एक अन्धे को किसी अपराध में जन्म भर की कैद हो गई। उसे जेल में बन्द कर दिया गया। एक दिन राजमंत्री जेल का मुआयना करने आये तो उन्हें अन्धे कैदी पर दया आई और अधिकारियों को नोट करा दिया कि यदि यह अन्धा जेल के फाटक से बाहर निकल रहा हो तो उसे रोका न जाय। अन्धे को इस सूचना से बड़ी प्रसन्नता हुई। वह जेल का फाटक बाहर निकलने के लिए तलाश करने लगा। इस के लिए उसने उपाय सोचा कि जेल की दीवार पकड़ ली जाय और घूमते-घूमते जब भी फाटक आये तभी बाहर निकल जाय।
अन्धे के सिर में खाज थी। ठंड लगते ही वह बढ़ जाती थी। जेल के फाटक पर फव्वारे लगे थे। उन्हें छूकर ठंडी हवा आती थी। फाटक आते ही ठंडी हवा से खाज बढ़ जाती। अन्धा दीवार छोड़कर दोनों हाथों से सिर खुजाने लगता साथ ही चलता भी रहता। इसी बीच फाटक निकल जाता और उसे फिर जेल पूरा चक्कर लगाना पड़ता। इस प्रकार उसे कितने ही चक्कर काटने पड़े पर कभी सौभाग्य न आया कि वह फाटक से बाहर निकल सके।
मनुष्य जन्म ही फाटक है। जीव अन्धा कैदी। जब जीवन मुक्ति का सुयोग आता है तब मनुष्य लोभ मोह की वासना तृष्णा की खुजली खुजाने लगता है। और उसी भव-बंधन में चक्कर काटता रहता है।