विधाता का कैसा पक्षपात है (kahani)

April 1989

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

पत्थर की एक बड़ी चट्टान शिकायत कर रही थी कि वर्षा के दिनों मेरे चारों ओर वाले खेतों में हरियाली छा जाती है पर मुझे ऐसे ही दुर्भाग्य से घिरा रहना पड़ता है, एक घास का तिनका तक मेरे ऊपर नहीं उगता विधाता का कैसा पक्षपात है?

बादलों ने कहा इसमें हमारा दोष नहीं है। खेतों ने अपनी मिट्टी को सीली रखा है और उसमें उर्वरता सजाई है। इसी कारण वे वर्षा होते ही लहलहाने लगते हैं। एक तु हो जिनने कठोरता और कृपणता की नीति अपना रखी है न किसी को सहयोग देते हो न किसी से लेते हो ऐसी दशा में संकीर्ण लोगों को जिस प्रकार खाली हाथ रहना पड़ता है वही हाल तुम्हारा भी होता है।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles