नवसृजन हेतु कटिबद्ध प्रज्ञापरिवार की नूतन गतिविधियाँ

December 1987

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लोकमानस को नए सिरे से ढालना, एक व्यापक समुदाय में वैचारिक क्रांति की हलचलें उत्पन्न करना, एक असंभव नहीं, तो कठिन कष्टसाध्य पुरुषार्थ था, किंतु मिशन के सूत्रसंचालकों ने इस भागीरथी कार्य को संपन्न करने का दृढ़ संकल्प लिया एवं सुनियोजित क्रियाकलापों को दिशा दी। निम्न गतिविधियाँ उसी सृजन-पुरुषार्थ का दिग्दर्शन कराती हैं।

गीता विश्वकोश: सृजन प्रगति

  शान्तिकुञ्ज हरिद्वार में “गीता का विश्वकोश” निर्माण कार्य निर्धारित योजना के अनुसार चल रहा है। दुर्लभ ग्रंथों की प्रतिलिपि उतारने के लिए जीराॅक्स (इलेक्ट्राेस्टेट) मशीन लग गई है। देश भर के पुस्तकालयों से गीता पर लिखे गए शोध प्रबंधों को एकत्रकर संदर्भ हेतु उनके महत्त्वपूर्ण अंश सारबद्ध करने की व्यवस्था बनाई गई है। माइक्रो फिल्में बनाने व उसके द्वारा दुर्लभ महत्त्वपूर्ण ग्रंथों का अवलोकन करने की व्यवस्था बनाई जा रही है। देश के कोने-कोने से खोजकर एवं प्रतिनिधि भेजकर ऐसे संदर्भ ग्रंथों का संकलन किया जा रहा है। “अखण्ड ज्योति” पाठकों से अनुरोध किया गया है, कि यदि उनके पास इस विषय पर महत्त्वपूर्ण साहित्य हो तो उनकी जानकारी भेजें। आवश्यकता समझी जाने पर उन्हें मँगा लिया जाएगा और काम पूरा होते ही उन्हें सुरक्षित रूप से वापस कर दिया जाएगा। पाठक इस पुण्य प्रयास में सहयोग दे भी रहे हैं। अच्छा-खासा गीता पुस्तकालय बनने भी जा रहे है, जिसमें बैठकर इस विषय पर अनेकों शोधकर्त्ता अध्ययनकर विश्वकोश निर्माण में सहयोग देंगे।

दीपयज्ञों का व्यापक विस्तार

दीपयज्ञों का अभिनव प्रचलन अत्यंत लोकप्रिय हुआ है। पारिवारिक एवं सामूहिक स्तर पर आए दिन ये नूतन आयोजन अनेकानेक संख्या में संपन्न हो रहे हैं। इस प्रक्रिया की दो परिपाटी चल रही हैं। एक यह कि हर याजक अपने घर से थाली लाए और अपने अगरबत्ती गुच्छक तथा दीपक सजाए। दूसरा यह कि ऊंचे मंच पर दीपकों की पंक्ति सजा दी जाए और लोग नीचे बैठकर गायत्री मंत्र का सामूहिक गान करें। इन दोनों पद्धतियों में से जो जहाँ अनुकूल पड़ती है, वह वहाँ अपना ली जाती है। कम खर्च और कम समय में धार्मिक वातावरण बनाने एवं सत्प्रवृत्ति-संवर्द्धन के संकल्पों को लेने, क्रियान्वित करने का यह सरल और प्रभावी तरीका अधिकाधिक विस्तृत होता जाता हैं।

प्रज्ञा संस्थानों के अनवरत कार्यक्रम

स्थापित सभी प्रज्ञापीठों को केंद्र से निर्देश भेजा गया है, कि वे अपने यहाँ झोला पुस्तकालय, दीवारों पर आदर्श वाक्य लेखन, दीपयज्ञ एवं पत्रिकाओं के सदस्य बढ़ाने का न्यूनतम कार्यक्रम अनवरत रूप से जारी रखें। उन्हीं अवलंबनों को अपनाकर जनसंपर्क करने और समर्थन-सहयोग पाने में सफलता मिल सकती है। इस नए निर्देश को सभी केंद्रों ने भावनापूर्वक अपनाया है।

सत्रों के लिए उभरता उत्साह

जीवन साधना सत्रों में आने के लिए इन दिनों असाधारण उत्साह उमड़ा है। मिशन के सूत्रसंचालक का नित्य नियमित संदेश घर-घर पहुँचाने वाली अखण्ड ज्योति और युग निर्माण योजना, युग शक्ति, के पाठकों को उनमें प्राथमिकता दी जा रही है। गुरुदेव के वर्तमान कार्यकाल में ही एक बार प्रत्यक्ष संपर्क साधने के लिए सभी परिजन लालायित हैं। स्थान सीमित और इच्छुक अधिक होने से बारी-बारी से ही उनको आने की स्वीकृति भेजी जा रही हैं। हर माह से सत्र अनवरत रूप से जारी रहते है— दिनाँक 1 से 9 तक, 11 से 19 तक एवं 21 से 29 तक। आवेदन पत्र भेजने पर ही सत्पात्रों को स्वीकृति मिलती है।

श्रम सेवा

सूखा और बाढ़ क्षेत्रों के परिजनों ने अपने-अपने यहाँ श्रम सेवा की टोलियाँ गठित की हैं। वे पानी एवं अन्य आवश्यक साधन लाने, पहुँचाने, सफाई करने, असमर्थों की सहायता करने जैसे सेवा कार्यों में जुटे रहते हैं। इस उभरे उत्साह में नये-नये सेवाभावी भी जुड़ते जाते हैं। सभी परिजनों ने पतन-निवारण सेवा के साथ-साथ पीड़ा-निवारण की सेवा, तात्कालिक सहायता की महत्ता को भली-भाँति समझा एवं अपने क्रियाकलापों को उसी अनुरूप में ढाल दिया है।

दहेज विरोधी आंदोलन

दहेज विरोधी आंदोलन ने इस वर्ष असाधारण रूप से गति पकड़ी हैं। वयस्क युवकों एवं युवतियों ने हजारों की संख्या में प्रतिज्ञाएँ की हैं कि वे बिना दहेज का संबंध ही स्वीकारेंगे। अभिभावकों के असहमत होने पर वे आजीवन कुँवारे बने रहना पसंद करेंगे।

श्री शंकराचार्य द्वारा शाल उपहार

शान्तिकुञ्ज द्वारा भारत वर्ष में धर्मतंत्र से जनमानस का परिष्कार के रूप में की गई सेवाओं की मुक्तकंठ से सराहना करते हुए कांचीकाम कोटि पीठ के 69 वें शंकराचार्य स्वामी जयेंद्र सरस्वती जी ने आचार्य जी के लिए एक ऊनीशाल उपहार से भेजा है। साथ ही युग चेतना के विस्तार की, अधिक महत्त्वपूर्ण कार्य करने की सामर्थ्य बढ़ते रहने की कामना की है।

बिना खर्च के विवाहों की सुविधा

अपने लड़की-लड़कों के बिना धूम-धाम वाले बिना देन-दहेज के विवाह करने के इच्छुक अभिभावकों के समक्ष एक बड़ी कठिनाई कुटुंबियों संबंधियों के विरोध की थी। वे इसे पसंद भी नहीं करते और रोड़े भी अटकाते हैं। इस झंझट से बचने के लिए एक नया उपाय मिल गया हैं। शान्तिकुञ्ज में बिना दहेज और धूम-धाम की शादियाँ संपन्न करा देने की व्यवस्था कर दी गई हैं। दोनों पक्षों के दस-दस, पाँच-पाँच व्यक्ति बरात-घरात के आ पहुँचें। वर-वधू वयस्क और अभिभावक सहमत हों तो ऐसी शादियाँ, यहाँ बिना किसी खर्च के संपन्न हो जाती हैं। ऐसे अब तक सैंकड़ों विवाह संपन्न हुए भी हैं। तीर्थस्थान संस्कारित पुण्यस्थली में होने वाले विवाह शुभ होते है और सफल सिद्ध होते हैं।

प्रयोगशाला का नूतन कायाकल्प

विज्ञान और अध्यात्म के समन्वय हेतु तर्क, तथ्य, प्रमाणों, प्रतिपादनों के प्रस्तुतीकरण के लिए ही ब्रह्मवर्चस की आज से १ वर्ष पूर्व स्थापना की गई थी। काफी बड़ी मंजिल यह संस्थान पार कर चुका है। विगतदिनों शोध-संदर्भ में नए प्रकरण जोड़े गए है तथा वैज्ञानिक प्रस्तुति हेतु आधुनिकतम उपकरण लगाए गए हैं। यज्ञ-विज्ञान पर चल रही शोध-प्रक्रिया के साथ-साथ शब्दशक्ति-संगीत चिकित्सा पर अनुसंधान हेतु उपकरण देश-विदेश से खरीदकर लगाए गए हैं। यज्ञशाला, जिसे चारों-ओर से काँच से बंदकर प्रयोगशाला का रूप दिया गया था, अब ब्रह्मवर्चस के प्रांगण में अकेली नहीं रही। उसके साथ एक कक्ष और जोड़ा गया है। यह पूरी तरह वातानुकूलित होगा, क्योंकि इसमें नूतन कंप्यूटरीकृत उपकरण लगाए जा रहे हैं। ड्युअल बीम स्टोरेज ऑसीलोस्कोप, हारमोनी एनालायजर व डेसिबल मीटर जैसे उपकरण ध्वनी विज्ञान(फोनेरिक्स) पर शोध हेतु लगाए गए है। ध्वनी के विभिन्न स्वरूपों का क्या प्रभाव मानव, जीव-जगत, पादपों एवं वातावरण पर पड़ता हैं, यह जानने के लिए संवेदनशील सेंसर्स लगाए गए हैं। एक एक्वेरियम तथा प्लांट फिजियालाॅजी प्रयोगशाला की व्यवस्था की गई है। यही नहीं, यज्ञधूम्रों को विश्लेषण हेतु अब आधुनिकतम गैस लिक्विड क्रोमेटोग्राफ लगाया गया हैं, जो न केवल वाष्पीभूत औषधि अपितु वनौषधियों में विद्यमान विभिन्न कार्यकारी घटकों का विश्लेषण करेगा। आकृति-संरचनाओ के क्या प्रभाव जीव-जगत पर पड़ते हैं, यह जानने के लिए एक "पायरेमिड" भी इस प्रयोगशाला में बनाया गया हैं। प्रयोगशाला का यह नूतन-स्वरुप नित्य बुद्धिजीवी वर्ग के व्यक्तियों को आकर्षित व अध्यात्म-विधा में अनुसंधान हेतु प्रेरित के रहा हैं।


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