चतुरतायुक्त नीति (kahani)

April 1989

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एक फ्रांसीसी पादरी अफ्रिका के नीग्रो समुदाय के बीच उसकी सेवा के लिए डेरा डाल कर रहते थे। जो थोड़ी बहुत सफलता मिलती उस पर संतोष करते। कभी कभी बहुत अन्ध विश्वासी लोगों से भी उनका पाला पड़ता। वे अति कठोर और कर्मठ भी थे। मत भेद होने पर जान लेने के लिए उतारू हो जाते थे।

ऐसे ही लोगों के बीच एक दिन उन फ्रांसीसी पादरी को फँसना पड़ा। मौत निकट थी। बचने का कोई उपाय न देखकर उन्होंने उन लोगों के अन्धविश्वासों का लाभ उठाना चाहा। उनने अपने को देवता कहा। मुंह में नकली दाँत लगे थे। वे मुँह से बाहर निकाल कर दिखाये और फिर जहाँ के तहाँ लगा दिये। उन समुदाय के सामने यह ऐसा आश्चर्य था जिसे देवता ही दिखा सकते है।

पादरी के पास एक बड़ा दर्पण भी था। उनने सभी जंगलियों को एक एक करके बुलाया और कहा उन्हें अपने देवता का दर्शन करायेगा। इससे पहिले उन लोगों ने कभी दर्पण देखा नहीं था।

हर एक ने दर्पण में अपनी सूरत देखी। वह उन्हें देव प्रतिमा लगी। सभी आदिवासी उनका लोहा मान गये और किसी तरह की हानि न पहुँचाकर सदा उनकी सहायता करते रहने के लिए वचनबद्ध हुए इस कहते है काँटों से काँटा निकालने की चतुरतायुक्त नीति।


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