उत्कर्ष का राजमार्ग

December 1987

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पालतू पशुओं को बंधन में बंधकर रहना पड़ता है, पर मनुष्य को यह सुविधा प्राप्त है कि स्वतंत्र जीवन जिए और इच्छित परिस्थितियों का वरण करें।

उत्थान और पतन के परस्पर विरोधी दो मार्गों में से हम जिसको भी चाहें, अपना सकते हैं। पतन के गर्त में गिरने की छूट है। यहाँ तक कि आत्महत्या पर उतारू व्यक्ति को भी बलपूर्वक बहुत दिनों तक रोका नहीं जा सकता। यही बात उत्थान के संबंध में भी है। वह जितना चाहे उतना ऊँचा उठ सकता है। पक्षी उन्मुक्त आकाश में विचरण करके लंबी दूरी पार करते, सृष्टि के सौंदर्य का दर्शन करते हैं। पतंग भी हवा के सहारे आकाश चूमती है। आँधी के संपर्क में धूलि-कण और तिनके तक ऊंची उड़ाने भरते हैं। फिर मनुष्य को उत्कर्ष की दिशा धारा अपनाने से कौन रोक सकता है?

आश्चर्य है कि लोग अपनी क्षमता और बुद्धिमत्ता का उपयोग पतन के गर्त में गिरने के लिए करते हैं। यह तो अनायास भी हो सकता है। ढेला फेंकने पर नीचे गिरता है और बहाया हुआ पानी नीचे की दिशा में गति पकड़ लेता है।

दूरदर्शिता इसी में है कि ऊँचा उठने की बात सोची और वैसी योजना बनाई जाए। जिनके कदम इस दिशा में बढ़ते हैं, वे नर-पशु न रहकर महामानव बनते हैं।


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