उन दिनों बिहार में अंग्रेजों के विरुद्ध किसान आन्दोलन चल रहा था। गान्धी जी उसका नेतृत्व कर रहे थे। गाँव-गाँव घूमना होता था। एक गाँव पहुँचे तो बकरे को आगे करके भीड़ नाचती कूदती ढोल बजाती जा रही थी। उसे देवी के आगे बलि दिया जाना था।
गान्धी जी ने उस अनीति से उन्हें रोका तो गाँधी जी देवी के सामने बैठ गये और बोले बकरे की जगह मनुष्य का माँस देवी को और भी अच्छा लगेगा। लो मेरी बलि चढ़ा दो। भीड़ के हौसले पस्त हो गये। बकरा लौटा लिया और सदा के लिए वह कुप्रथा बन्द हो गई।