हँसिये दिल खोलकर!

April 1989

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पेरिस के एक सभाभवन में प्रति रविवार को 10 बजे एक गोष्ठी आयोजित होती है। जिसमें वहाँ के वैज्ञानिक हँसी पर भाषण देते है। चुटकुले सुनाये जाते है। अंत में सभी कक्षों में प्रकाश मंद कर दिया जाता है और लोगों के कह-कहे गूँजने लगते है। मन के सुखद भावों को बाहर लाने के लिए हँसी सर्वोत्तम उपाय है। जो स्वयं को ही प्रसन्न नहीं करती वरन् आसपास के लोगों और मित्रों को भी प्रफुल्लित कर देती है। हास्य शरीर की स्वाभाविक तथा आवश्यक क्रिया है जो दैनन्दिन जीवन में आने वाले व्यतिक्रमों का कुप्रभाव नष्ट करती है।

जब किसी के व्यवहार से दुःख पहुँचता है, कोई नैराश्यपूर्ण स्थिति आ जाती है और संयोग से उसी समय हँसी आ जाय तो सारा क्रोध और चिन्ता दूर होकर मन झूम उठता है। यह प्रत्यक्ष अनुभूत किया जा सकता है। मुस्कान और हँसी के द्वारा अंतर्जगत में एक ऐसा स्निग्ध वातावरण बनता है जो अंदर ही अंदर से हृदय को शीतलता प्रदान करता है।

इस शुभ प्रभाव का कारण हँसी की मनोवैज्ञानिक प्रतिक्रिया है। व्यथा, क्रोध, चिड़चिड़ापन थके हुए मन में ही ज्यादा उत्पन्न होते है। जबकि हास्य मन के सारे तनावों और ग्रंथियों को दूर कर देता है, खोल देता है। एक फ्रांसीसी मनोविज्ञ रोग चिकित्सक डा पौस्किड ने लम्बे समय तक इस विषय में अन्वेषण किया। लगभग 180 प्रयोगों के द्वारा वे इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि हँसने से मनुष्य के मन और मज्जा तंतुओं को स्फूर्ति और सजीवता प्राप्त होती है तथा थकान और चिन्ता का भार कम हो जाता है। हँसी एक ऐसा मनोवैज्ञानिक व्यायाम जो मन को ही नहीं शरीर के अवयवों तथा माँसपेशियों को भी अनावश्यक दबाव से मुक्त कर देता है।

हँसी के बारे में सर्व सम्मत सिद्धान्त है कि इससे खून बढ़ता है। यह केवल कल्पना मात्र ही नहीं है। अमेरिका के डॉक्टरों ने इस सिद्धान्त की सच्चाई को परखने के लिये बालकों के दो समूह लिए और दोनों को अलग-अलग रखा। एक समूह को दोपहर के भोजन के बाद एक मसखरा तरह-तरह से हँसाता रहता। दूसरे समूह के लिए कोई व्यवस्था नहीं की गयी। एक मास बाद दोनों समूह के बच्चों का परीक्षण किया गया तो पता चला कि हँसने वाले बच्चों का स्वास्थ्य पहले की अपेक्षा और अच्छा हो गया है। वे पढ़ने लिखने में भी तेज हो गये है।

परन्तु यह सब होता तब है जब दिल खोल कर हँसा जाय। बहुत से अवसरों पर हम औपचारिक रूप से ही हँस पाते है। वह भी अपने साथी मित्रों का मन रखने के लिए। ऐसी पौन इंच की मुस्कान का कोई परिणाम नहीं होता है। बनावटी और लगती है।

मुस्कान भी हँसी का ही एक स्वरूप है। यह सदा बनी रहने वाली स्थिति है। चौबीसों घंटे खिलखिलाते रहना असंभव हो सकता है। दर्पण में खिला हुआ मुखकमल देखकर मन आह्लादित हो उठता है। मुस्कराते हुए व्यक्तियों के समीप क्रोध, ईर्ष्या और प्रतिहिंसा फटकती तक नहीं। प्रतिहिंसा की अग्नि को शान्त करने वाली यह अचूक औषधि है।

कभी-कभी घर में पति-पत्नी के बीच कलह होता है, या कोई मित्र रूठ जाता है तो मुस्कराने का नुस्खा आजमाकर इस दुःस्थिति को आसानी से सम्हाला जा सकता है। मन पर जमा हुआ सारा मैल मुस्कान के प्रवाह में बह जाता है।

मनोवैज्ञानिकों का मत है कि मुस्कान के द्वारा मन को एक स्वस्थ संकेत मिलता है, जैव-विद्युत पर प्रभाव पड़ता है। इसका दूसरा अर्थ यह निकलता है कि हमारा मन मधुर कल्पनाओं, सद्भावनाओं तथा पवित्र विचारों से ओत-प्रोत है मानसिक स्वास्थ्य का प्रभाव शरीर, आयु और इंगित करते हुए श्रीमती एलिजाबेथ सैफोर्ड ने लिखा है कि “सौ वर्ष जीने के लिए चारों ओर से जवान और हंसमुख मित्रों से घिरे रहो”।


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