सुसंस्कृत बनाना आरंभ (kahani)

April 1989

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एक व्यक्ति को सिद्धि प्राप्त करने की इच्छा थी। इसके लिए वह ऐसे देवता की तलाश करने लगा जो सबसे अधिक प्रतापी हो।

इस दृष्टि से उसने सूर्य को ठीक पाया और उनकी पूजा करने लगा। एक दिन घने बादल आये। बादलों ने सूर्य को ढक लिया। उसने सूर्य की पूजा बन्द करके बादलों की आराधना आरम्भ कर दी। इस प्रकार कुछ ही यमष् बाद देखा कि पवन में अधिक शक्ति है वह बादलों को देखते देखते उड़ा ले जाता है। अब उसने पवन को इष्टदेव बनाया। कुछ दिन बाद उसने देखा कि पर्वत पवन को प्रवाह रोककर उसे उलटा लौटा देता है। अब पर्वत पूजन आरंभ हुआ।

विचार करने पर देखा गया है कि मनुष्य ही पहाड़ों को तोड़ फोड़ देता है। उन्हें काट कर रास्ते और जल-प्रवास निकालता है। अस्तु मनुष्य बड़ा ठहरा। उसने अपने आपे को ही पूजना समुन्नत सुसंस्कृत बनाना आरंभ कर दिया और उसका प्रतिफल भी हाथों हाथ मिला।


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