पाठकों से आग्रह भरा अनुरोध

December 1987

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मनुष्य का प्राण जिन भाव-संवेदनाओं के साथ गुँथ जाता है, उसी के अनुरूप उसकी विचारणाएँ और गतिविधियाँ चल पड़ती हैं। उत्थान और पतन का यही रहस्य है।

अखण्ड ज्योति का एक ही लक्ष्य है कि व्यक्ति के अंतःकरण को छूने वाला ऐसा तत्त्वदर्शन प्रस्तुत किया जाए, जो व्यक्तियों के परिष्कार में सुनिश्चित रूप से सफल हो सके। इसके लिए जिन तर्कों, तथ्यों, प्रमाण-प्रतिपादनों की आवश्यकता है, उन्हें विश्व साहित्य के महासागर में गहरे गोते लगाकर पाठकों के समक्ष पहुँचाया जाता है। इसका गंभीरतापूर्वक अध्ययन-अवगाहन जिनने भी किया है, वे द्रुत गति से आगे बढ़े हैं, ऊंचे उठे हैं। 

आवश्यकता इस बात की है कि इस आलोक को घर-घर में प्रकाश करने का अवसर मिले, उसके द्वारा जन-जन के मानस को प्रखरता, प्रतिभा, शालीनता और महानता से अनुप्राणित करने का अवसर मिले।

इस अग्रगमन का एक ही सरल तरीका है कि वर्तमान सदस्य न्यूनतम दो-दो नए ग्राहक और बना देने का संकल्प करें। इसके लिए अपने प्रभाव क्षेत्र में संपर्क साधें,पत्रिकाएँ दिखाए और उनके प्रभाव-महत्त्व को विस्तारपूर्वक समझाने का प्रयत्न करें। इतना साहस कर गुजरने पर कोई भी पाठक दो नए सदस्य बना सकता है। इतने भर से मिशन का कार्यक्षेत्र अब की अपेक्षा तीन गुना अधिक बढ़ सकता है, जो मानवी गरिमा को अक्षुण्ण बनाए रखने और अधिकाधिक सशक्त बनाने में समर्थ है। विश्वकल्याण की दिशा में इतना प्रयत्न भी महान योगदान देता रह सकता है। पाठकों से इसके लिए आग्रह भरा अनुरोध किया जा रहा है।


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