतन सात्विक होता हुआ चला जायगा। जनसंख्या बढ़ेगी तो स्थान की कमी होगी उसे रेगिस्तानों में शीत गृह बसाकर एवं समुद्र की लहरों पर तैरते हुए शहर बसाकर इस कमी को पूरा कर लिया जायगा। जिस विधि से पौधे भोजन का निर्माण करते हैं उसी विधि से मानव भी प्रयोगशाला में ढेरों भोजन बनाने लगेगा। अगली सदी में शुद्ध हवा के लिए प्रति व्यक्ति ढ़ाई वर्ग मीटर घास उपलब्ध रहेगी एवं लोगों को डाक्टरों की दुकानों पर लम्बी लाइनें लगाने से मुक्ति लिए जायेगी। यह इसलिए कि रागों के लक्षण, रोगी की स्थिति तथा निदान के परिणाम स्वयं रोगी अपने कम्प्यूटर में भर कर, न केवल अपना बल्कि ऐसे हजारों व्यक्तियों का नुस्खा तैयार करके दे देगा। संचार उपग्रहों से शल्य चिकित्सा सम्पन्न की जायेगी।”

भारत की संसार को जरूरत है-महर्षि अरविंद

अपने निर्वाण से कुछ दिनों पूर्व श्री अरविंद ने कहा था कि भारत नष्ट नहीं हो सकता। क्योंकि सम्पूर्ण मानवजाति के भविष्य के लिए भारत की सर्वाधिक आवश्यकता है। अगले दिनों भारतवर्ष से ही सारे संसार का धर्म निकलेगा - वह शाश्वत सनातनधर्म जो सब धर्मो में विज्ञान और दर्शन में समन्वय करेगा और मानवजाति को एक झण्डे तले ला खड़ा करेगा। नैतिक क्षेत्र में अभी भारत को मानवजाति की म्लेच्छता, गँवारुपन एवं अशिष्टता मिटाकर सारे संसार को आये बनाना है और इसी कार्य के लिए भारतवासी सर्वप्रथम अपने आपको गढ़ेंगे एवं परिवर्तन चक्र पूरे विश्व में फैलायेंगे।

भारत दुनिया का सरताज होगा-एडमंड हिलेरी

शेरपा तेनसिंग के साथ एवरेस्ट के प्रथम विजेता एवं सम्प्रति भारत में न्यूजीलैण्ड के उच्चायुक्त सर एडमंड हिलेरी ने पिछले दिनों भारत के साँस्कृतिक परिवेश से अपनी तादात्म्यता का परिचय देते हुए कहा कि “विश्व का यह सबसे बड़ा लोकतान्त्रिक देश चुनौतियों को स्वीकार करने की क्षमता रखता है। अपने साँस्कृतिक विरासत के बलबूते ही भारत विश्व की महाशक्ति क रूप में विकसित होकर रहेगा।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles