सम्मोहन से मानसोपचार

April 1989

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ताँत्रिकी के अंतर्गत गुह्य विज्ञान के प्रायः छः प्रमुख अंग हैं-मारण, मोहन, उच्चाटन, वशीकरण, आकर्षण और स्तम्भन। इनमें से पाश्चात्य जगत में जिस शाखा को इन दिनों सबसे अधिक प्रयोग में लाया जा रहा है, वह है मोहनी विद्या। मोहन अर्थात् सम्मोहन। अँग्रेजी में इसे “हिप्नोटिज्म” के नाम से जाना जाता है। ग्रीक भाषा में इसे ही ‘हिप्नोज’ कहा गया है। आखिर यह है क्या? व इसका लाभकारी प्रयोग क्या हो सकता है? इस दिशा में काफी कार्य पाश्चात्य देशों में हुआ है।

सम्मोहन विद्या के अंतर्गत व्यक्ति के शरीर को स्पर्श किये बिना ही कृत्रिम निद्रा का आभास कराया जाता है। मनुष्य को मोह-निद्रा में निमग्न करने का यह एक सर्वश्रेष्ठ तरीका वैज्ञानिकों की समझ में आने लगा है। सम्मोहनकर्त्ता, व्यक्ति की मनःस्थिति को निरख परख कर ही अपनी इच्छा शक्ति के माध्यम से संकेत सूचनाएँ संप्रेषण की क्रिया पूरी करता है।

न्यूयार्क की रुटजर्स यूनिवर्सिटी के चिकित्सा विज्ञानी डा ग्रिफिथ विलियम ने अपनी पुस्तक “एक्सपेरीमेण्टल हिप्नोसिस” में इस तथ्य को उजागर किया है कि क्यों कोई व्यक्ति किसी समय भाव - विभोर हो उठता है? एवं धार्मिक उत्सवों कथा - कीर्तनों अथवा मधुर संगीत को सुनकर अपना सुध-बुध खो बैठता है और सम्मोहन जैसी स्थिति में आ जाता है? इसका कारण बताते हुए वे कहते हैं कि ऐसे समय उसकी प्राण-चेतना निर्दिष्ट और अभीष्ट व्यक्ति अथवा वस्तु की ओर प्रेरित आकर्षित होने लगती है। इस सम्मोहित अवस्था को उनने ‘सोमनोबुलिज्म’ के नाम से संबोधित किया है, उनके कथनानुसार कोई व्यक्ति जब अपनी चेतन अवस्था को विस्मृत करके अचेतन स्थिति में जा पहुँचता है तो मनोविज्ञान की भाषा में इसे ‘हिप्नोगौजिक’ कहा गया है और जाग्रति की अवस्था को ‘हिप्नोपौम्पिक। दोनों ही प्रकार की अवस्था के सम्मिश्रित स्वरूप को ‘हिप्नोइडल ट्राँस’ के नाम से पुकारा जाता है। कृष्ण मूर्ति ने इसी को ‘च्वाइसलैस अवेयरनेस’ की संज्ञा दी है। जिसके अंतर्गत व्यक्ति अनिश्चय की स्थिति में हो जाता है कि क्या करना चाहिए और क्या नहीं? यही अवस्था है जिसमें व्यक्ति के पिछले जन्मों के इतिहास को सुगमता पूर्वक जान सकना संभव हो पाता है।

भारतीय मनःशास्त्र के विशेषज्ञों का कथन है कि व्यक्ति के मनःसंस्थान की गति विधियों के संचालन में जाग्रति स्मृति और धृति तीन प्रकार की अवस्थाएँ दृष्टिगोचर होती हैं। जाग्रतावस्था में मन प्रत्यक्षतः ज्ञानेन्द्रियों की अनुभूतियां उपलब्ध करता है। जन्म जन्मान्तरों की चिरसंचित ज्ञान-सम्पदा का बोध “स्मृति” के माध्यम से होता है। जबकि “धृति” मन की सूक्ष्मतर अवस्था है, जिसमें विचार-संप्रेषण की विधि-व्यवस्था बिठाकर एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति की मनःस्थिति एवं परिस्थितियों से अवगत हो सकता है। हठयोग प्रदीपिका में लिखा है कि एकाग्रचित्त होकर मनुष्य किसी सूक्ष्म वस्तु को सामने रख कर तब तक देखे जब तक आँखों में आँसू न आ जायें। योग विद्या के निष्णातों ने इसे त्राटक साधना कहा है जिससे नेत्र रोग तंद्रा और आलस्य दूर होते हैं। दूसरे के मन की बातें जान लेना, प्रभावित करता, मूर्छित करना इसी के द्वारा संभव है। योग-ग्रन्थों में वर्णित ध्यान बिन्दु साधना इसी को कहा गया है, जिसमें बिना आँख बंद किये दोनों भौंहों के बीच ध्यान किया जाता है। पाश्चात्य चिकित्सा विज्ञानी इस को “सेल्फ हिप्नोटिज्म” और ‘औटोहिप्नोटिज्म’ के नाम से पुकारने लगे हैं।

कोलम्बिया यूनिवर्सिटी के चिकित्सा विज्ञानी डा हरवर्ट स्पेगल ने सम्मोहन विद्या के ऊपर लम्बे समय तक शोध कार्य किया है। तदुपरान्त वे इस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि सम्मोहन विद्या की चिकित्सा संबंधी सफलता सम्मोहनकर्त्ता की योग्यता एवं कुशलता पर निर्भर करती है। सम्मोहन विद्या के निष्णात का सर्व प्रथम कार्य तो रोगी को कृत्रिम ढंग से निद्रा का आभास कराना होता है फिर उसके अंतर्मन में संकेत सूचनाएँ पहुँचाना निद्रावस्था में शरीर तो प्रायः निष्क्रिय पड़ जाता है, पर मन की गति अविरल बनी रहती है। अतः मन को साँसारिक विषयों से हटा कर विचार शून्य बनाया जाता है। फिर उसके मस्तिष्क में सत्प्रवृत्तियों के प्रविष्ट होने का अवसर मिलता है।

व्यक्ति में आत्म-विश्वास उत्पन्न करके उसकी मानसिक दुर्बलताओं को हटाने, मिटाने की यह सर्वोत्तम चिकित्सा समझी गयी है।

मौन्टीफायोर हॉस्पीटल न्यूयार्क के मनःचिकित्सक एवं शारीरिक गठान विकृति रोग विशेषज्ञ (औनकोलोजिस्ट) डा पाँलसेसरडोट के अनुसार समस्त आधि-व्याधियों का एक मात्र कारण मानसिक विकृति ही है। सम्मोहन-चिकित्सा का मूल प्रयोजन मनःसंस्थान के धृति क्षेत्र की इसी विकृति को परिष्कृत एवं परिमार्जित करना होता है, जिसके फलस्वरूप रोगी अपने किये हुए दुष्कृत्यों पर आगे खेद प्रकट न करने का संकल्प बल उभारता और आरोग्य लाभ प्राप्त करता है। उनने अपने प्रयोग परीक्षणों से यह सिद्ध कर दिखाया है कि सम्मोहन के द्वारा लम्बे समय से चली आ रही मानसिक आधियों में 20 प्रतिशत तक पूर्णतः कमी आई और 60 प्रतिशत तक आँशिक। इस विद्या का प्रयोग शारीरिक और मानसिक दोनों प्रकार के रोगों में सफलतापूर्वक और किया जा सकता है। दमा, आँतों की सूजन, दुर्बलता नपुंसकता अधशीषी और उच्च रक्त चाप जैसे रोगों के उपचार में इससे काफी सफलता मिल चुकी है। इतना ही नहीं, मानसिक तनाव से मुक्ति पाना भी इस उपचार पद्धति के माध्यम से सरल हो गया हैं

हारवर्ड मेडिकल स्कूल के सम्मोहन विद्या विशेषज्ञ एवं मनःचिकित्सक डा फ्रेड फ्रैंकल ने सम्मोहन चिकित्सा में ध्यानमुद्रा को अधिक प्रभावशाली बताया है, जिसके अंतर्गत सर्व प्रथम मांसपेशियों को तनाव मुक्त किया जाता है। तदुपरान्त रोगी अपने निषेधात्मक दृष्टिकोण समाविष्ट करने का उपक्रम करता है। रोगोपचार की इस विधि−व्यवस्था को उनने “सल्फ-सजेशन” अर्थात् “आत्म-निर्देशन” की संज्ञा दी है। उनने इस उपचार पद्धति के चार स्वरूप बताये हैं, जो इस प्रकार है। (1) इनडक्शन (2) डीपनिंग (3) सजश्षन (4) कमिंग आउट इत्यादि। इनडक्शन के अंतर्गत रोगी व्यक्ति स्वयं को सबसे पहले शिथिलीकरण मुद्रा में लाता है, जिससे उसका शारीरिक एवं मानसिक तनाव कम हो। सम्मोहन की “डीपनिंग” प्रणाली में मनःक्षेत्र की गहराई में उतरा जाता है, जिसके परिणाम स्वरूप व्यक्ति अपनी मूलसत्ता को समझ सके। भारतीय योग विद्या में जिस तरह मानसिक परिष्कार के लिए जप का विधान है, पाश्चात्य जगत में इसी प्रयोजन के लिए ‘डीपनिंग’ का निर्धारण है। सजेशन की प्रणाली को क्रियान्वित करने के लिए व्यक्ति अपने अचेतन मन को विधेयात्मक पोषण देता है। इस नियमित पोषण के कारण मन धीरे धीरे उसे स्वीकार लेता है और स्वयं का उसी रूप में अनुभव करने लगता है। “कमिंग आउट” समग्र प्रक्रिया का अन्तिम और चौथा चरण है। इसके द्वारा क्रिया की समाप्ति की जाती है।

सुप्रसिद्ध सम्मोहन चिकित्सक एवं “सेल्फ हिप्नोसिस” पुस्तक के लेखक विलियम जे. ओसकी ने भारतीय योगशास्त्र का बड़ी गहनता से अध्ययन किया है। उसमें वर्णित ध्यान बिन्दु योग के बारे में उनका कहना है कि यह “हिप्नोसिस” का ही एक प्रकार है और इसके माध्यम से भी वही लाभ हस्तगत किये जा सकते है, जो सम्मोहन द्वारा। इसी कारण उनने इसका नाम “सेल्फ हिप्नोटिकट्राँस” रखा है।

भारत की इस प्राचीन विद्या की प्रशंसा करते हुए प्रमुख अमेरिकी पत्रिकी “र्नोथवेस्ट मेडिसिन” में सेनफ्राँसिस्कों के सुप्रसिद्ध स्त्रीरोग विज्ञानी डा डैविड चीक कहती हैं कि यह खुशी की बात है कि आज इस पौर्वात्य विद्या का लाभ समस्त संसार उठा रहा है। अकेले कैलीफोर्निया में इसके 930 चिकित्सक हैं, जो विभिन्न प्रकार के शारीरिक मानसिक रोगों में अब तक अच्छी सफलता प्राप्त कर चुके हैं। उनका कहना है कि यदि इस विद्या का सही ढंग से उपयोग किया जा सके, तो लम्बी और क्राँनिक मानी जाने वाली मानसिक व्याधियों व मनोविकारों से छुटकारा पाया जा सकता है। यही आज सबसे अधिक संख्या में जनमानस में घर किए बैठी हैं। यदि यह उपचार व्यावहारिक स्तर पर जन सुलभ बनाया जा सके तो मानव जाति की अच्छी सेवा की जा सकती है।


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