आत्मा का स्वरूप (कहानी)

December 1987

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

आत्मा का स्वरूप आनंदमय है। जिसे आत्मज्ञान हो जाता है, उसे निरंतर आनंदित ही देखा जा सकता है। आध्यात्मिकता का दूसरा नाम है— प्रसन्नता। जो प्रसन्न नहीं रह सकता, उसने न आत्मा को जाना और न ईश्वर को।शोक-संतप्त-उद्विग्न और विक्षुब्ध व्यक्ति तो अनात्मतत्त्वों के बहाने मात्र हैं। जो क्रोध से झल्लाया करता है, जिसे खीज और आवेश का बार-बार शिकार होना पड़ता है,उसकी आस्तिकता संदिग्ध ही मानी जाएगी।

इस संसार में सब कुछ हँसने के लिए उपजाया गया है। जो बुरा और अशुभ है, वह हमारी प्रखरता को चुनौती के रूप में है। परीक्षा के प्रश्न-पत्रों को देखकर जो छात्र रोने लगे, उसे अध्ययनशील नहीं माना जा सकता। जिसने थोड़ी-सी आपत्ति-असफलता एवं प्रतिकूलता को देखकर रोना-धोना शुरू कर दिया, उसकी आध्यात्मिकता पर कौन विश्वास कर सकता है?

प्रतिकूलता हमारे साहस बढ़ाने, धैर्य को मजबूत करने और सामर्थ्य को विकसित करने आती है। सरल जिंदगी यदि संयत हो सके, तो वह सबसे भद्दे ढंग की ही होगी; क्योंकि वह जो सरलतापूर्वक दिन गुजारता रहता है, उसमें न तो किसी प्रकार की विशेषता रह जाती है और न प्रतिभा। संघर्ष के बिना भी भला कहीं, इस दुनिया में किसी का जीना संभव हुआ है?

नई उपलब्धियों में हमें हँसना चाहिए, अब तक मिल चुका, उससे संतोष व्यक्त करना चाहिए और भविष्य की शुभ संभावनाओं की कल्पना करके सदा प्रमुदित होते रहना चाहिए। रोना एक अभिशाप है जो केवल अविवेकी लोगों को शोभा देता है। जिसे आत्मा के स्वरूप का ज्ञान है और परमात्मा की महत्ता कुशलता और विनोद को समझता है, उसे हँसने-मुस्कराने की परिस्थितियों के अतिरिक्त और कुछ इस जीवन में अनुभव ही क्या हो सकता है?


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118