बचा लेने का आश्वासन (kahani)

April 1989

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एक लोमड़ी किसी जंगल में रहती थी। उसी क्षेत्र में गधों की भरमार थी। लोमड़ी को उनसे असुविधा होती। उसके खाने योग्य साधन गधों की बहुलता से अस्त-व्यस्त हो जाते।

लोमड़ी ने एक चालाकी भरी योजना बनाई कि किसी प्रकार यहाँ से इन गधों को डरा कर भगाया जाए। वह गधों के पास पहुँची और बोली तुम्हें एक गुप्त सूचना देती हूँ। मछलियों ने मिल कर एक सेना गठित की है और वे दलबल के साथ तुम सब गधों का बंठाधार करने वाली है।

गधों ने वास्तविकता जानने का प्रयत्न तो किया नहीं डर से भयभीत हो कर गाँव की ओर भागे जहाँ उन्हें पनाह मिल सके।

गाँव धोबियों का था। उनने गधों की भय-व्याकुलता देखी। कारण पूछा - और सहायता करने का आश्वासन दिया। गधों के दम में दम आया और उनने लोमड़ी से सुनी सारी बातें कह सुनाई।

धोबियों ने उन्हें बचा लेने का आश्वासन दिया। साथ ही उनके गले में रस्सी बाँधकर खूँटे से बाँध भी दिया। गधे स्थाई रूप से बंधन में बँध गये। डर जो न कराये सो थोड़ा।


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