एक राजा संन्यासी बनने के लिए बहुत उतावला था। पर दीक्षा किसी पहुँचे हुए सन्त से लेना चाहता था।
संयोगवश एक तत्वज्ञानी सन्त उधर आ निकले। राजा ने अपना अभिप्राय उन्हें कहा।
सन्त ने उत्तर दिया। तुम अपना सारा वैभव मुझे दान कर दो। इसके बाद मेरे प्रतिनिधि के रूप में राज काज चलाते रहो। इतने सच्चे मन से करते रहने से तुम्हें संन्यास का लाभ मिल जायगा।
इसी को गान्धी जी टूस्टी शिप कहते थे। सम्पदा भगवान की समझें और जो हाथ में है उसका श्रेष्ठतम सदुपयोग करें।
साधु किसी गाँव में होकर निकले। हल जोतते किसान से बोले ....! दिन रात कोल्हू के बैल की तरह लगा रहा है। परलोक का भी ध्यान है कुछ भजन भाव किया कर। किसान को ऐसी कुछ जानकारी न थी। सो उसने पूछा-”भगवान्! आप ही कुछ बता दीजिए सो करता रहूँ।
सन्त ने ‘सोल्हम? मंत्र जपने के लिए बता दिया। किसान का मन लग गया और भावनापूर्वक उसे जपने लगा।
कुछ दिन बाद एक और संत उधर से निकले। उस गाँव में वही एक भक्त था सो किसान के पास गये और उसकी पूजा अर्चा पूछी। किसान ने बताया हुआ मंत्र सुना दिया।
इस पर नये संत क्रुद्ध हुए। बोले यह गलत है। इससे अनिष्ट हो जायगा। सही हम बताते है “बासोहम्” ऐसा जप करो। किसान वैसा ही करने लगा। पर संशय मन में घर कर गया। कहीं यह भी गलत न हो। चित में संदेह बुरा जाने से अस्थिरता चढ़ गई। कुछ दिन बाद तीसरे संत आये। पता लगते उनके पास पहुँचे और दुबारा बताये मंत्र को गलत बताते हुए बोले। उसे छोड़ो। “स्वदा-सोल्हम्” जपा करो। किसान का संदेह .... हो गया। श्रद्धा चली गई। मन उचट गया। जब तक एक बताने वाला-एक मार्ग-एक विश्वास न हो तब तक पूजा भी जंजाल है। सो उसने वह सब छोड़-छाड़ दिया व पहले की तरह बिना भजन के दिन गुजारने लगा।
नदी किनारे चार सहेलियाँ रहती थी। छिपकली, चुहिया, लोमड़ी और बकरी। चारों साथ-साथ रहती और आपस में हँसती-हँसाती।
एक दिन उनका मन नदी पार जाने और सेर करने को हुआ। कछुआ भी वहीं रहता था चारों ने कहा हम सच्ची सहेलियाँ है भाई कछुआ। तुम हम चारों को पीठ पर लिटाकर पार कर दो तो बड़ी कृपा हो।
कछुए ने पहले तो आनाकानी की। पर सच्ची सहेलियाँ होने की बात उसे बहुत भाई। उसने कहा यदि ऐसी बात है तो तुम चारों मेरी पीठ पर बैठ जाओ पार कर दूंगा।
चारों ने सवारी गाँठी, कछुआ चल पड़ा। कुछ दूर चलने पर उसने कहा। वजन बहुत हो गया। तुममें से एक को उतरना पड़ेगा। मुझसे ढोया नहीं जा रहा है। चुहिया ने छिपकली को पानी में ढकेल दिया। कुछ दूर चलने पर एक और के उतारने की बात कहीं गई। लोमड़ी ने चुहिया को गहरे पानी में उतार दिया। कुछ दूर और चलने पर एक को और उतारने का आग्रह हुआ। बकरी लोमड़ी से तगड़ी थी और उसने सींग गढ़ा कर लोमड़ी को बीच धार में धकेल दिया। अकेली बकरी शेष रह गई
कछुए ने कहा तुम चारों सच्ची सहेली बनती थी। तब साथ ही उतरना पार होता था। जब सबके द्वारा निर्बल को धकेले जाने का सिलसिला चल रहा है तो तुम्हारी मित्रता झूठी हुई न। मैंने तो सच्ची सहेलियों को पार करने का वायदा किया था। यह कहकर कछुए ने डुबकी लगाई और बकरी को उसी प्रकार .... दिया जैसे कि पहिले तीन यहीं थी।