अपने स्वार्थ के लिए (कहानी)

December 1987

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

यदि किसी को अधिक भौतिक अधिकार प्राप्त हुए हैं, तो इसका अर्थ कदापि नहीं होता है कि दूसरों का उत्पीड़न किया जाए। आपका स्वास्थ्य उत्तम है, तो दुर्बलों को सताइए नहीं।

अपनी योग्यताओं का लाभ प्राप्त करिए, पर दूसरों के अधिकार तो न छीनिए। संसार में सभी प्राणी स्वतंत्र और स्वाभाविक जीवन व्यतीत करने के लिए आए हैं, अपने स्वार्थ के लिए दूसरों को कष्ट पहुँचाना अन्याय है। सभी आपकी तरह सुख और सुविधा प्राप्त करने के अधिकारी हैं। आपकी तरह वे भी अपने प्रयत्नों में लगे हैं, यदि किसी तरह उनकी सहायता नहीं कर सकते तो इतना कीजिए कि आपकी तरफ से उनके प्रयत्नों में किसी तरह की रुकावट न पैदा की जाए।

धरती माता के सारे अनुदान मिल-बाँटकर उपयोग करने के लिए हैं। अधिक पुरुषार्थ करके आप अधिक सुख प्राप्त कर रहे हैं, इसके लिए आप बधाई के पात्र हैं, किंतु अपने स्वार्थ के लिए दूसरों के सुख छीनकर उनकी बेचैनी बढ़ाने का आपको कोई अधिकार नहीं।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118