राजा नहुष ने सौ यज्ञ किये। इससे उन्हें स्वर्ग जाने का अवसर मिला और इन्द्र .... के अधिकारी हो गये। वैभव पाकर नहुष की मानसिकता मदान्ध हो गई। वे सभा की बात भूल कर उपभोग की लिप्सा में सभी सखियों को उनकी सेवा में रहना चाहिए। सूचना इंद्राणी तक पहुँची तो बड़ी विचलित हुई। बचने का उपाय सोचने लगीं। उनने कूटनीति चली और नहुष से कहला भेजा कि वे सप्तऋषियों को पालकी में जोतकर उस पर बैठ कर अन्तःपुर में आयें तभी उनका स्वागत होगा।
मदान्ध को भला बुरा नहीं सूझता। उसने तत्काल वह प्रस्ताव स्वीकृत कर लिया। ऋषियों को पालकी में जोतकर अन्तःपुर चले। मार्ग की दूरी में लगने वाला विलम्ब उनसे सहा नहीं जा सका। ऋषि धीरे-धीरे चल रहे थे। यह उनसे सहन नहीं हुआ। उन्हें दौड़ने का आदेश देते हुए अपनी भाषा में .... कहने लगे। ऋषियों से यह अपमान सहा न गया उनने पालकी को धरती पर पटक दिया और शाप दिया कि .... सर्पि कहने वाले को सर्प की योनि मिले।
नहुष धरती पर आ ये और सर्प की योनि में बुरे दिन बिताने लगे।
मदान्धों को दुर्बुद्धि उपजती है और वही फिर उनकी दुर्गति का कारण बनती है।