वस्तुस्वरूपं स्फुटबोधचक्षुषा

December 1987

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मनुष्य की मस्तिष्कीय चेतना के गहन अंतराल में अनेकानेक दिव्य विभूतियाँ— अद्भुत क्षमताएँ विद्यमान हैं, जिन्हें कुरेदा और हस्तगत किया जा सकना प्रत्येक व्यक्ति के लिए संभव है। दूरदर्शन, दूरश्रवण, पूर्वाभास, विचार, संप्रेषण आदि अतींद्रिय क्षमताएँ मस्तिष्क की ही देन है। इन रहस्यमयी शक्तियों का जागरण और विकास विशेष मनःस्थिति एवं परिस्थितियों में ही संभव है, किंतु किन्हीं-किन्हीं में यह सामर्थ्य अनायास ही फूट पड़ती है, जिसे देखकर आश्चर्यचकित होना पड़ता है। विश्व में ऐसे अनेकों उदाहरण देखने को मिलते हैं जो मनुष्य की विलक्षण अतींद्रिय सामर्थ्य का परिचय देते हैं।

घटना सोवियत रूस की है, जहाँ विगत दिनों यूलिया वोरोबियेवा नामक एक महिला क्रेन चालिका विद्युत करेंट लगने से मूर्च्छित हो गई। मृतक समझकर उसे मुर्दाघर में ले जाया गया। अन्त्य-परीक्षा के लिए नियुक्त चिकित्सकों ने देखा, तो पाया कि वह अभी जीवित है। अतः उसका गहन चिकित्सा-उपचार किया गया और कुछ ही महीनों में वह पूर्ण स्वस्थ होकर अपने घर वापस आ गई; किंतु उसे तब आश्चर्य हुआ जब उसने सामान्य से कहीं अधिक गहराई तक देखने की क्षमता को अपने में विकसित पाया। वस्तुतः शरीर पर हुए उस आकस्मिक विद्युत-संचार से उसकी अतींद्रिय शक्तियाँ जागृत हो गई थीं। काया की अंदरूनी संरचना को खुले नेत्रों से अब वह उसी प्रकार देख लेती है, जिस तरह एक्स-रे मशीन द्वारा किसी अंग-अवयव के चित्र उतारे और देखे जाते हैं। प्रकृति के गर्भ में छिपे किसी वस्तु या भंडार को वह आसानी से देख लेती है। सूर्य की सूक्ष्म अल्ट्रावायलेट किरणों को भी देखने में उसकी आँखें सक्षम हैं। निकट भविष्य में आने वाले तूफान, महामारियों जैसी प्राकृतिक विपदाओं की जानकारी उसे पहले से ही हो जाती है। सोवियत वैज्ञानिकों के लिए जूलिया परीक्षण और अनुसंधान का विषय बनी हुई है।

सुप्रसिद्ध परामनोविज्ञानी विलियम मोक्स ने अपनी कृति “ह्वाट मक्स लाइफ सिग्नीफिकेन्ट” में कई प्रमाणों द्वारा यह बताया है कि मनुष्य के अंतराल में अतिविलक्षण सामर्थ्य विद्यमान है, जिसे जागृत कर सकना प्रत्येक व्यक्ति के लिए संभव है। कनाडा के मूर्धन्य वैज्ञानिक डॉ0 ऐनफील्ड ने तो ऐसे इलेक्ट्रोड का आविष्कार भी कर लिया था, जिसकी सहायता से वे मनुष्य की अतींद्रिय क्षमताओं को जागृत कर सकने में सफल हुए। इस इलेक्ट्रोड को शरीर के या मस्तिष्क के किसी विशिष्ट कोशिका के साथ संबद्ध कर देने पर व्यक्ति अपने भूतकाल की घटनाओं को चित्रपट की तरह प्रत्यक्ष देख सकता था। उनका मत था कि मानवी मस्तिष्क अतींद्रिय क्षमताओं का भांडागार है, जिसे विकसित करके कोई भी व्यक्ति त्रिकालदर्शी— दिव्यद्रष्टा बन सकता है। इससे संबंधित कई उदाहरण भी उसने प्रस्तुत किए।

नियेचन नामक एक महिला के बारे में पेनफील्ड का कहना है कि वह किसी अजनबी की कोई भी वस्तु स्पर्श करके उस व्यक्ति के भूत, वर्तमान और भविष्य को बता देती है। मूर्धन्य वैज्ञानिकों एवं चिकित्सा विशेषज्ञों ने भी जाँच करने पर उन सभी घटनाओं को शत-प्रतिशत सही पाया, कजिन का उल्लेख नियेशन ने किया। इसी तरह एक किशोरीकुमारी एडम किन्हीं दूरस्थ वस्तुओं के बारे में पूछे जाने पर उसका परिचय इस प्रकार बता देती, जैसे वे वस्तुएँ उसके सामने ही रखी हुई हों। एक ल्यूथीनियन लड़का भी विशिष्ट अतींद्रिय सामर्थ्य संपंन पाया गया। वह किसी भी आधुनिक या प्राचीनतम लुप्त भाषाओं — जैसे फ्रेंच, लैटिन, अंग्रेजी, ग्रिक, हिब्रू आदि के शब्दों को उच्चारणकर्त्ता के साथ अक्षरशः दोहरा देता, मानो वह उन भाषाओं का पूर्ण ज्ञाता हो और उसे पहले से ही यह ज्ञात हो कि उच्चारणकर्ता आगे कौन-सा शब्द बोलने वाला है।

लंदन के दक्षिणी भाग में रहने वाली नेला जोंस नामक अधेड़ आयु की एक महिला को “अतींद्रिय क्षमतासंपन्न गुप्तचर” के नाम से संबोधित किया जाता है। यद्यपि गुप्तचरों से उसका कोई संबंध नहीं है, फिर भी स्काटलैण्ड यार्ड का खुफिया विभाग अपराध के जिन संगीन मामलों की छानबीन नहीं कर पाता, उसकी जानकारी के लिए जोंस की मदद लेता है। घर बैठे ही वह समस्त घटना का पूरा विवरण बता देती है और अपराधी पकड़ लिया जाता है या समस्या सुलझ जाती है। विगत बारह वर्षों से वह इस कार्य में लगी है। भविष्य में घटित होने वाले घटनाक्रमों के बारे में भी वह कभी-कभी पुलिस विभाग को सतर्क करती रहती है। वैज्ञानिकों एवं विभिन्न विषयों के विशेषज्ञों ने भी निरीक्षण-परीक्षण के बाद उसके अतींद्रिय शक्तिसंपन्न होने की पुष्टि की है।

“एनसाइक्लोपीडिया ऑफ दी आकॅल्ट” में एन्टीन मेसियर नामक एक ऐसे व्यक्ति का वर्णन है जो पेट के माध्यम से अप्रत्यक्ष वस्तुओं का विवरण बताने में समर्थ था।

रूस के प्रख्यात मनोवैज्ञानिक एवं वरिष्ठ अनुसंधानकर्त्ता प्रो0 कोन्स्टाटिन प्लातोनोव ने भी अपने शोध-निष्कर्ष में कहा है कि मनुष्य की चेतना-विद्युत असीम और व्यापक है तथा शरीर के प्रत्येक कण में समाई हुई है। मस्तिष्क में जो शक्ति क्रियाशील है, वही अन्यत्र ज्ञानतंतुओं में भी काम करती है। उसे विकसित और प्रशिक्षित करने पर वैसी ही जानकारी प्राप्त की जा सकती है, जैसे कि दोनों नेत्रों से। यदि त्वचा को अधिक संवेदनशील बनाया जा सके तो अन्तःचेतना त्वचा से ही अन्य सभी इंद्रियों का ज्ञान प्राप्त करने में सक्षम हो सकती है। उन्होंने इस तरह के अतींद्रिय शक्तिसंपन्न व्यक्तियों के कई उदाहरण भी प्रस्तुत किए हैं। इनमें से एक है— मास्को की 26 वर्षीय कुमारी रोजा कुलेशोवा, जो अपने हाथ की तीसरी और चौथी अंगुलियों के स्पर्श मात्र से समाचारपत्र का पूरा लेख पढ़ लेती है और उपस्थित लोगों को सुनाकर उन्हें आश्चर्यचकित कर देती है। रोजा ने अंगुलियों की त्वचा को इतना अधिक संवेदनशील और पारदर्शी बना लिया है कि आँखों पर पट्टी बंधी होने पर भी वह आँखों का काम अंगुलियों से कर लेती है।

इसी तरह अद्भुत पराशक्तिसंपन्न खार्कोव (रूस) की श्रीमती ओलगा ब्जिजनोवा की 11 वर्षीय बालिका भी है। आँख पर अपारदर्शी पट्टी बाँधकर शतरंज की काली सफेद गोटियों को हाथ के स्पर्श मात्र से पहचानकर वह उन्हें अलग-अलग कर देती है। कागज की कतरनों के ढेर में से उन्हें रंगों के आधार पर छाँटकर अलग कर देना, अंगुलियों के स्पर्श से पुस्तकें पढ़कर सुना देना, उसके लिए सामान्य-सी बात है। उसने अपनी भुजाओं, कन्धों, पीठ, पैर आदि शरीर के अंग-अवयवों को भी इसी तरह प्रशिक्षित और क्षमतासंपन्न बना लिया है, जो स्पर्श मात्र से वही परिणाम प्रस्तुत करते हैं, जो अतिसंवेदनशील अंगुलियाँसम्पन्न करती है। दस सेंटीमीटर दूर रखी वस्तुओं के रंग, रूप, रचना आदि को वह बालिका उसी प्रकार बता देती है, जैसे कोई व्यक्ति अपने खुले नेत्रों से देखकर बताता है। उसकी इस अतींद्रिय सामर्थ्य का प्रदर्शन प्रयोगकर्त्ता मूर्धन्य वैज्ञानिकों ने देखा और परखा है तथा उपरोक्त कथन को सत्य पाया है।

वैज्ञानिकों का कहना है कि त्वचा में एक विशेष प्रकार की संवेदनशील कोशिकाएँ पाई जाती हैं, जो स्पर्श के आधार पर देखने का बहुत कुछ प्रयोजन पूरा करती है; किंतु बहुत से प्रकरण ऐसे हैं, जिनका विज्ञानसम्मत समाधान ढूंढ़ने में वे भी असमर्थ रहे हैं। फ्रांस की एक किशोरी वैज्ञानिकों के लिए सदैव चुनौती बनी रही। एन्नेट फ्रेलान नामक इस किशोरी ने योगियों जैसी अद्भुत अतींद्रिय क्षमताएँ अर्जित कर ली थी। उसने अधिकांशतः मौन रहने का नियम बना लिया था। जब कभी बोलती भी तो अत्यंत सारगर्भित एवं संक्षिप्त। कोई प्रश्न पूछे जाने पर वह एकाग्रचित्त हो जाती और उसका उत्तर उभरे हुए बड़े-बड़े लाल अक्षरों में उसकी बाहों, पैरों तथा कंधों पर लिख जाता था। कुछ देर द्रष्टव्य रहने के पश्चात् वह कोई छाप छोड़े बिना गायब हो जाते।

वस्तुतः मनुष्य अपनी चेतनाक्षमता के बारे में अनभिज्ञ ही बना रहता है और जहाँ-कहीं उसकी झलक मिलती भी है तो उसे प्रकृति की देन अथवा संयोग या देवी चमत्कार मानकर आश्चर्य भर प्रकट करता है। यदि चित्तवृत्तियों को समेटा एवं उन्हें जीवन-लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में नियोजित किया जा सके, तो हर कोई पराशक्तिसंपन्न बन सकता है।


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