सद्वाक्य

December 1987

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शरीर के लिए जितना किया जाता है, उतना ही यदि आत्मा के लिए किया गया होता तो मनुष्य देवता बनता और इन्हीं परिस्थितियों में स्वर्ग का रसास्वादन करता।


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