मानव जीवन में आएँगे गौरव गरिमा और सुख अंत।
अब आएगा ऐसा वसंत॥
यह समय है प्रत्यावर्तन का, अब ऐसा नवयुवक आएगा।
जो भोग चुका है दुःख मानव, उससे निजात पा जाएगा।
सुख की सरसों लहराएगी आनंदित होंगे सब दिग्दिगंत।
अब आएगा ऐसा वसंत॥
भावनाहीन हो सुख गए हैं, खेत जो कि अंतस्तल के।
उनको ममता से खींच प्रेम के दाने बोएँगे मिल के॥
फिर फसल उगेगी संवेदन की, हम सब होंगे श्रीमंत
अब आएगा ऐसा वसंत॥
फिर आएगा जो युग उसमें, मानव होंगे शुभ संस्कारी।
परहितकारी, निष्काम, विमल मन सात्विक और सदाचारी।
तब सद्गृहस्थ ही बना करेंगे, परिव्राजक, ऋषि और संत।
अब आएगा ऐसा वसंत॥
नव नव अंकुर सद्भावों के, और हरियाली सज्जनता की।
नूतन युग की वासंती ऋतु, परचम होगी मानवता की॥
विकसित होगी प्रज्ञा, मेघा आंतरिक चेतनाएँ अनंत।
अब आएगा ऐसा वसंत॥
मानव अपनी सोयी विभूतियों, का भी ज्ञान जाएगा।
यों होगा सुख का सृजन इसी धरती को स्वर्ग बनाएगा।
इस धरती पर लेंगे फिर जन्म देवता भी हो कृपावत।
अब आएगा ऐसा वसंत॥
*समाप्त*