वह जो कभी आपने देखा नहीं

December 1987

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एण्डले, फ्रांस में एक ऐसा विशाल पत्थर है, जो छोटे-से आधार पर नाचते लट्टू की-सी स्थिति में खड़ा है। इसे देखने पर ऐसा लगता है, जैसे यह किसी विद्युत चुंबकीय शक्ति के प्रभाव से टिका हो। वैज्ञानिकों ने वहाँ ऐसे किसी बल की संभावना की सूक्ष्मता से जाँच-परख की; पर वे किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुँच सके। विचित्र बात यह है कि वह मौसमसंबंधी भविष्यवाणी भी करता है। मौसम साफ रहेगा, तो वह अपनी उसी धुरी पर चुपचाप खड़ा रहेगा, किंतु यदि मौसम खराब होने वाला हो, तो इसकी सूचना वह धीरे-धीरे हिल-डुलकर देता है। विशेषज्ञ इस बात से हैरान हैं कि उसमें गति कहाँ से आती है और इस स्थिति में उसका संतुलन क्यों नहीं बिगड़ता?

इसी प्रकार स्काटलैण्ड के डंकलस नामक स्थान पर 14 फुट लंबा 7 फुट चौड़ा तथा 5 फुट ऊँचा एक पत्थर तीन छोटे-छोटे आधारों पर इस तरह स्थिर है, जैसे कोई विशालकाय कछुआ विश्राम कर रहा हो। पुरातत्त्ववेत्ताओं का कहना है कि यह शिलाखंड विगत बीस लाख वर्षों से इसी स्थिति में पड़ा हुआ है, जबकि इस कालखंड में आँधी-तूफान से अगणित पहाड़ ध्वस्त हो गए।

आयरलैण्ड के कार्क नगर में “ब्लानी” नामक एक ऐसा पत्थर है, जिसके बारे में कहा जाता है कि इसे चूमने वाले में वाक्पटुता की अद्भुत क्षमता का विकास हो जाता है। प्रतिवर्ष मात्र इस पत्थर को चूमने के उद्देश्य से हजारों व्यक्ति दूर-दूर से यहाँ आते हैं।

वृक्ष-वनस्पतियों की दुनिया भी कोई कम विचित्र नहीं है। कुछ पेड़ तो सामान्य आकार से इतने अधिक मोटे हो जाते है। कि उनमें घर बनाया जा सके और कुछ पादप जगत के सारे नियमों को तोड़ते हुए विज्ञान के समक्ष उसे समझने के लिए चुनौती प्रस्तुत करते हैं।

नारमैण्डी, फ्रांस में एक विशालकाय ओक वृक्ष है, जिसकी आयु हजार वर्ष बताई जाती है। इसके तने की दानवी मोटाई को देखकर एक अंग्रेज के मन में विचार आया कि क्यों न इसमें एक गिरजाघर बनाया जाए, ताकि अधिकांश लोग इस वृक्ष के बारे में जान सकें। इसी उद्देश्य को लेकर उसने तने को खोखला बनाकर एक दो मंजिला चर्च बनाया, जो 1996 से लेकर अब तक ज्यों का त्यों बना हुआ है।

कृषि अनुसंधान केंद्र, खरगोन के फार्म में कुछ समय पूर्व गुलाब के तीन ऐसे पौधे उग आए थे, जिसमें गुलाब के फूल की जगह गुड़हल के फूल खिलते थे। एक जाति के पौधे में दूसरी जाति के फूल कैसे निकल आए? इसका कारण बताने के वनस्पतिशास्त्री सर्वथा विफल रहे।

इंडोनेशिया के सुमात्रा द्वीप और अमेरिका के चिली देश में एक ऐसा पेड़ है, जो सदा आँसू बहाता रहता है। दिन भर में यह इतना रोता है कि उसके आँसू से एक छोटा गड्ढा भर जाता है।

ध्रुवप्रदेशों के बारे में कहा जाता है कि वहाँ एक साथ कई-कई सूर्य, कई-कई चंद्रमा उदित होते हैं। सूर्य भी वहाँ हरे रंग का होता है। इसके अतिरिक्त दूर की वस्तुएँ हवा में लटकती दिखाई पड़ती है। छोटे टीले पहाड़ जितने बड़े प्रतीत होते हैं। यथार्थ में ऐसा होता तो नहीं है; पर किरणों की वक्रता के कारण पर्यवेक्षक को यह दृष्टिभ्रम हो जाता है।

प्रकृति में कई बार इसी प्रकार की ऐसी घटनाएँ घटती है, ऐसा कुछ देखने को मिलता है, जिनकी समीक्षा में मात्र यही कहना पड़ता है कि प्रकृति भी कितनी सुगढ़ और श्रेष्ठ कलाकार है, जो स्वयं भी समय और नियमितता की इतनी पाबंद है, जितना मनुष्य भी नहीं।

अमेरिका के केंचुकी प्रांत में मैमथ नामक एक ऐसी गुफा है, जिसे प्रकृति ने अपने सुंदर और सधे हाथों से निर्मित किया है। सुंदर डिजाइनों से युक्त खंभे और बड़े-बड़े कमरे कोई 200 मील क्षेत्र में फैले हुए हैं। इसका सबसे आश्चर्यजनक भाग इसकी गगनचुंबी दीवारें हैं। जो कार्य किसी कुशल इंजीनियर से हो सकता है, उसे प्रकृति ने स्वतः कर दिखाया, सहसा इस पर विश्वास नहीं होता; पर यह सत्य है कि उसे प्रकृति ने बनाया है।

संसार में अगणित ऐसे स्थान हैं, जहाँ भूगर्भ से अधिक ताप व दबाव के कारण धरती को फोड़कर फव्वारे निकल पड़ते हैं और गर्म गीजर्स का रूप धारण कर लेते हैं। यह गीजर्स स्वयं में एक विचित्रता लिए होते हैं, वह यह कि वे लगभग एक घंटे के अंतर से बराबर छूटते रहते हैं और इस तरह का सिद्ध करते हैं कि प्रकृति को समय और नियमितता का भी ज्ञान है।

प्राचीनकाल में ऐसे अनेक अखंड दीपकों के प्रमाण मिले हैं, जो सैंकड़ों वर्षों से जलते आ रहे थे। मूर्धन्य इतिहास वेत्ता कैमडन ने खुदाई में मिले ऐसे अनेक जलते दीपकों का वर्णन अपनी पुस्तक में किया है। सेण्ट आगस्टाइन ने अपनी संस्मरण पुस्तक में लिखा है कि वीनस देवी के मन्दिर में एक ऐसा दीपक था, जिस पर तेज हवा और वर्षा का कोई प्रभाव नहीं पड़ता था। पुरातत्त्व विभाग ने सन् 1840 में स्पेन में कुर्तण क्षेत्र में एक कब्र की खुदाई के वक्त ऐसा ही जलता दीपक प्राप्त किया था। विशेषज्ञों का मत था कि यह कई सौ वर्षों से जलता चला आ रहा है। इटली के नसीदा द्वीप में खेत की जुताई के समय एक किसान का एक कब्र मिली। जब उसे खोदा गया, तो काँच के बक्से में बंद एक अखंड ज्योति मिली, जो लंबे काल से उसी में बंद जल रही थी।

आयुष्य बढ़ने के साथ-साथ काले बाल सफेद हो जाते हैं-यह शरीर तंत्र का सामान्य नियम है; किंतु चीन के एक 98 वर्षीय कृषक के बाल विगत दस वर्षों में पहले काले से श्वेत हुए, फिर श्वेत से श्याम और अब पुनः एक बार काले से सफेद हो गए हैं।

पिछले दिनों डबरा की एक अद्भुत घटना का विवरण समाचारपत्रों में छपा था। वहाँ पर कस्टम रोड पर एक जैन मंदिर है, जिसमें भगवान पार्श्वनाथ की प्रतिमा स्थापित है। एक दिन अचानक दर्शकों की भीड़ भरे मंदिर में विग्रह की देह से पसीना आने लगा। बहुत छान बीन करने के बाद भी जब पसीने के किसी बाह्यस्त्रोत का पता न चला, तो अध्ययन के लिए विशेषज्ञों को बुलाया गया। रसायनवेत्ताओं ने उस नमूने का जब सूक्ष्मविश्लेषण किया, तो उसमें मानवी पसीने के सारे घटक पाए गए, पर यह न जाना जा सका कि वह पसीना उस पत्थर की मूर्ति से क्यों और कैसे बह रहा है?

सन् 1883 में इटली के सैन ब्रूनो क्षेत्र में एक विचित्र भूकंपयुक्त विस्फोट हुआ। इसमें अगणित इमारतें टूटीं और धन-जन की क्षति हुई। आश्चर्य की बात यह है कि इस विस्फोट ने नगर के प्रधान मठ के प्रार्थना-कक्ष को चाक पर पढ़े बर्तन की तरह घुमा दिया और बिना किसी क्षति पहुँचाए दूसरी जगह ज्यों का त्यों खड़ा कर दिया, जबकि मठ का अन्य भाग टूटकर विस्मार हो गया।

इसी देश के टोरैण्टो शहर के समीप समुद्र में एक सफेद रंग के पानी का फुहारा फूटता है। इसका पानी मीठा है। खारे समुद्र में मीठे पानी का फुहारा फूटना किस प्राकृतिक विचित्रता का परिणाम है, यह अभी जाना नहीं जा सका है।

ब्राजील के एक नगर वैलेस डोपारा पर दोपहर को 2 से 4 बजे तक पूरे दो घंटे नियमित रूप से वर्षा होती है। इसमें व्यतिरेक कदाचित् ही कभी होता है। उस क्षेत्र के निवासी इन दो घंटों में मध्याह्न अवकाश मानते हैं।

उपरोक्त घटनाक्रम एक विचित्रताएँ मात्र वाक्विलास या मनोरंजन के लिये नहीं वर्णित की गईं। वैज्ञानिक कहते हैं कि हर पदार्थ को कोई जन्म देने वाला पदार्थ एवं घटनाक्रम का कोई न कोई कारण अवश्य होता है। यही बात अध्यात्मवादी भी कहते हैं— आप्तवचनों— वेदांतमतों के अनुसार यहाँ सब कुछ सोद्देश्य है। कुछ भी अकारण नहीं है। इन प्रतिपादनों के अनुसार इन अपवादस्वरूप घटने वाले प्रसंगों के मूल में भी कोई सत्ता होनी चाहिए। वह कौन सी सत्ता है, कैसे यह सब इस रूप में संपन्न हो जाता है? यह ऊहा-पोह वैज्ञानिकों के लिए उसने छोड़ रखा है। क्या ये मात्र संयोग है? अथवा कभी-कभी होने वाले अपवाद हैं? उत्तर वैज्ञानिकों को देना है।


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