रुकने वाले पिसनहारी (kahani)

April 1989

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मथुरा जिले की एक लड़की बचपन में ही विधवा हो गई। माता-पिता ने दूसरा शादी का प्रयत्न किया पर उनसे स्पष्ट इनकार कर दिया। घर में अकेली होने के कारण बाद में उसका भरण पोषण कौन करेगा? इस प्रश्न के उत्तर में उसने अपने दोनों हाथ ऊंचे करके दिखाये और कहा-कोई नहीं है तो क्या हुआ यह मेरे दोनों हाथ दो भाइयों की तरह मेरी रक्षा भी करेंगे और पेट भी भरेंगे।

उसने चक्की पीसने का धंधा अपनाया। पिसाई मिल जाती थी। गुजर होने लगी। उस कार्य में से वह दो पैसे नित्य धर्म कार्य के लिए अलग से बचा कर रखती।

जब वह लड़की बूढ़ी हुई तो गाँव के प्रमुख लोगों को बुलाया। पैसों से भरा हुआ घड़ा दिखाया और कहा आप लोग प्रयत्न करके किसी उपयुक्त जगह पर इसका एक पक्का कुआँ बनवा दें।

सड़क किनारे कुआं बनवाया गया। उसका पानी बहुत ठंडा और मीठी निकला। जबकि उस इलाके का पानी खारापन लिए हुए था। दूर-दूर से लोग उस पानी को पीने आते। छोटी-मोटी बीमारियाँ इस पानी से ही अच्छी हो जाती। उस कुंए का नाम पिसनहारी का कुआं प्रख्यात हो गया।

समीप के खेतों में किसानों ने आम के बगीचे लगा दिये। उधर से निकलने वाले यात्रियों के लिए विश्राम करने की और भी आकर्षक जगह बन गई। अभी भी कुंए पर मेला सा लगा रहता है। रुकने वाले पिसनहारी के .... की भूरि-भूरि प्रशंसा भी करते है।


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